Johannes 10 – HOF & NCA

Hoffnung für Alle

Johannes 10:1-42

Der gute Hirte

1»Ich sage euch die Wahrheit«, fuhr Jesus fort: »Wer nicht durch die Tür in den Schafstall geht, sondern auf einem anderen Weg einsteigt, der ist ein Dieb und Räuber. 2Der Hirte geht durch die Tür zu seinen Schafen. 3Ihm öffnet der Wächter die Tür, und die Schafe hören auf seine Stimme. Der Hirte ruft jedes mit seinem Namen und führt sie aus dem Stall. 4Wenn er alle seine Schafe ins Freie gebracht hat, geht er vor ihnen her, und die Schafe folgen ihm, weil sie seine Stimme kennen. 5Einem Fremden würden sie niemals folgen. Ihm laufen sie davon, weil sie seine Stimme nicht kennen.«

6Die Leute, denen Jesus dieses Gleichnis erzählte, verstanden nicht, was er damit meinte. 7Deshalb erklärte er ihnen: »Ich sage euch die Wahrheit: Ich selbst bin die Tür, die zu den Schafen führt. 8Alle, die sich vor mir als eure Hirten ausgaben, waren Diebe und Räuber. Aber die Schafe haben nicht auf sie gehört. 9Ich allein bin die Tür. Wer durch mich zu meiner Herde kommt, der wird gerettet werden. Er kann durch diese Tür ein- und ausgehen, und er wird saftig grüne Weiden finden. 10Der Dieb kommt, um zu stehlen, zu schlachten und zu vernichten. Ich aber bringe Leben – und dies im Überfluss.

11Ich bin der gute Hirte. Ein guter Hirte setzt sein Leben für die Schafe ein. 12Anders ist es mit einem, dem die Schafe nicht gehören und der nur wegen des Geldes als Hirte arbeitet. Er flieht, wenn der Wolf kommt, und überlässt die Schafe sich selbst. Der Wolf fällt über die Schafe her und jagt die Herde auseinander. 13Einem solchen Mann liegt nichts an den Schafen. 14Ich aber bin der gute Hirte und kenne meine Schafe, und sie kennen mich; 15genauso wie mich mein Vater kennt und ich den Vater kenne. Ich gebe mein Leben für die Schafe.

16Zu meiner Herde gehören auch Schafe, die nicht aus diesem Stall sind. Auch sie muss ich herführen, und sie werden wie die übrigen meiner Stimme folgen. Dann wird es nur noch eine Herde und einen Hirten geben.

17Der Vater liebt mich, weil ich mein Leben hingebe, um es neu zu empfangen. 18Niemand nimmt mir mein Leben, ich gebe es freiwillig. Ich habe die Macht und die Freiheit, es zu geben und zu nehmen. Das ist der Auftrag, den ich von meinem Vater bekommen habe.«

19Da fingen die Juden wieder an, sich über Jesus zu streiten. 20Viele von ihnen sagten: »Er ist von einem Dämon besessen! Er ist wahnsinnig! Weshalb hört ihr ihm überhaupt noch zu?« 21Andere aber meinten: »So spricht doch kein Besessener! Kann denn ein Dämon einen Blinden heilen?«

Jesus im Kreuzverhör

22Es war Winter. In Jerusalem feierte man das Fest der Tempelweihe. 23Jesus hielt sich gerade im Tempel auf und ging in der Halle Salomos umher, 24als die Juden ihn umringten und fragten: »Wie lange lässt du uns noch im Ungewissen? Wenn du der Christus bist, der von Gott gesandte Retter, dann sag uns das ganz offen!«

25»Ich habe es euch schon gesagt, aber ihr wollt mir ja nicht glauben«, antwortete Jesus. »All das, was ich im Auftrag meines Vaters tue, beweist, wer ich bin. 26Aber ihr glaubt nicht, denn ihr gehört nicht zu meiner Herde. 27Meine Schafe hören auf meine Stimme; ich kenne sie, und sie folgen mir. 28Ihnen gebe ich das ewige Leben, und sie werden niemals umkommen. Keiner kann sie aus meiner Hand reißen. 29Mein Vater hat sie mir gegeben, und niemand ist stärker als er.10,29 Oder nach anderen Handschriften: Was mein Vater mir gab, ist größer als alles. Deshalb kann sie auch keiner der Hand meines Vaters entreißen. 30Ich und der Vater sind eins.«

31Wütend griffen da die Juden wieder nach Steinen, um ihn zu töten. 32Jesus aber sagte: »In Gottes Auftrag habe ich viele gute Taten vollbracht. Für welche wollt ihr mich töten?« 33»Nicht wegen einer guten Tat sollst du sterben«, antworteten sie, »sondern weil du nicht aufhörst, Gott zu verlästern. Du bist nur ein Mensch und behauptest trotzdem, Gott zu sein!«

34Jesus entgegnete: »Heißt es nicht in eurem Gesetz: ›Ich habe zu euch gesagt: Ihr seid Götter‹10,34 Psalm 82,6? 35Gott nennt die schon Götter, an die er sein Wort richtet. Und ihr wollt doch nicht etwa für ungültig erklären, was in der Heiligen Schrift steht? 36Wie könnt ihr den, der von Gott selbst auserwählt und in die Welt gesandt wurde, als Gotteslästerer beschimpfen, nur weil er sagt: ›Ich bin Gottes Sohn‹? 37Wenn meine Taten nicht die Taten meines Vaters sind, braucht ihr mir nicht zu glauben. 38Sind sie es aber, dann glaubt doch wenigstens diesen Taten, wenn ihr schon mir nicht glauben wollt! Dann werdet ihr erkennen und immer besser verstehen, dass der Vater in mir ist und ich im Vater bin!«

39Da versuchten sie wieder, Jesus festzunehmen, aber er konnte ihnen entkommen. 40Er ging auf die andere Seite des Jordan zurück und hielt sich dort auf, wo Johannes früher getauft hatte. 41Viele Menschen kamen zu ihm. »Johannes hat zwar keine Wunder getan«, meinten sie untereinander, »aber alles, was er von diesem Mann gesagt hat, ist wahr!« 42So begannen dort viele an Jesus zu glauben.

New Chhattisgarhi Translation (नवां नियम छत्तीसगढ़ी)

यूहन्ना 10:1-42

चरवाहा (गड़रिया) अऊ ओकर झुंड

1“मेंह तुमन ला सच कहत हंव कि जऊन मनखे ह दुवारी म ले होके भेड़ के कोठा म नइं आवय, पर कोनो आने कोति ले चघके आथे, ओह चोर अऊ डाकू अय। 2जऊन मनखे ह दुवारी म ले होके भीतर जाथे, ओह अपन भेड़मन के चरवाहा अय। 3ओकर बर रखवार ह दुवारी ला खोल देथे अऊ भेड़मन ओकर अवाज ला सुनथें; अऊ ओह अपन भेड़मन ला नांव लेके बलाथे अऊ ओमन ला बाहिर ले जाथे। 4जब ओह अपन जम्मो भेड़मन ला बाहिर निकार लेथे, तब ओह ओमन के आघू-आघू जाथे अऊ ओकर भेड़मन ओकर पाछू-पाछू चलथें, काबरकि ओमन ओकर अवाज ला चिनथें। 5ओमन कोनो अनजान मनखे के पाछू नइं जावंय, पर ओमन ओकर ले दूरिहा भाग जाथें, काबरकि ओमन अनजान मनखे के अवाज ला नइं चिनहें।” 6यीसू ह ओमन ला ए पटं‍तर कहिस, पर ओमन नइं समझिन कि ओह का कहत रिहिस।

7एकरसेति यीसू ह ओमन ला फेर कहिस, “मेंह तुमन ला सच कहत हंव कि भेड़मन बर मेंह दुवारी अंव। 8ओ जम्मो जऊन मन मोर पहिली आईन, ओमन चोर अऊ डाकू रिहिन, अऊ भेड़मन ओमन के नइं सुनिन। 9दुवारी मेंह अंव, जऊन ह मोर ले होके भीतर जाही, ओह उद्धार पाही। अऊ ओह भीतर-बाहिर आय-जाय करही अऊ चारा पाही। 10चोर ह सिरिप चोरी करे बर, हतिया करे बर अऊ नास करे बर आथे, पर मेंह एकरसेति आय हवंव, ताकि ओमन जिनगी पावंय अऊ भरपूर जिनगी पावंय।

11बने चरवाहा मेंह अंव। बने चरवाहा ह भेड़मन बर अपन परान देथे। 12बनिहार ह न तो चरवाहा अय अऊ न तो भेड़मन के मालिक। एकरसेति जब ओह भेड़िया ला आवत देखथे, त ओह भेड़मन ला छोंड़के भाग जाथे। तब भेड़िया ह भेड़मन ऊपर झपटथे अऊ ओमन ला तितिर-बितिर कर देथे। 13ओ मनखे ह भाग जाथे काबरकि ओह एक बनिहार ए अऊ ओला भेड़मन के कोनो फिकर नइं रहय।

14बने चरवाहा मेंह अंव; मेंह अपन भेड़मन ला जानथंव, अऊ मोर भेड़मन मोला जानथें – 15जइसने ददा ह मोला जानथे अऊ मेंह ददा ला जानथंव – अऊ मेंह भेड़मन बर अपन परान देथंव। 16मोर अऊ घलो भेड़ हवंय, जऊन मन ए भेड़ के कोठा म नइं एं। मोला ओमन ला घलो लाना जरूरी ए। ओमन घलो मोर अवाज ला सुनहीं; तब एके ठन झुंड अऊ एके झन चरवाहा होही। 17मोर ददा ह मोर ले एकरसेति मया करथे, काबरकि मेंह अपन परान ला देथंव कि मेंह ओला फेर लेय लेवंव। 18कोनो मोर परान नइं ले सकय; पर मेंह अपन खुद के ईछा ले एला देथंव। मोर करा ए अधिकार हवय कि मेंह अपन परान ला दे दंव अऊ ओला फेर लेय लेवंव। ए हुकूम मोला मोर ददा ले मिले हवय।”

19यीसू के ए गोठ के खातिर, यहूदीमन म फेर फूट पर गीस। 20ओमन ले कतको झन कहिन, “ओम परेत आतमा हवय अऊ ओह बइहा ए। ओकर गोठ ला काबर सुनबो?”

21पर आने मन कहिन, “एक परेत आतमा के धरे मनखे ह अइसने नइं गोठियावय। का एक परेत आतमा ह अंधरा के आंखीमन ला बने कर सकथे?”

यहूदीमन के अबिसवास

22जड़काला के समय रहय, अऊ ओ समय यरूसलेम सहर म अरपन के तिहार मनाय जावत रहय। 23यीसू ह मंदिर के इलाका म रहय अऊ ओह सुलेमान के परछी म टहलत रहय। 24यहूदीमन ओकर चारों खूंट जुरके ओला कहिन, “तेंह कब तक हमन ला दुबिधा म रखबे? यदि तेंह मसीह अस, त हमन ला साफ-साफ बता दे।”

25यीसू ह जबाब देके कहिस, “मेंह तुमन ला बता डारे हवंव, पर तुमन बिसवास नइं करव। जऊन काममन ला मेंह अपन ददा के नांव म करथंव, ओही काममन मोर गवाह हवंय, 26पर तुमन बिसवास नइं करव, काबरकि तुमन मोर भेड़ नो हव। 27मोर भेड़मन मोर अवाज ला सुनथें; मेंह ओमन ला जानथंव, अऊ ओमन मोर पाछू-पाछू चलथें। 28मेंह ओमन ला परमेसर के संग सदाकाल के जिनगी देथंव, अऊ ओमन कभू नास नइं होहीं; अऊ ओमन ला कोनो मोर हांथ ले छीन के नइं ले जा सकय। 29मोर ददा जऊन ह ओमन ला मोला दे हवय, ओह सबले बड़े अय, अऊ कोनो ओमन ला मोर ददा के हांथ ले छीन नइं सकय। 30मेंह अऊ मोर ददा एकेच अन।”

31यहूदीमन यीसू ला मारे बर फेर पथरा उठाईन। 32पर यीसू ह ओमन ला कहिस, “मेंह तुमन ला ददा कोति ले बहुंते बने काम देखाय हवंव। एम के कोन काम के सेति तुमन मोर ऊपर पथरा फेंकथव?”

33यहूदीमन ओला ए जबाब दीन, “ए बने काम बर हमन तोला पथरा नइं मारत हवन, पर परमेसर के निन्दा करे के कारन अइसने करथन, काबरकि तेंह एक मनखे होके अपन-आप ला परमेसर बनावत हस।”

34यीसू ह जबाब दीस, “का तुम्‍हर कानून म ए नइं लिखे हवय, जिहां परमेसर ह कहिस, ‘तुमन ईसवर अव’10:34 भजन-संहिता 82:6? 35ओह ओमन ला ईसवर कहिस, जेमन करा परमेसर के बचन आईस अऊ परमेसर के बचन गलत नइं हो सकय। 36ओकर बारे म तुमन का कहिथव जऊन ला ददा ह अपन खुद के रूप म अलग करिस अऊ ओला संसार म पठोईस? तुमन ओकर ले कहिथव कि तेंह परमेसर के निन्दा करथस, काबरकि मेंह ए कहेंव कि मेंह परमेसर के बेटा अंव। 37यदि मेंह अपन ददा के काममन ला नइं करत हंव, त मोर ऊपर बिसवास झन करव। 38पर यदि मेंह ओ काममन ला करथंव, त चाहे तुमन मोर ऊपर बिसवास झन करव, पर मोर काम ऊपर तो बिसवास करव, ताकि तुमन जान सकव अऊ समझ सकव कि ददा ह मोर म हवय अऊ मेंह ददा म हवंव।” 39तब ओमन फेर यीसू ला पकड़े के कोसिस करिन, पर ओह ओमन के हांथ ले बचके निकर गीस।

40तब यीसू ह यरदन नदी के ओ पार वापिस ओ जगह म गीस, जिहां यूहन्ना ह पहिली बतिसमा देवत रिहिस। अऊ ओह उहां रूक गीस। 41बहुंते मनखेमन ओकर करा आईन अऊ ओमन कहंय, “हालाकि यूहन्ना ह कोनो चमतकार के काम नइं देखाईस, पर जऊन बात यूहन्ना ह ए मनखे के बारे म कहिस, ओ जम्मो बात सच रिहिस।” 42अऊ उहां बहुंते मनखेमन यीसू ऊपर बिसवास करिन।