सूक्ति संग्रह 1 – HCV & JCB

Hindi Contemporary Version

सूक्ति संग्रह 1:1-33

उद्देश्य और विषय

1इस्राएल के राजा, दावीद के पुत्र शलोमोन की सूक्तियां:

2ज्ञान और शिक्षा से परिचय के लिए;

शब्दों को समझने के निमित्त ज्ञान;

3व्यवहार कुशलता के लिए निर्देश-प्राप्‍ति,

धर्मी, पक्षपात किए बिना तथा न्यायसंगति के लिए;

4साधारण व्यक्ति को समझ प्रदान करने के लिए,

युवाओं को ज्ञान और निर्णय-बुद्धि प्रदान करने के लिए.

5बुद्धिमान इन्हें सुनकर अपनी बुद्धि को बढ़ाए,

समझदार व्यक्ति बुद्धिमानी का परामर्श प्राप्‍त करे;

6कि वह सूक्ति तथा दृष्टांत को, बुद्धिमानों की योजना को

और उनके रहस्यों को समझ सके.

7याहवेह के प्रति श्रद्धा ही ज्ञान का प्रारम्भ-बिंदु है,

मूर्ख हैं वे, जो ज्ञान और अनुशासन को तुच्छ मानते हैं.

प्रस्तावना: बुद्धि को गले लगाने का प्रबोधन

पाप से संबंधित चेतावनी

8मेरे पुत्र, अपने पिता के अनुशासन पर ध्यान देना

और अपनी माता की शिक्षा को न भूलना.

9क्योंकि ये तुम्हारे सिर के लिए सुंदर अलंकार

और तुम्हारे कण्ठ के लिए माला हैं.

10मेरे पुत्र, यदि पापी तुम्हें प्रलोभित करें,

उनसे सहमत न हो जाना.

11यदि वे यह कहें, “हमारे साथ चलो;

हम हत्या के लिए घात लगाएंगे,

हम बिना किसी कारण निर्दोष पर छिपकर आक्रमण करें;

12अधोलोक के समान हम भी उन्हें जीवित ही निगल जाएं,

पूरा ही निगल जाएं, जैसे लोग कब्र में समा जाते हैं;

13तब हमें सभी अमूल्य वस्तुएं प्राप्‍त हो जाएंगी

इस लूट से हम अपने घरों को भर लेंगे;

14जो कुछ तुम्हारे पास है, सब हमें दो;

तब हम सभी का एक ही बटुआ हो जाएगा.”

15मेरे पुत्र, उनके इस मार्ग के सहयात्री न बन जाना,

उनके मार्गों का चालचलन करने से अपने पैरों को रोके रखना;

16क्योंकि उनके पैर बुराई की दिशा में ही दौड़ते हैं,

हत्या के लिए तो वे फुर्तीले हो जाते हैं.

17यदि किसी पक्षी के देखते-देखते उसके लिए जाल बिछाया जाए,

तो यह निरर्थक होता है!

18किंतु ये व्यक्ति ऐसे हैं, जो अपने लिए ही घात लगाए बैठे हैं;

वे अपने ही प्राण लेने की प्रतीक्षा में हैं.

19यही चाल है हर एक ऐसे व्यक्ति की, जो अवैध लाभ के लिए लोभ करता है;

यह लोभ अपने ही स्वामियों के प्राण ले लेगा.

ज्ञान का आह्वान

20ज्ञान गली में उच्च स्वर में पुकार रही है,

व्यापार केंद्रों में वह अपना स्वर उठा रही है;

21व्यस्त मार्गों के उच्चस्थ स्थान पर वह पुकार रही है,

नगर प्रवेश पर वह यह बातें कह रही है:

22“हे भोले लोगो, कब तक तुम्हें भोलापन प्रिय रहेगा?

ठट्ठा करनेवालो, कब तक उपहास तुम्हारे विनोद का विषय

और मूर्खो, ज्ञान तुम्हारे लिए घृणास्पद रहेगा?

23यदि मेरे धिक्कारने पर तुम मेरे पास आ जाते!

तो मैं तुम्हें अपनी आत्मा से भर देती,

तुम मेरे विचार समझने लगते.

24मैंने पुकारा और तुमने इसकी अनसुनी कर दी,

मैंने अपना हाथ बढ़ाया किंतु किसी ने ध्यान ही न दिया,

25मेरे सभी परामर्शों की तुमने उपेक्षा की

और मेरी किसी भी ताड़ना का तुम पर प्रभाव न पड़ा है,

26मैं भी तुम पर विपत्ति के अवसर पर हंसूंगी;

जब तुम पर आतंक का आक्रमण होगा, मैं तुम्हारा उपहास करूंगी—

27जब आतंक आंधी के समान

और विनाश बवंडर के समान आएगा,

जब तुम पर दुःख और संकट का पहाड़ टूट पड़ेगा.

28“उस समय उन्हें मेरा स्मरण आएगा, किंतु मैं उन्हें उत्तर न दूंगी;

वे बड़े यत्नपूर्वक मुझे खोजेंगे, किंतु पाएंगे नहीं.

29क्योंकि उन्होंने ज्ञान से घृणा की थी

और याहवेह के प्रति श्रद्धा को उपयुक्त न समझा.

30उन्होंने मेरा एक भी परामर्श स्वीकार नहीं किया

उन्होंने मेरी ताड़नाओं को तुच्छ समझा,

31परिणामस्वरूप वे अपनी करनी का फल भोगेंगे

उनकी युक्तियों का पूरा-पूरा परिणाम उन्हीं के सिर पर आ पड़ेगा.

32सरल-साधारण व्यक्ति सुसंगत मार्ग छोड़ देते और मृत्यु का कारण हो जाते हैं,

तथा मूर्खों की मनमानी उन्हें ले डूबती है;

33किंतु कोई भी, जो मेरी सुनता है, सुरक्षा में बसा रहेगा

वह निश्चिंत रहेगा, क्योंकि उसे विपत्ति का कोई भय न होगा.”

Japanese Contemporary Bible

箴言 知恵の泉 1:1-33

1

箴言の目的と主題

1ダビデ王の子、イスラエルの王ソロモンの教え。

2-3ソロモン王がこの教訓を書いたのは、

人々がどんな時にも物事を正しく判断し、

公正であってほしいと考えたからです。

4「未熟な人たちが賢くなってほしい。」

「若い人が正しい生活を送るように注意したい。」

5-6「賢い人には、

これらの知恵のことばの深い真理をもっと探究し、

より賢くなり、

人々を指導できるようになってほしい。」

それが彼の願いでした。

序文――知恵を求め、悪者には警戒しなさい

7-9では、どうしたら賢く

なれるのでしょう。

まず主を信じ、主を大切にすることです。

愚かな人は主の教えをさげすみます。

両親の忠告に従いなさい。

そうすれば、あとになって

人々にほめられるようになります。

10もし悪い仲間が、「われわれの仲間に入れ」

と言っても、きっぱり断りなさい。

11「待ち伏せして人を襲い、

身ぐるみ巻き上げ、殺そう、

12正しい者も悪い者も見境なく。

13盗んだ物はわれわれのものだ。

あらゆる物が!

14さあ、仲間に入れ。山分けしよう」と誘われても、

15決してその誘いにのってはいけません。

そんな者たちには近寄らないようにしなさい。

16彼らは悪いことをするだけが生きがいで、

人殺しは彼らの専売特許なのです。

17鳥は罠が仕掛けられているところを見れば、

近寄りません。

18ところが、彼らは自分で自分を罠にかけているのです。

愚かなことに、罠をかけて

自分のいのちをつけねらっているのです。

19暴力をふるったり人殺しをしたりする者たちは、

みなこうなるのです。

彼らには悲惨な死が待っています。

知恵の勧め

20知恵は町の中で叫んでいます。

21大通りの群衆や法廷の裁判官、

そして国中の人に呼びかけます。

22「愚か者よ、いつまで聞き分けがないのか。

いつまで知恵をさげすみ、素直に真実を認めないのか。

23さあ、わたしの言うことを聞きなさい。

あなたに知恵の霊を注ぎ、賢くしよう。

24わたしは何度も呼んだのに、

あなたがたはそばに来ようともしなかった。

嘆願までしたのに、知らん顔をしていた。

25わたしの忠告にも叱責にも、耳を貸そうとしない。

26あなたがたには、いつか災いが起こる。

そのとき、わたしはあなたがたを笑う。

27災いが嵐のように襲いかかり、

恐れや苦しみに打ちのめされそうになるとき、

28そのときになって助けてくれと言っても、

わたしはあなたがたを助けない。

わたしを懸命に捜しても、もう遅い。

29それはあなたがたが真実から目をそむけ、

主を信頼せず、

30わたしの忠告を聞かずに、

やりたいことをやっていたからだ。

31あなたがたは、その報いを受けなければならない。

自分で選んだ道なのだから、十分苦しみ、

恐ろしい思いをするがいい。

32わたしをきらうとは、全く愚かな人たちだ。

一歩一歩死に近づいているのも知らずに、

いい気になっている。

33しかし、わたしに聞き従う人は、

何の心配もなく、毎日を平和に暮らす。」