3. Mose 27 – HOF & HCV

Hoffnung für Alle

3. Mose 27:1-34

Besondere Gaben für Gott

(Kapitel 27)

Der Rückkauf von Gott geweihten Gaben

1Der Herr befahl Mose: 2»Sag den Israeliten:

Wenn jemand mir einen anderen Menschen mit einem Gelübde geweiht hat, kann er ihn mit einer bestimmten Summe wieder loskaufen.

3Für einen Mann zwischen 20 und 60 Jahren sind 50 Silberstücke zu zahlen, gemessen nach dem Gewicht, das im Heiligtum gilt; 4für eine Frau im gleichen Alter müssen 30 Silberstücke gezahlt werden, 5für einen Jungen zwischen 5 und 20 Jahren 20 Silberstücke und für ein Mädchen im gleichen Alter 10 Silberstücke. 6Ein Kleinkind zwischen einem Monat und 5 Jahren kann mit 5 Silberstücken losgekauft werden, wenn es ein Junge ist; für ein kleines Mädchen sind 3 Silberstücke zu bezahlen. 7Für einen Mann über 60 müssen 15, für eine Frau 10 Silberstücke entrichtet werden.

8Kann derjenige, der das Gelübde abgelegt hat, den festgesetzten Betrag nicht aufbringen, soll er zum Priester gehen. Dieser legt einen Schätzwert für die betreffende Person fest und soll sich dabei nach dem richten, was der Mann bezahlen kann.

9Hat jemand mir, dem Herrn, ein Tier geweiht, das auch als Opfergabe geeignet ist, dann gilt es als heilig 10und darf nicht eingetauscht werden, weder ein gutes gegen ein schlechtes noch ein schlechtes gegen ein gutes Tier. Tauscht dennoch jemand ein Tier gegen ein anderes ein, dann sollen beide Tiere mir gehören!

11Wird mir ein unreines Tier geweiht, das nicht als Opfergabe geeignet ist, dann soll der Besitzer es dem Priester zeigen. 12Dieser schätzt den Wert des Tieres nach dessen Vorzügen und Mängeln. An diesen festgelegten Preis soll man sich halten. 13Will der Eigentümer das Tier aber wieder zurückkaufen, muss er zum Schätzwert noch ein Fünftel dazugeben.

14Wenn jemand mir sein Haus weihen will, soll zunächst der Priester den Wert feststellen. Diese Schätzung ist rechtsgültig. 15Wenn der Besitzer sein Haus dann doch wieder zurückkaufen will, muss er zusätzlich zum Schätzwert ein Fünftel bezahlen. Dann gehört das Haus wieder ihm.

16Will jemand ein geerbtes Stück Land mir, dem Herrn, weihen, soll man den Wert nach dem erforderlichen Saatgut festlegen. Für ein Feld, auf dem man drei Zentner Gerste aussäen kann, müssen 50 Silberstücke gezahlt werden, 17vorausgesetzt, der Besitzer weiht mir sein Feld vom Erlassjahr an. 18Übereignet er das Grundstück erst danach, soll der Priester berechnen, wie viele Jahre noch bis zum nächsten Erlassjahr bleiben, und den Schätzwert entsprechend verringern. 19Falls der Besitzer sein Feld anschließend wieder zurückkaufen will, muss er ein Fünftel zum Schätzwert dazugeben. Dann gehört es wieder ihm. 20Wenn er das Feld, das er mir geweiht hat, an einen anderen verkauft, ohne es vorher von mir zurückzukaufen, dann verliert er für immer das Recht auf Rückkauf. 21In diesem Fall wird das Feld im nächsten Erlassjahr frei und ist dann für alle Zeiten mir geweiht. Es bleibt mein Eigentum und ist somit auch Eigentum der Priester.

22Wenn jemand mir, dem Herrn, ein Stück Land weiht, das er nicht geerbt, sondern gekauft hat, 23berechnet der Priester den Wert des Grundstücks nach der Zahl der Jahre bis zum nächsten Erlassjahr. Diesen Betrag zahlt der Betreffende noch am selben Tag als heilige Gabe für mich, den Herrn. 24Im nächsten Erlassjahr fällt das Land wieder an den ursprünglichen Besitzer zurück, der es verkauft hatte.

25Die Silberstücke für den Rückkauf werden gewogen nach dem Gewicht, das im Heiligtum gilt. Ein Silberstück wiegt zwölf Gramm.

26Das erstgeborene männliche Jungtier von allen Rindern, Schafen und Ziegen kann mir grundsätzlich nicht geweiht werden, weil es mir ohnehin gehört. 27Die erstgeborenen Männchen von unreinen Tieren stehen mir ebenfalls zu. Der ursprüngliche Besitzer kann ein solches Tier jedoch loskaufen, wenn er ein Fünftel des Schätzwertes zusätzlich bezahlt. Erwirbt er es nicht zurück, soll es zum festgesetzten Preis an einen anderen Käufer gehen.

28Hat jemand nun etwas von seinem Besitz unwiderruflich mir, dem Herrn, geweiht, ganz gleich ob Mensch, Tier oder Land, darf er nichts davon zurückerwerben oder an einen anderen verkaufen. Alles, was mir unwiderruflich geweiht wurde, ist besonders heilig. 29Wird mir ein Mensch übereignet, dann kann niemand ihn loskaufen. Er gehört allein mir und muss getötet werden!

30Ein Zehntel jeder Ernte an Getreide und Früchten ist als heilige Abgabe für mich, den Herrn, bestimmt. 31Will jemand den zehnten Teil seines Ertrags jedoch zurückkaufen, muss er zum festgesetzten Preis noch ein Fünftel dazugeben. 32Auch von den Rindern, Schafen und Ziegen gehört mir jedes zehnte Tier und gilt somit als heilig. Wenn die Tiere abgezählt werden, 33darf der Hirte sie nicht so vorbeiziehen lassen, dass nur die schwachen ausgewählt werden. Er darf auch kein gesundes gegen ein krankes austauschen. Sonst fallen beide Tiere unwiderruflich mir, dem Herrn, zu.« 34Diese Gebote hat der Herr den Israeliten am Berg Sinai durch Mose gegeben.

Hindi Contemporary Version

लेवी 27:1-34

मन्नत और छुटकारे के नियम

1याहवेह ने मोशेह को यह आज्ञा दी, 2“इस्राएल के घराने को यह आज्ञा दो: ‘जब कोई किसी व्यक्ति को याहवेह के लिए भेंट करने की विशेष मन्नत माने, तो उस व्यक्ति के ठहराए हुए मूल्य को इस प्रकार तय किया जाए: 3बीस वर्ष से साठ वर्ष तक की आयु के पुरुष के लिए पवित्र स्थान के शेकेल27:3 शेकेल करीब 11.5 ग्राम के अनुसार चांदी के पचास शेकेल; 4यदि कोई स्त्री है, तो उसके लिए तीस शेकेल; 5पांच वर्ष से बीस वर्ष तक की आयु के युवक के लिए बीस शेकेल तथा युवती के लिए दस शेकेल; 6एक माह से पांच वर्ष तक की आयु के बालक के लिए चांदी के पांच शेकेल तथा बालिका के लिए चांदी के तीन शेकेल; 7साठ वर्ष और इससे ऊपर की आयु के पुरुष के लिए पन्द्रह शेकेल तथा स्त्री के लिए दस शेकेल. 8किंतु यदि कोई इतना कंगाल है कि वह ठहराया हुआ मूल्य न दे पाए, तो उसे पुरोहित के सामने ले जाए और पुरोहित उसका मूल्य तय करे. पुरोहित उस व्यक्ति के साधनों के अनुसार ही उसका मूल्य तय करेगा, जिसने मन्नत मानी है.

9“ ‘यदि मन्नत के रूप में याहवेह को एक पशु भेंट किया जाना है, तो याहवेह को चढ़ाया गया पशु पवित्र माना जाएगा. 10वह न तो इसको बदले, न तो अच्छे के लिए बुरा और न ही बुरे के लिए अच्छा. किंतु यदि कोई ऐसा बदला कर भी लेता है, तो वह पशु और उसके बदले दूसरा पशु दोनों ही पवित्र माने जाएंगे. 11किंतु यदि मन्नत का पशु अशुद्ध हो और याहवेह को बलि देने योग्य न हो, तो वह उस पशु को पुरोहित के सामने लाए. 12पुरोहित उसे अच्छा या बुरा ठहराए और जो पुरोहित तय करेगा, वही मान्य होगा. 13यदि वह उसको छुड़ाना चाहे, तो तय मूल्य के अलावा उसका पांचवा भाग भी चुकाए.

14“ ‘यदि कोई अपना घर पवित्र कर याहवेह के लिए अलग करे, तो पुरोहित द्वारा इसको अच्छा या बुरा ठहराया जाए और जो पुरोहित तय करेगा, वह मान्य होगा. 15यदि वह व्यक्ति, जिसने इसे पवित्र किया है, वह अपने घर को छुड़ाना चाहे, तो तय मूल्य के अलावा उसका पांचवा भाग भी चुकाए, जिससे वह घर उसका हो जाएगा.

16“ ‘यदि कोई अपनी पैतृक संपत्ति के खेतों को याहवेह के लिए पवित्र करे, तो उसका मूल्य उसमें लगे बीज के अनुसार ठहराया जाए; बोने के लिए दस एफाह बीज के लिए चांदी के पचास शेकेल. 17यदि वह योवेल वर्ष से ही अपना खेत पवित्र करे, तो ठहराया गया मूल्य पूरा-पूरा दिया जाए; 18किंतु यदि वह योवेल वर्ष के बाद अपना खेत पवित्र करे, तो पुरोहित आनेवाले योवेल वर्ष तक जितने वर्ष बचे हैं, उनकी संख्या के अनुसार खेत का ठहराया हुआ मूल्य कम कर दे. 19यदि वह व्यक्ति, जिसने इसे पवित्र किया है, स्वयं इसे छुड़ाना चाहता है, तो ठहराए गए मूल्य के अलावा उसका पांचवा अंश भी चुकाए, कि वह खेत उसे लौटा दिया जाए. 20किंतु यदि वह उस खेत को नहीं छुड़ाना चाहता और उसे किसी दूसरे को बेच देता है, तब उस खेत को नहीं छुड़ाया जा सकता. 21यदि योवेल वर्ष में वह खेत छूट जाता है, तो वह याहवेह के लिए पवित्र खेत के समान अलग माना जाएगा. वह खेत पुरोहित की संपत्ति हो जाएगा.

22“ ‘यदि कोई व्यक्ति याहवेह के लिए ऐसा खेत पवित्र करे, जिसे उसने खरीदा हो और जो उसकी पैतृक संपत्ति का भाग न हो, 23तो पुरोहित योवेल वर्ष तक जितने वर्ष रह गए हों, उसके आधार पर उस खेत का मूल्य तय करे. और उस दिन पुरोहित तुम्हारे इस बेचने के दाम को याहवेह के लिए पवित्र दान के स्वरूप दे दे. 24योवेल वर्ष में वह खेत उस व्यक्ति को छोड़ दिया जाए जिससे उसने वह खेत खरीदा था, अर्थात् उस व्यक्ति को, जो उस खेत का असली स्वामी है. 25तुम्हारा हर एक बेचने का दाम ठहराए गए पवित्र स्थान के शेकेल के अनुसार ही हो. और एक शेकेल बीस गेरा का हो.

26“ ‘किंतु पशुओं के पहलौठे पर सिर्फ याहवेह का अधिकार है, कोई भी उसे समर्पण न करे; चाहे वह बैल हो अथवा मेढ़ा, उस पर याहवेह का अधिकार है. 27किंतु अशुद्ध पशुओं के पहिलौठे के लिए वह ठहराए गए मूल्य के अलावा पांचवा अंश भी जोड़कर भुगतान कर उसको छुड़ा ले, यदि इसको छुड़ाया न गया हो, तो वह तुम्हारे ठहराए गए मूल्य पर बेच दिया जाए.

28“ ‘परंतु यदि कोई व्यक्ति अपनी सारी संपत्ति में से, जो कुछ भी याहवेह के लिए अलग करता है—मनुष्य, पशु या पैतृक संपत्ति में से खेत; उसको न तो बेचा जाए और न ही उसको छुड़ाया जाए. जो कुछ याहवेह को पूरी तरह से समर्पित है, वह याहवेह के लिए परम पवित्र है.

29“ ‘जो मनुष्य याहवेह के लिए अलग किया गया है, उसे छुड़ाया न जाए. ज़रूरी है कि उसका वध कर दिया जाए.

30“ ‘भूमि का दसवां अंश, चाहे वह खेत की उपज का हो या वृक्षों के फलों का, उस पर याहवेह का अधिकार है. वह याहवेह के लिए पवित्र है. 31इसलिये यदि कोई अपने दसवें अंश का कुछ छुड़ाना चाहे, तो वह उसमें उसके ठहराए गए मूल्य का पांचवा अंश भी जोड़ दे. 32गाय-बैलों और भेड़-बकरियों का हर एक दसवां पशु, जो चरवाहे की लाठी के नीचे से निकलता है, वह याहवेह के लिए पवित्र है. 33वह उनमें अच्छे और बुरे पशु में भेद न करे और न उनको बदले. किंतु यदि कोई ऐसे बदल भी लेता है, तो वह पशु और उसके बदले के पशु दोनों ही पवित्र माने जाएंगे. इनको छुड़ाये न जाए.’ ”

34यही वे आदेश हैं, जिन्हें याहवेह ने मोशेह को इस्राएल के घराने के लिए सीनायी पर्वत पर दिए.