路加福音 8 – CCBT & HCV

Chinese Contemporary Bible (Traditional)

路加福音 8:1-56

撒種的比喻

1此後,耶穌到各城鎮去傳揚上帝國的福音。同行的有十二使徒, 2還有幾個曾被邪靈和疾病纏身、現在已被醫治的婦女。其中有抹大拉瑪麗亞,耶穌曾經從她身上趕出七個鬼, 3還有希律的管家苦撒的妻子約亞娜,此外還有蘇珊娜等其他婦女。她們用自己的錢財資助耶穌和門徒。

4那時,人群絡繹不絕地從各地聚集到耶穌面前,耶穌用比喻教導他們,說: 5「有一個農夫到田裡撒種,有些種子落在路旁,被人踐踏,又被飛鳥吃掉了; 6有些落在蓋著淺土的石頭地上,因水分不足,幼苗剛長出來就枯萎了; 7有些落在荊棘叢中,荊棘長起來便把幼苗擠住了; 8有些落在沃土裡,發芽生長,結出百倍的果實。」耶穌講完這番話後,高聲說:「有耳可聽的,就要留心聽。」

9門徒請耶穌解釋這比喻的意思, 10耶穌便說:「上帝國的奧祕只讓你們知道,對其他人,我就用比喻,使他們看卻看不見,聽卻聽不明白。 11這個比喻的意思是這樣,種子代表上帝的道, 12種子落在路旁是指人聽了道,隨後魔鬼來把道從他們心裡奪走了,不讓他們相信並得救; 13種子落在蓋著淺土的石頭地上是指人聽了道,欣然接受了,但是沒有根基,只是暫時相信,一遇到試煉就放棄了; 14種子落在荊棘叢中是指人聽了道,後來被生活的憂慮、錢財和享樂纏住了,以致結不出成熟的果實來; 15種子落在沃土裡則是指人聽了道,用誠實良善的心堅忍持守,至終結出果實。

點燈的比喻

16「沒有人點了燈,卻用器皿把它蓋起來或放到床底下,而是放在燈臺上,使進來的人能見到光。 17掩蓋的事終會暴露出來,隱藏的秘密終會被人知道。 18因此,你們要留心聽,因為凡有的,還要給他更多;凡沒有的,連他自以為已經擁有的也要被奪去。」

耶穌的親屬

19這時,耶穌的母親和兄弟來找祂,由於人太多,他們無法靠近耶穌, 20有人就對祂說:「你的母親和兄弟在外面想見你。」 21耶穌卻說:「聽見上帝的話語並遵行的人就是我的母親、我的弟兄。」

平靜風浪

22有一天,耶穌對門徒說:「我們到湖的對岸去吧。」於是他們坐船前往對岸。 23途中耶穌睡著了。不料湖上忽然狂風大作,船灌滿了水,非常危險。 24門徒過來喚醒耶穌,說:「主啊,主啊!我們快淹死了!」

耶穌醒來,就斥責風浪,頓時風平浪靜了。

25耶穌對他們說:「你們的信心在哪裡呢?」

門徒又驚又怕,彼此議論說:「祂究竟是誰?一發命令,連風浪都聽祂的!」

格拉森趕鬼

26他們渡過加利利湖,到了格拉森地區。 27耶穌上岸後,迎面遇見當地一個被鬼附身的人。那人長期赤身露體,不住在房屋裡,只住在墓穴中。 28他一見到耶穌,就仆倒在祂面前,高聲喊叫:「至高上帝的兒子耶穌,我和你有什麼關係?求求你,不要折磨我!」 29這是因為耶穌已命令污鬼離開那人。那人多次被污鬼操縱,人們用鐵鏈腳鐐把他鎖起來看管,他竟把鎖鏈也扯斷,被鬼催逼到荒野。

30耶穌問他:「你叫什麼名字?」

他說:「我叫『群』。」因為有一大群鬼附在那人身上。 31鬼不斷央求耶穌不要叫牠們到無底坑去。

32當時有一大群豬在附近山坡上覓食,污鬼就央求耶穌准許牠們進入豬群,耶穌答應了。 33於是那群鬼便離開那人,進入豬群。那群豬就一路奔下陡坡,衝進湖裡淹死了。 34放豬的人見此情形拔腿就跑,把這事告訴了城裡和鄉下的人。 35人們出來看個究竟,到了耶穌那裡,發現那曾被鬼附身的人衣著整齊、神智清醒地坐在耶穌腳前,他們都很害怕。 36目擊者把事情的始末告訴了他們。 37格拉森地區的居民都十分害怕,請求耶穌離開那裡,耶穌便乘船回去了。

38那從前被鬼附身的人懇求跟耶穌同行,耶穌卻對他說: 39「你回家吧,把上帝為你所行的奇事告訴別人。」他就回去,走遍全城,四處傳揚耶穌為他所行的奇事。

雅魯求救

40耶穌回到對岸,受到等候在那裡的百姓的歡迎。 41一個名叫雅魯的會堂主管走過來俯伏在耶穌腳前,求耶穌到他家去,因為他有一個大約十二歲的獨生女快要死了。

42耶穌前去雅魯家的時候,人群擁擠著祂。

患血漏病婦人的信心

43有一個患了十二年血漏病的婦人耗盡了積蓄,到處求醫,但沒有人能醫治她。 44婦人擠到耶穌的背後,摸了一下祂衣服的穗邊,她的血漏立刻止住了。

45耶穌問:「誰摸我?」沒有人說摸過祂。

彼得說:「老師,眾人都在擁擠你。」

46耶穌卻說:「一定有人摸了我,因為我感覺有能力從我身上出去。」

47那婦人知道無法隱瞞,就戰戰兢兢地走過來,俯伏在耶穌腳前,把她摸了耶穌的衣裳後頑疾馬上痊癒的始末當眾說了出來。

48耶穌對她說:「女兒,你的信心救了你!安心回去吧。」

雅魯女兒死而復活

49耶穌還在說話的時候,有人從雅魯家趕來,對雅魯說:「你的女兒已經死了,不用麻煩老師了。」

50耶穌聽見,就對雅魯說:「不要怕,只要信。你的女兒一定會好的!」

51到了雅魯家,耶穌只准彼得雅各約翰雅魯夫婦跟祂進去。 52屋內的人都在為那女孩哀傷哭泣,耶穌說:「不要哭,她沒有死,只是睡著了。」 53眾人就譏笑祂,因為他們明明知道那女孩死了。 54耶穌拉著那女孩的手,說:「孩子,起來!」 55她的靈魂就回來了,她立刻站了起來。耶穌吩咐人給她東西吃。 56她的父母非常驚訝,耶穌卻囑咐他們不要把這事傳開。

Hindi Contemporary Version

लूकॉस 8:1-56

प्रभु येशु और शिष्यों की सहयात्री स्त्रियां

1इसके बाद शीघ्र ही प्रभु येशु परमेश्वर के राज्य की घोषणा तथा प्रचार करते हुए नगर-नगर और गांव-गांव फिरने लगे. बारहों शिष्य उनके साथ साथ थे. 2इनके अतिरिक्त कुछ वे स्त्रियां भी उनके साथ यात्रा कर रही थी, जिन्हें रोगों और दुष्टात्माओं से छुटकारा दिलाया गया था: मगदालावासी मरियम, जिसमें से सात दुष्टात्मा निकाले गए थे, 3हेरोदेस के भंडारी कूज़ा की पत्नी योहान्‍ना, सूज़न्‍ना तथा अन्य स्त्रियां. ये वे स्त्रियां थी, जो अपनी संपत्ति से इनकी सहायता कर रही थी.

4जब नगर-नगर से बड़ी भीड़ इकट्ठा हो रही थी और लोग प्रभु येशु के पास आ रहे थे, प्रभु येशु ने उन्हें इस दृष्टांत के द्वारा शिक्षा दी.

5“एक किसान बीज बोने के लिए निकला. बीज बोने में कुछ बीज तो मार्ग के किनारे गिरे, पैरों के नीचे कुचले गए तथा आकाश के पक्षियों ने उन्हें चुग लिया. 6कुछ पथरीली भूमि पर जा पड़े, वे अंकुरित तो हुए परंतु नमी न होने के कारण मुरझा गए. 7कुछ बीज कंटीली झाड़ियों में जा पड़े और झाड़ियों ने उनके साथ बड़े होते हुए उन्हें दबा दिया. 8कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरे, बड़े हुए और फल लाए—जितना बोया गया था उससे सौ गुणा.”

जब प्रभु येशु यह दृष्टांत सुना चुके तो उन्होंने ऊंचे शब्द में कहा, “जिसके सुनने के कान हों वह सुन ले.”

9उनके शिष्यों ने उनसे प्रश्न किया, “इस दृष्टांत का अर्थ क्या है?” 10प्रभु येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “तुम्हें तो परमेश्वर के राज्य का भेद जानने की क्षमता प्रदान की गई है किंतु अन्यों के लिए मुझे दृष्टान्तों का प्रयोग करना पड़ता हैं जिससे कि,

“ ‘वे देखते हुए भी न देखें;

और सुनते हुए भी न समझें.’8:10 यशा 6:9

11“इस दृष्टांत का अर्थ यह है: बीज परमेश्वर का वचन है. 12मार्ग के किनारे की भूमि वे लोग हैं, जो वचन सुनते तो हैं किंतु शैतान आता है और उनके मन से वचन उठा ले जाता है कि वे विश्वास करके उद्धार प्राप्‍त न कर सकें 13पथरीली भूमि वे लोग हैं, जो परमेश्वर के वचन को सुनने पर खुशी से स्वीकारते हैं किंतु उनमें जड़ न होने के कारण वे विश्वास में थोड़े समय के लिए ही स्थिर रह पाते हैं. कठिन परिस्थितियों में घिरने पर वे विश्वास से दूर हो जाते हैं. 14वह भूमि जहां बीज कंटीली झाड़ियों के मध्य गिरा, वे लोग हैं, जो सुनते तो हैं किंतु जब वे जीवनपथ पर आगे बढ़ते हैं, जीवन की चिंताएं, धन तथा विलासिता उनका दमन कर देती हैं और वे मजबूत हो ही नहीं पाते. 15इसके विपरीत उत्तम भूमि वे लोग हैं, जो भले और निष्कपट हृदय से वचन सुनते हैं और उसे दृढतापूर्वक थामे रहते हैं तथा निरंतर फल लाते हैं.

दीपक का दृष्टांत

16“कोई भी दीपक को जलाकर न तो उसे बर्तन से ढांकता है और न ही उसे पलंग के नीचे रखता है परंतु उसे दीवट पर रखता है कि कमरे में प्रवेश करने पर लोग देख सकें. 17ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है जिसे प्रकट न किया जाएगा तथा ऐसा कोई रहस्य नहीं जिसे उजागर कर सामने न लाया जाएगा. 18इसलिये इसका विशेष ध्यान रखो कि तुम कैसे सुनते हो. जिस किसी के पास है, उसे और भी दिया जाएगा तथा जिस किसी के पास नहीं है, उसके पास से वह भी ले लिया जाएगा, जो उसके विचार से उसका है.”

प्रभु येशु के वास्तविक परिजन

19तब प्रभु येशु की माता और उनके भाई उनसे भेंट करने वहां आए किंतु लोगों की भीड़ के कारण वे उनके पास पहुंचने में असमर्थ रहे. 20किसी ने प्रभु येशु को सूचना दी, “आपकी माता तथा भाई बाहर खड़े हैं—वे आपसे भेंट करना चाह रहे हैं.”

21प्रभु येशु ने कहा, “मेरी माता और भाई वे हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते तथा उसका पालन करते हैं.”

बवंडर को शांत करना

22एक दिन प्रभु येशु ने शिष्यों से कहा, “आओ, हम झील की दूसरी ओर चलें.” इसलिये वे सब नाव में बैठकर चल दिए. 23जब वे नाव खे रहे थे प्रभु येशु सो गए. उसी समय झील पर प्रचंड बवंडर उठा, यहां तक कि नाव में जल भरने लगा और उनका जीवन खतरे में पड़ गया.

24शिष्यों ने जाकर प्रभु येशु को जगाते हुए कहा, “स्वामी! स्वामी! हम नाश हुए जा रहे हैं!” प्रभु येशु उठे.

और बवंडर और तेज लहरों को डांटा; बवंडर थम गया तथा तेज लहरें शांत हो गईं. 25“कहां है तुम्हारा विश्वास?” प्रभु येशु ने अपने शिष्यों से प्रश्न किया.

भय और अचंभे में वे एक दूसरे से पूछने लगे, “कौन हैं यह, जो बवंडर और लहरों तक को आदेश देते हैं और वे भी उनके आदेशों का पालन करती हैं!”

दुष्टात्माओं को सूअरों के झुंड में भेजना

26इसके बाद वे गिरासेन प्रदेश में आए, जो गलील झील के दूसरी ओर है. 27जब प्रभु येशु तट पर उतरे, उनकी भेंट एक ऐसे व्यक्ति से हो गई, जिसमें अनेक दुष्टात्मा समाये हुए थे. दुष्टात्मा से पीड़ित व्यक्ति उनके पास आ गया. यह व्यक्ति लंबे समय से कपड़े न पहनता था. वह मकान में नहीं परंतु कब्रों की गुफाओं में रहता था. 28प्रभु येशु पर दृष्टि पड़ते ही वह चिल्लाता हुआ उनके चरणों में जा गिरा और अत्यंत ऊंचे शब्द में चिल्लाया, “येशु! परम प्रधान परमेश्वर के पुत्र! मेरा और आपका एक दूसरे से क्या लेना देना? आपसे मेरी विनती है कि आप मुझे कष्ट न दें,” 29क्योंकि प्रभु येशु दुष्टात्मा को उस व्यक्ति में से निकल जाने की आज्ञा दे चुके थे. समय समय पर दुष्टात्मा उस व्यक्ति पर प्रबल हो जाया करता था तथा लोग उसे सांकलों और बेड़ियों में बांधकर पहरे में रखते थे, फिर भी वह दुष्टात्मा बेड़ियां तोड़ उसे सुनसान स्थान में ले जाता था.

30प्रभु येशु ने उससे प्रश्न किया, “क्या नाम है तुम्हारा?”

“विशाल सेना,” उसने उत्तर दिया क्योंकि अनेक दुष्टात्मा उसमें समाए हुए थे. 31दुष्टात्मा-गण प्रभु येशु से निरंतर विनती कर रहे थे कि वह उन्हें पाताल में न भेजें.

32वहीं पहाड़ी के ढाल पर सूअरों का एक विशाल समूह चर रहा था. दुष्टात्माओं ने प्रभु येशु से विनती की कि वह उन्हें सूअरों में जाने की अनुमति दे दें. प्रभु येशु ने उन्हें अनुमति दे दी. 33जब दुष्टात्मा उस व्यक्ति में से बाहर आए, उन्होंने तुरंत जाकर सूअरों में प्रवेश किया और सूअर ढाल से झपटकर दौड़ते हुए झील में जा डूबे.

34इन सूअरों के चरवाहे यह देख दौड़कर गए और नगर तथा उस प्रदेश में सब जगह इस घटना के विषय में बताने लगे. 35लोग वहां यह देखने आने लगे कि क्या हुआ है. तब वे प्रभु येशु के पास आए. वहां उन्होंने देखा कि वह व्यक्ति, जो पहले दुष्टात्मा से पीड़ित था, वस्त्र धारण किए हुए, पूरी तरह स्वस्थ और सचेत प्रभु येशु के चरणों में बैठा हुआ है. यह देख वे हैरान रह गए. 36जिन्होंने यह सब देखा, उन्होंने जाकर अन्यों को सूचित किया कि यह दुष्टात्मा से पीड़ित व्यक्ति किस प्रकार दुष्टात्मा से मुक्त हुआ है. 37तब गिरासेन प्रदेश तथा पास के क्षेत्रों के सभी निवासियों ने प्रभु येशु को वहां से दूर चले जाने को कहा क्योंकि वे अत्यंत भयभीत हो गए थे. इसलिये प्रभु येशु नाव द्वारा वहां से चले गए.

38वह व्यक्ति जिसमें से दुष्टात्मा निकाला गया था उसने प्रभु येशु से विनती की कि वह उसे अपने साथ ले लें किंतु प्रभु येशु ने उसे यह कहते हुए विदा किया, 39“अपने परिजनों में लौट जाओ तथा इन बड़े-बड़े कामों का वर्णन करो, जो परमेश्वर ने तुम्हारे लिए किए हैं.” इसलिये वह लौटकर सभी नगर में यह वर्णन करने लगा कि प्रभु येशु ने उसके लिए कैसे बड़े-बड़े काम किए हैं.

रोगी स्त्री की चंगाई और मरी हुई लड़की को जीवनदान

40जब प्रभु येशु झील की दूसरी ओर पहुंचे, वहां इंतजार करती भीड़ ने उनका स्वागत किया. 41जाइरूस नामक एक व्यक्ति, जो यहूदी सभागृह का प्रधान था, उनसे भेंट करने आया. उसने प्रभु येशु के चरणों पर गिरकर उनसे विनती की कि वह उसके साथ उसके घर जाएं 42क्योंकि उसकी एकमात्र बेटी, जो लगभग बारह वर्ष की थी, मरने पर थी.

जब प्रभु येशु वहां जा रहे थे, मार्ग में वह भीड़ में दबे जा रहे थे. 43वहां बारह वर्ष से लहूस्राव-पीड़ित एक स्त्री थी. उसने अपनी सारी जीविका वैद्यों पर खर्च कर दी थी, पर वह किसी भी इलाज से स्वस्थ न हो पाई थी. 44इस स्त्री ने पीछे से आकर येशु के वस्त्र के छोर को छुआ, और उसी क्षण उसका लहू बहना बंद हो गया.

45“किसने मुझे छुआ है?” प्रभु येशु ने पूछा.

जब सभी इससे इनकार कर रहे थे, पेतरॉस ने उनसे कहा, “स्वामी! यह बढ़ती हुई भीड़ आप पर गिरी जा रही है.”

46किंतु प्रभु येशु ने उनसे कहा, “किसी ने तो मुझे छुआ है क्योंकि मुझे यह पता चला है कि मुझमें से सामर्थ्य निकली है.”

47जब उस स्त्री ने यह समझ लिया कि उसका छुपा रहना असंभव है, भय से कांपती हुई सामने आई और प्रभु येशु के चरणों में गिर पड़ी. उसने सभी उपस्थित भीड़ के सामने यह स्वीकार किया कि उसने प्रभु येशु को क्यों छुआ था तथा कैसे वह तत्काल रोग से चंगी हो गई. 48इस पर प्रभु येशु ने उससे कहा, “बेटी! तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें स्वस्थ किया है. परमेश्वर की शांति में लौट जाओ.”

49जब प्रभु येशु यह कह ही रहे थे, यहूदी सभागृह प्रधान जाइरूस के घर से किसी व्यक्ति ने आकर सूचना दी, “आपकी पुत्री की मृत्यु हो चुकी है, अब गुरुवर को कष्ट न दीजिए.”

50यह सुन प्रभु येशु ने जाइरूस को संबोधित कर कहा, “डरो मत! केवल विश्वास करो और वह स्वस्थ हो जाएगी.”

51जब वे जाइरूस के घर पर पहुंचे, प्रभु येशु ने पेतरॉस, योहन और याकोब तथा कन्या के माता-पिता के अतिरिक्त अन्य किसी को अपने साथ भीतर आने की अनुमति नहीं दी. 52उस समय सभी उस बालिका के लिए रो-रोकर शोक प्रकट कर रहे थे. “बंद करो यह रोना-चिल्लाना!” प्रभु येशु ने आज्ञा दी, “उसकी मृत्यु नहीं हुई है—वह सिर्फ सो रही है.”

53इस पर वे प्रभु येशु पर हंसने लगे क्योंकि वे जानते थे कि बालिका की मृत्यु हो चुकी है. 54प्रभु येशु ने बालिका का हाथ पकड़कर कहा, “बेटी, उठो!” 55उसके प्राण उसमें लौट आए और वह तुरंत खड़ी हो गई. प्रभु येशु ने उनसे कहा कि बालिका को खाने के लिए कुछ दिया जाए. 56उसके माता-पिता चकित रह गए किंतु प्रभु येशु ने उन्हें निर्देश दिया कि जो कुछ हुआ है, उसकी चर्चा किसी से न करें.