הבשורה על-פי לוקס 5 – HHH & HCV

Habrit Hakhadasha/Haderekh

הבשורה על-פי לוקס 5:1-39

1יום אחד עמד ישוע על חוף הכינרת ובישר את דבר האלוהים. מספר הנוכחים הלך וגדל, עד שהם נדחפו ונדחקו אליו מכל צד. 2ישוע הבחין בשתי סירות ריקות שעגנו ליד החוף. בעלי הסירות, שהיו דייגים במקצועם, רחצו באותו זמן את רשתותיהם. 3ישוע עלה על אחת הסירות, שהייתה של שמעון, וביקש ממנו להרחיק מעט את הסירה מהחוף, כדי שיוכל לשבת בתוכה ולדבר אל הקהל.

4לאחר שסיים ישוע לדבר אל הקהל, פנה אל שמעון ואמר: ”השט את הסירה אל מים עמוקים והשלך את הרשתות כדי לדוג.“

5”רבי,“ השיב שמעון, ”בלילה האחרון עבדנו קשה מאוד ולא תפסנו כלום. אולם אם אתה אומר לנו להשליך את הרשתות, נעשה כדברך.“

6הם השליכו את הרשתות לים, והפעם תפסו כל כך הרבה דגים עד שהרשתות היו כבדות מדי והחלו להיקרע! 7הם קראו לעזרתם את חבריהם שבסירה השנייה, ומילאו את שתי הסירות בדגים עד שכמעט טבעו!

8כשראה שמעון פטרוס את הפלא הגדול, נפל על ברכיו לרגלי ישוע ואמר: ”אדוני, עזוב אותי לנפשי, כי אני חוטא גדול מדי ואיני ראוי להיות במחיצתך.“ 9‏-10שמעון אמר דברים אלה משום שהוא וכל הנוכחים איתו, כולל שותפיו יעקב ויוחנן בני־זַבְדִּי, היו בתדהמה גדולה לנוכח השלל הבלתי רגיל.

”אל תפחד.“ אמר ישוע לשמעון. ”מעתה ואילך תהיה דייג של בני אדם.“

11לאחר שהשיטו את הסירות לחוף עזבו הכול והלכו אחרי ישוע. 12באחד הכפרים שבהם ביקר ישוע היה אדם נגוע בצרעת. בראותו את ישוע נפל האיש לרגליו והתחנן: ”אדוני, אם רק תרצה תוכל לרפא אותי.“

13ישוע הושיט את ידו, נגע במצורע ואמר: ”ודאי שאני רוצה. הירפא!“ ומיד נעלמה הצרעת.

14”אל תספר את הדבר לאיש!“ ציווה עליו ישוע. ”לך מיד אל הכהן והראה לו שנרפאת. אל תשכח לקחת איתך קרבן – כפי שציווה משה על המטוהרים מצרעת – כדי שכולם יראו שנרפאת.“ 15בכל זאת התפשטו השמועות על גבורתו של ישוע במהירות רבה, ואנשים רבים באו להקשיב לדבריו ולהירפא ממחלותיהם. 16אף־על־פי־כן התחמק מהם ישוע לעיתים קרובות והלך למקומות מבודדים כדי להתפלל.

17יום אחד, כשלימד ישוע כמנהגו, התקבצו סביבו בין השאר גם פרושים וסופרים שבאו מכפרי הגליל, מיהודה ומירושלים, וה׳ העניק לו גבורה גדולה לרפא את החולים.

18כעבור זמן קצר הופיעו מספר אנשים שנשאו חולה משותק על אלונקה. הם רצו להביא את החולה לפני ישוע, 19אולם בשל הצפיפות הרבה לא הצליחו לפלס דרך אל תוך הבית. נושאי האלונקה לא נואשו; הם עלו על גג הבית, עקרו כמה רעפים ממקומם והורידו את האלונקה מהגג אל אמצע החדר – לרגלי ישוע.

20כשראה ישוע את אמונתם, אמר לאיש המשותק: ”ידידי, נסלחו לך חטאיך!“

21”למי הוא חושב את עצמו?“ שאלו הפרושים והסופרים בלבם. ”הוא מחלל את שם האלוהים, רק אלוהים יכול לסלוח על חטאים!“ 22ישוע הבין את מחשבותיהם ולכן השיב להם: ”מדוע אתם חושבים שאני מחלל את שם אלוהים? 23מה לדעתכם קל יותר, לומר ’נסלחו לך חטאיך‘, או ’קום והתהלך‘? 24אני אוכיח לכם כי לבן־האדם יש בארץ סמכות מלאה לסלוח על חטאים!“ ישוע פנה אל האיש המשותק ופקד עליו: ”קום! קפל את האלונקה שלך ולך הביתה.“

25מיד קפץ האיש על רגליו לנגד עיניהם, קיפל את האלונקה שלו והלך לביתו כשהוא מהלל את האלוהים. 26כל הנוכחים נדהמו. ”היום ראינו פלא גדול“, אמרו ביראה והללו את האלוהים. 27לאחר מכן יצא ישוע מהעיר ופגש בדרך גובה־מכס אחד, לוי שמו, יושב בשער בית־המכס.

”בוא והיה תלמיד שלי“, אמר לו ישוע. 28לוי קם על רגליו, עזב הכול מאחוריו והלך אחרי ישוע.

29ערב אחד הכין לוי ארוחה חגיגית לכבוד ישוע והזמין גובי־מכס מהעבודה, ידידים, שכנים וקרובים.

30אולם הדבר לא מצא־חן בעיני הסופרים והפרושים, אשר התלוננו באוזני תלמידיו של ישוע: ”איך הוא יכול לאכול ולשתות בחברת החוטאים האלה?“ 31”החולים הם הזקוקים לרופא, לא הבריאים!“ השיב להם ישוע. 32”לא באתי לקרוא לצדיקים לחזור בתשובה, כי אם לחוטאים.“

33הם המשיכו להתלונן ואמרו: ”תלמידי יוחנן המטביל צמים לעיתים קרובות ומתפללים, וגם הפרושים נוהגים כך. מדוע אין תלמידיך צמים?“ 34”האם אנשים שמחים צמים?“ השיב ישוע. ”האם אורחים המוזמנים לחתונה צמים בחגיגת החתן? 35אולם יבוא יום שהחתן יילקח מהם ואז יצומו.“

36ישוע סיפר להם את המשל הבא: ”איש אינו קורע חולצה חדשה כדי לתפור ממנה טלאי על חולצה ישנה. מי שעושה כך לא זו בלבד שהוא מקלקל את החולצה החדשה, אלא שגם אינו יכול ליהנות מהחולצה הישנה, כי הטלאי אינו מתאים.

37”איש אינו שם יין חדש בחביות ישנות ורקובות, מפני שהיין החדש יבקע את החביות, וכך היין יישפך והחביות תיהרסנה. 38יין חדש יש לשים בחביות חדשות. 39אדם הרגיל לשתות יין ישן אינו חפץ לשנות את מנהגו ולשתות יין חדש. ’היין הישן מוצא־חן בעיני‘, הוא יאמר, ולא ירצה אפילו לטעום מהיין החדש.“

Hindi Contemporary Version

लूकॉस 5:1-39

पहले चार शिष्यों का बुलाया जाना

1एक दिन प्रभु येशु गन्‍नेसरत झील के तट पर खड़े थे. वहां एक बड़ी भीड़ उनसे परमेश्वर का वचन सुनने के लिए उन पर गिर पड़ रही थी. 2प्रभु येशु ने तट पर नावें देखीं. मछुवारे उन्हें छोड़कर चले गए थे क्योंकि वे अपने जाल धो रहे थे. 3प्रभु येशु एक नाव पर बैठ गए, जो शिमओन की थी. उन्होंने शिमओन से नाव को तट से कुछ दूर झील में ले जाने के लिए कहा और तब उन्होंने नाव में बैठकर इकट्ठा भीड़ को शिक्षा देनी प्रारंभ कर दी.

4जब वह अपना विषय समाप्‍त कर चुके, शिमओन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “नाव को गहरे जल में ले चलो और तब जाल डालो.”

5शिमओन प्रभु से बोले, “स्वामी! हम रात भर कठिन परिश्रम कर चुके हैं किंतु हाथ कुछ न लगा, फिर भी, इसलिये कि यह आप कह रहे हैं, मैं जाल डाल देता हूं.”

6यह कहते हुए उन्होंने जाल डाल दिए. जाल में इतनी बड़ी संख्या में मछलियां आ गई कि जाल फटने लगे 7इसलिये उन्होंने दूसरी नाव के सह मछुआरों को सहायता के लिए बुलाया. उन्होंने आकर सहायता की और दोनों नावों में इतनी मछलियां भर गईं कि बोझ के कारण नावें डूबने लगीं.

8सच्चाई का अहसास होते ही शिमओन प्रभु येशु के चरणों पर गिर कहने लगे, “आप मुझसे दूर ही रहिए प्रभु, मैं एक पापी मनुष्य हूं.” 9यह इसलिये कि शिमओन तथा उनके साथी मछुवारे इतनी मछलियों के पकड़े जाने से अचंभित थे. 10शिमओन के अन्य साथी, ज़ेबेदियॉस के दोनों पुत्र, याकोब और योहन भी यह देख भौचक्‍के रह गए थे.

तब प्रभु येशु ने शिमओन से कहा, “डरो मत! अब से तुम मछलियों को नहीं, मनुष्यों को मेरे पास लाओगे.” 11इसलिये उन्होंने नावें तट पर लगाई और सब कुछ त्याग कर प्रभु येशु के पीछे चलने लगे.

कोढ़ रोगी की शुद्धि

12किसी नगर में एक व्यक्ति था, जिसके सारे शरीर में कोढ़ रोग फैल चुका था. प्रभु येशु को देख उसने भूमि पर गिरकर उनसे विनती की, “प्रभु! यदि आप चाहें तो मुझे शुद्ध कर सकते हैं.”

13प्रभु येशु ने हाथ बढ़ाकर उसका स्पर्श किया और कहा, “मैं चाहता हूं, शुद्ध हो जाओ!” तत्काल ही उसे कोढ़ रोग से चंगाई प्राप्‍त हो गई.

14प्रभु येशु ने उसे आज्ञा दी, “इसके विषय में किसी से कुछ न कहना परंतु जाकर पुरोहित को अपने शुद्ध होने का प्रमाण दो तथा मोशेह द्वारा निर्धारित शुद्धि-बलि भेंट करो कि तुम्हारा कोढ़ से छुटकारा उनके सामने गवाही हो जाए.”

15फिर भी प्रभु येशु के विषय में समाचार और भी अधिक फैलता गया. परिणामस्वरूप लोग भारी संख्या में उनके प्रवचन सुनने और बीमारियों से चंगा होने की अभिलाषा से उनके पास आने लगे. 16प्रभु येशु अक्सर भीड़ को छोड़, गुप्‍त रूप से, एकांत में जाकर प्रार्थना किया करते थे.

लकवे से पीड़ित को स्वास्थ्यदान

17एक दिन, जब प्रभु येशु शिक्षा दे रहे थे, फ़रीसी5:17 फ़रीसी यहूदियों के एक संप्रदाय, जो कानून-व्यवस्था के सख्त पालन में विश्वास करता था तथा शास्त्री, जो गलील तथा यहूदिया प्रदेशों तथा येरूशलेम नगर से वहां आए थे, बैठे हुए थे. रोगियों को स्वस्थ करने का परमेश्वर का सामर्थ्य प्रभु येशु में सक्रिय था. 18कुछ व्यक्ति एक लकवे के रोगी को बिछौने पर लिटा कर वहां लाए. ये लोग रोगी को प्रभु येशु के सामने लाने का प्रयास कर रहे थे. 19जब वे भीड़ के कारण उसे भीतर ले जाने में असफल रहे तो वे छत पर चढ़ गए और छत में से उसके बिछौने सहित रोगी को प्रभु येशु के ठीक सामने उतार दिया.

20उनका यह विश्वास देख प्रभु येशु ने कहा, “मित्र! तुम्हारे पाप क्षमा किए जा चुके हैं.”

21फ़रीसी और शास्त्री अपने मन में विचार करने लगे, “कौन है यह व्यक्ति, जो परमेश्वर-निंदा कर रहा है? भला परमेश्वर के अतिरिक्त अन्य कौन पाप क्षमा कर सकता है?”

22यह जानते हुए कि उनके मन में क्या विचार उठ रहे थे, प्रभु येशु ने उनसे कहा, “आप अपने मन में इस प्रकार तर्क-वितर्क क्यों कर रहे हैं? 23क्या कहना सरल है, ‘तुम्हारे पाप क्षमा कर दिए गए’ या ‘उठो और चलो’? 24किंतु इसका उद्देश्य यह है कि तुम्हें यह मालूम हो जाए कि मनुष्य के पुत्र5:24 यह एक तरीका है जिससे प्रभु येशु खुद के बारे में कहते हैं को पृथ्वी पर पाप क्षमा का अधिकार सौंपा गया है.” तब रोगी से येशु ने कहा, “उठो, अपना बिछौना उठाओ और अपने घर जाओ.” 25उसी क्षण वह रोगी उन सबके सामने उठ खड़ा हुआ, अपना बिछौना उठाया, जिस पर वह लेटा हुआ था और परमेश्वर का धन्यवाद करते हुए घर चला गया. 26सभी हैरान रह गए. सभी परमेश्वर का धन्यवाद करने लगे. श्रद्धा से भरकर वे कह रहे थे, “हमने आज अनोखे काम होते देखे हैं.”

लेवी का बुलाया जाना

27जब वह वहां से जा रहे थे, उनकी दृष्टि एक चुंगी लेनेवाले पर पड़ी, जिनका नाम लेवी था. वह अपनी चौकी पर बैठे काम कर रहे थे. प्रभु येशु ने उन्हें आज्ञा दी, “आओ! मेरे पीछे हो लो!” 28लेवी उठे तथा सभी कुछ वहीं छोड़कर प्रभु येशु के पीछे हो लिए.

29प्रभु येशु के सम्मान में लेवी ने अपने घर पर एक बड़े भोज का आयोजन किया. बड़ी संख्या में चुंगी लेनेवालों के अतिरिक्त वहां अनेक अन्य व्यक्ति भी इकट्ठा थे. 30यह देख उस संप्रदाय के फ़रीसी और शास्त्री प्रभु येशु के शिष्यों से कहने लगे, “तुम लोग चुंगी लेनेवालों तथा अपराधियों के साथ क्यों खाते-पीते हो?”

31प्रभु येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “चिकित्सक की ज़रूरत स्वस्थ व्यक्ति को नहीं, रोगी को होती है; 32मैं पृथ्वी पर धर्मियों को नहीं परंतु पापियों को बुलाने आया हूं कि वे पश्चाताप करें.”

उपवास के प्रश्न का उत्तर

33फ़रीसियों और शास्त्रियों ने उन्हें याद दिलाते हुए कहा, “योहन के शिष्य अक्सर उपवास और प्रार्थना करते हैं. फ़रीसियों के शिष्य भी यही करते हैं किंतु आपके शिष्य तो खाते-पीते रहते हैं.”

34प्रभु येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या दूल्हे उपस्थिति में अतिथियों से उपवास की आशा की जा सकती है? 35किंतु वह समय आएगा, जब दूल्हा उनके मध्य से हटा लिया जाएगा—वे उस समय उपवास करेंगे.”

36प्रभु येशु ने उनके सामने यह दृष्टांत प्रस्तुत किया, “पुराने वस्त्र पर नये वस्त्र का जोड़ नहीं लगाया जाता. यदि कोई ऐसा करता है तब कोरा वस्त्र तो नाश होता ही है साथ ही वह जोड़ पुराने वस्त्र पर अशोभनीय भी लगता है. 37वैसे ही नया दाखरस पुरानी मश्कों में रखा नहीं जाता. यदि कोई ऐसा करे तो नया दाखरस मश्कों को फाड़कर बह जाएगा और मश्के भी नाश हो जाएगी. 38नया दाखरस नई मश्कों में ही रखा जाता है. 39पुराने दाखरस का पान करने के बाद कोई भी नए दाखरस की इच्छा नहीं करता क्योंकि वे कहते हैं, ‘पुराना दाखरस ही उत्तम है.’ ”