1. Könige 17 – HOF & HCV

Hoffnung für Alle

1. Könige 17:1-24

König Ahab von Israel und der Prophet Elia

(Kapitel 17–22)

Der Prophet Elia versteckt sich am Bach Krit

1Der Prophet Elia aus Tischbe in Gilead sagte eines Tages zu König Ahab: »Ich schwöre bei dem Herrn, dem Gott Israels, dem ich diene: Es wird in den nächsten Jahren weder Regen noch Tau geben, bis ich es sage!«

2Danach befahl der Herr Elia: 3»Du musst fort von hier! Geh nach Osten, überquere den Jordan und versteck dich am Bach Krit! 4Ich habe den Raben befohlen, dich dort mit Nahrung zu versorgen, und trinken kannst du aus dem Bach.« 5Elia gehorchte dem Herrn und versteckte sich am Bach Krit, der von Osten her in den Jordan fließt. 6Morgens und abends brachten die Raben ihm Brot und Fleisch, und seinen Durst stillte er am Bach.

Elia bei der Witwe in Zarpat

7Nach einiger Zeit vertrocknete der Bach, denn es hatte schon lange nicht mehr geregnet. 8Da sagte der Herr zu Elia: 9»Geh nach Phönizien in die Stadt Zarpat und bleib dort! Ich habe einer Witwe den Auftrag gegeben, dich zu versorgen.« 10Sogleich machte Elia sich auf den Weg.

Am Stadtrand von Zarpat traf er eine Witwe, die gerade Holz sammelte. Er bat sie um einen Becher Wasser. 11Als sie davoneilte und das Wasser holen wollte, rief er ihr nach: »Bring mir bitte auch ein Stück Brot mit!« 12Da blieb die Frau stehen und sagte: »Ich habe keinen Krümel Brot mehr, sondern nur noch eine Handvoll Mehl im Topf und ein paar Tropfen Öl im Krug. Das schwöre ich bei dem Herrn, deinem Gott. Gerade habe ich einige Holzscheite gesammelt. Ich will nun nach Hause gehen und die letzte Mahlzeit für mich und meinen Sohn zubereiten. Danach werden wir wohl verhungern.«

13Elia tröstete sie: »Hab keine Angst, so weit wird es nicht kommen! Geh nur und tu, was du dir vorgenommen hast! Aber back zuerst für mich ein kleines Fladenbrot und bring es mir heraus! Nachher kannst du für dich und deinen Sohn etwas zubereiten. 14Denn der Herr, der Gott Israels, verspricht dir: Das Mehl in deinem Topf soll nicht ausgehen und das Öl in deinem Krug nicht weniger werden, bis ich, der Herr, es wieder regnen lasse.«

15Die Frau ging nach Hause und tat, was Elia ihr gesagt hatte, und tatsächlich hatten Elia, die Frau und ihr Sohn Tag für Tag genug zu essen. 16Mehl und Öl gingen nicht aus, genau wie der Herr es durch Elia angekündigt hatte.

17Eines Tages wurde der Sohn der Witwe krank. Es ging ihm zusehends schlechter, und schließlich starb er. 18Da schrie die Mutter Elia an: »Was hast du eigentlich bei mir zu suchen, du Bote Gottes? Ich weiß genau, du bist nur hierhergekommen, um Gott an alles Böse zu erinnern, was ich getan habe! Und zur Strafe ist mein Sohn jetzt tot!«

19»Gib mir den Jungen!«, erwiderte Elia nur, nahm das tote Kind vom Schoß der Mutter und trug es hinauf in die Dachkammer, wo er wohnte. Er legte den Jungen auf sein Bett 20und begann zu beten: »Ach, Herr, mein Gott, warum tust du der Witwe, bei der ich zu Gast bin, so etwas an? Warum lässt du ihren Sohn sterben?« 21Dann legte er sich dreimal auf das tote Kind und flehte dabei zum Herrn: »Herr, mein Gott, ich bitte dich, erwecke diesen Jungen wieder zum Leben!«

22Der Herr erhörte Elias Gebet, und das Kind wurde lebendig17,22 Wörtlich: das Leben/die Seele kehrte in das Kind zurück, und es wurde lebendig.. 23Elia brachte ihn wieder hinunter, gab ihn seiner Mutter zurück und sagte: »Sieh doch, dein Sohn lebt!« 24Da antwortete die Frau Elia: »Jetzt bin ich ganz sicher, dass du ein Bote Gottes bist. Alles, was du im Auftrag des Herrn sagst, ist wahr.«

Hindi Contemporary Version

1 राजा 17:1-24

एलियाह द्वारा सूखे की पूर्वोक्ति

1गिलआद क्षेत्र के तिशबे नगर के निवासी एलियाह ने अहाब से कहा, “इस्राएल के जीवित परमेश्वर याहवेह की शपथ, मैं जिनका सेवक हूं, आनेवाले सालों में बिना मेरे कहे, न तो ओस पड़ेगी और न ही बारिश होगी.”

कौवे द्वारा एलियाह खिलाया जाना

2तब उसे याहवेह का यह संदेश मिला, 3“यहां से जाओ और पूर्व में जाकर केरिथ नाले के क्षेत्र में, जो यरदन के पूर्व में है, छिप जाओ. 4तुम्हें नाले का जल पीना होगा. मैंने कौवों को आदेश दिया है कि वे वहां तुम्हारे भोजन का इंतजाम करें.”

5तब एलियाह ने जाकर याहवेह के आदेश का पालन किया, और यरदन नदी के पूर्व में केरिथ नाले के पास रहने लगे. 6सुबह-सुबह कौवे उनके लिए रोटी और मांस ले आते थे; वैसे ही शाम को भी.

ज़रफता की विधवा

7कुछ समय बाद वह नाला सूख गया, क्योंकि उस देश में बारिश हुई ही नहीं थी: 8एलियाह को याहवेह से यह आदेश प्राप्‍त हुआ: 9“उठो, सीदोन प्रदेश के ज़रफता नगर को जाओ, और वहीं रहो; और सुनो, मैंने वहां एक विधवा को आदेश दिया है कि वह तुम्हारे भोजन की व्यवस्था करे.” 10तब एलियाह ज़रफता चले गए. जब वह नगर द्वार के पास पहुंचे, उन्होंने एक विधवा को ईंधन-लकड़ी इकट्ठी करते देखा. उन्होंने पुकारकर उससे विनती की, “पीने के लिए एक बर्तन में थोड़ा-सा जल ले आओ.” 11जब वह जल लेने जा ही रही थी, एलियाह ने दोबारा पुकारकर उससे विनती की: “मेरे लिए रोटी का एक टुकड़ा भी लेते आना.”

12उस स्त्री ने उन्हें उत्तर दिया, “याहवेह, आपके जीवित परमेश्वर की शपथ, मैंने कुछ भी नहीं पकाया है. घर पर एक बर्तन में मुट्ठी भर आटा और एक कुप्पी में थोड़ा-सा तेल ही बाकी रह गया है. अब मैं यहां थोड़ी सी लकड़ियां बीन रही थी, कि जाकर कुछ पका लूंगी, कि मैं और मेरा पुत्र इसे खाएं; उसके बाद मृत्यु तो तय है ही.”

13एलियाह ने उससे कहा, “डरो मत. वही करो जैसा अभी तुमसे कहा है. हां, मेरे लिए एक छोटी रोटी बनाकर ले आना, इसके बाद अपने लिए और अपने पुत्र के लिए भी बना लेना. 14याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का यह संदेश है, ‘उस बर्तन का आटा खत्म न होगा और तेल की वह कुप्पी उस दिन तक खाली न होगी, जब तक याहवेह पृथ्वी पर बारिश न भेज दें.’ ”

15वह गई और ठीक वैसा ही किया, जैसा एलियाह ने कहा था. एलियाह और उस स्त्री का परिवार इससे अनेक दिन तक भोजन करते रहे. 16उस बर्तन में न आटा खत्म हुआ और न ही तेल की वह कुप्पी कभी खाली हुई, एलियाह द्वारा दिए गए याहवेह के संदेश के अनुसार.

17कुछ समय बाद जो उस घर की स्वामिनी का पुत्र बीमार हो गया. उसका रोग ऐसा बढ़ गया था कि उसका सांस लेना बंद हो गया. 18उस स्त्री ने एलियाह से कहा, “परमेश्वर के दूत, मुझसे ऐसी कौन सी भूल हो गई है? आपके यहां आने का उद्देश्य यह है कि मुझे मेरा पाप याद कराया जाए और मेरे पुत्र के प्राण ले लिए जाएं?”

19एलियाह ने उससे कहा, “अपना पुत्र मुझे दो.” यह कहते हुए उन्होंने उसके पुत्र को उसके हाथों से ले लिया और उसे उसी ऊपरी कमरे में ले गए, जहां वह ठहरे हुए थे, और उसी बिछौने पर लिटा दिया, जिस पर वह सोते थे. 20उन्होंने याहवेह को पुकारते हुए कहा, “याहवेह, मेरे परमेश्वर, क्या इस विधवा पर, जिसके यहां मैंने आसरा लिया है, क्या, यह विपत्ति आपके ही के द्वारा लाई गई है, कि उसके पुत्र की मृत्यु हो गई है?” 21यह कहकर वह बालक पर तीन बार पसरे और याहवेह की दोहाई देते हुए कहा, “याहवेह, मेरे परमेश्वर, इस बालक के प्राण उसमें लौटा दीजिए.”

22याहवेह ने एलियाह की दोहाई सुन ली; बालक के प्राण उसमें लौट आए और वह जीवित हो गया. 23एलियाह बालक को लेकर ऊपरी कमरे से घर में आ गए और उसे उसकी माता को सौंप दिया. और उससे कहा, “देखो, तुम्हारा पुत्र जीवित है.”

24यह देख वह स्त्री एलियाह से कहने लगी, “अब मैं यह जान गई हूं कि आप परमेश्वर के दूत हैं और आपके मुख से निकला हुआ याहवेह का संदेश सच है.”