路加福音 7 – CCBT & HCV

Chinese Contemporary Bible (Traditional)

路加福音 7:1-50

百夫長的信心

1耶穌向眾人講完道後,進了迦百農2當時,有一個百夫長很賞識的奴僕病了,生命垂危。 3百夫長聽說耶穌的事,就託幾位猶太人的長老去請耶穌來醫治他的奴僕。 4他們便來懇求耶穌,說:「這位百夫長值得你幫助, 5因為他愛我們的同胞,為我們建造會堂。」 6耶穌就跟他們去了。

快抵達時,那百夫長又請幾位朋友去見耶穌,對祂說:「主啊,不用勞駕,我不配讓你親自來我家。 7我自認不配見你的面,只要你一句話,我的奴僕必定康復。 8因為我有上司,也有部下。我命令我的部下去,他就去;要他來,他就來。我吩咐奴僕做什麼事,他一定照辦。」

9耶穌聽了這番話,感到驚奇,轉身對跟從祂的百姓說:「我告訴你們,就是在以色列,我也從未見過有這麼大信心的人。」

10派去的幾位朋友回到百夫長家裡,發現那奴僕已經痊癒了。

寡婦獨子的起死回生

11過了不久7·11 過了不久」有古卷作「次日」。,耶穌去拿因城,隨行的有門徒和一大群人。 12耶穌快到城門口時,從城裡走出一隊送殯的人,死者是一個寡婦的獨子,有許多城中的人陪著她。 13耶穌看見那寡婦,憐憫之心油然而生,就對她說:「不要哭!」 14隨即上前按住抬屍架,抬的人停了下來。耶穌說:「年輕人,我吩咐你起來!」 15那死者就坐了起來,並開口說話。耶穌把他交給他母親。

16在場的人驚懼萬分,把榮耀歸給上帝,說:「我們中間出了一位大先知!」又說:「上帝眷顧了祂的百姓!」 17有關祂的這消息傳遍了猶太和附近地區。

施洗者約翰的疑問

18約翰從自己的門徒那裡獲悉這些事後, 19就叫了兩個門徒來,派他們去問主:「將要來的那位就是你嗎?還是我們要等別人呢?」

20他們找到耶穌,便問:「施洗者約翰派我們來請教你,『將要來的那位就是你嗎?還是我們要等別人呢?』」

21那時,耶穌剛治好了許多患各種疾病和被鬼附身的人,又使許多瞎子得見光明。 22耶穌便回答說:「你們回去把所見所聞告訴約翰,就是瞎子看見,瘸子走路,痲瘋病人得潔淨,聾子聽見,死人復活,窮人聽到福音。 23凡對我沒有失去信心的人有福了!」

耶穌稱讚施洗者約翰

24約翰的門徒離去後,耶穌對眾人談論約翰,說:「你們從前去曠野要看什麼呢?看隨風搖動的蘆葦嗎? 25如果不是,你們到底想看什麼?是看穿綾羅綢緞的人嗎?那些衣著華麗、生活奢侈的人住在王宮裡。 26你們究竟想看什麼?看先知嗎?是的,我告訴你們,他不只是先知。 27聖經上說,『看啊,我要差遣我的使者在你前面為你預備道路。』這裡所指的就是約翰28我告訴你們,凡婦人所生的,沒有一個比約翰大,但上帝國中最微不足道的也比他大。」

29眾百姓和稅吏聽了這番話,都承認上帝是公義的,因為他們接受了約翰的洗禮。 30但那些法利賽人和律法教師沒有接受約翰的洗禮,拒絕了上帝為他們所定的旨意。

31主又說:「我用什麼來比擬這個世代的人呢?他們像什麼呢? 32他們就如街頭上戲耍的孩童——彼此呼叫,

『我們吹娶親的樂曲,

你們不跳舞;

我們唱送葬的哀歌,

你們不哭泣。』

33施洗者約翰來了,禁食禁酒,你們就說他被鬼附身了; 34人子來了,又吃又喝,你們就說,『看啊,祂是個貪吃好酒之徒,與稅吏和罪人爲友!』 35然而,智慧會在追求智慧的人身上得到驗證。」

罪婦的悔改

36有一個法利賽人請耶穌到他家裡吃飯,耶穌應邀赴宴。 37那城裡住著一個女人,生活敗壞。她聽說耶穌在那法利賽人家裡吃飯,就帶了一個盛滿香膏的玉瓶進去。 38她站在耶穌背後,挨著祂的腳哭,淚水滴濕了祂的腳,就用自己的頭髮擦乾,又連連親祂的腳,並抹上香膏。

39請耶穌的法利賽人看在眼裡,心想:「如果這人真的是先知,就該知道摸祂的是誰,是個什麼樣的女人,她是個罪人。」

40耶穌對他說:「西門,我有話跟你說。」

西門答道:「老師,請說。」

41耶穌說:「有一個債主借給一個人五百個銀幣,又借給另一個人五十個銀幣。 42二人都沒有能力還債,這位債主就免了他們的債務。你想,哪一位會更愛債主呢?」

43西門答道:「我相信是那個被免去較多債的人。」

44耶穌說:「你判斷得對!」隨後轉向那女人,繼續對西門說:「你看見這女人了嗎?我到你家裡來,你沒有拿水給我洗腳,這女人卻用她的眼淚洗我的腳,還親自用頭髮擦乾。 45你沒有親吻我,但我進來以後,這女人卻不停地吻我的腳。 46你沒有用油為我抹頭,這女人卻用香膏抹我的腳。 47所以我告訴你,她眾多的罪都被赦免了,因此她的愛深切;那些獲得赦免少的,他們的愛也少。」

48耶穌對那女人說:「你的罪都被赦免了。」

49同席的人彼此議論說:「這人是誰?竟然能赦免人的罪!」

50耶穌又對那女人說:「你的信心救了你,平安地走吧!」

Hindi Contemporary Version

लूकॉस 7:1-50

रोमी अधिकारी का विश्वास

1लोगों को ऊपर लिखी शिक्षा देने के बाद प्रभु येशु कफ़रनहूम नगर लौट गए. 2वहां एक शताधिपति का एक अत्यंत प्रिय सेवक रोग से बिस्तर पर था. रोग के कारण वह लगभग मरने पर था. 3प्रभु येशु के विषय में मालूम होने पर सेनापति ने कुछ वरिष्ठ यहूदियों को प्रभु येशु के पास इस विनती के साथ भेजा, कि वह आकर उसके सेवक को चंगा करें. 4उन्होंने प्रभु येशु के पास आकर उनसे विनती कर कहा, “यह सेनापति निश्चय ही आपकी इस दया का पात्र है 5क्योंकि उसे हमारी जनता से प्रेम है तथा उसने हमारे लिए सभागृह भी बनाया है.” 6इसलिये प्रभु येशु उनके साथ चले गए.

प्रभु येशु उसके घर के पास पहुंचे ही थे कि शताधिपति ने अपने मित्रों के द्वारा उन्हें संदेश भेजा, “प्रभु! आप कष्ट न कीजिए. मैं इस योग्य नहीं हूं कि आप मेरे घर पधारें. 7अपनी इसी अयोग्यता को ध्यान में रखते हुए मैं स्वयं आपसे भेंट करने नहीं आया. आप मात्र वचन कह दीजिए और मेरा सेवक स्वस्थ हो जाएगा. 8मैं स्वयं बड़े अधिकारियों के अधीन नियुक्त हूं और सैनिक मेरे अधिकार में हैं. मैं किसी को आदेश देता हूं, ‘जाओ!’ तो वह जाता है और किसी को आदेश देता हूं, ‘इधर आओ!’ तो वह आता है. अपने सेवक से कहता हूं, ‘यह करो!’ तो वह वही करता है.”

9यह सुनकर प्रभु येशु अत्यंत चकित हुए और मुड़कर पीछे आ रही भीड़ को संबोधित कर बोले, “मैं यह बताना सही समझता हूं कि मुझे इस्राएलियों तक में ऐसा दृढ़ विश्वास देखने को नहीं मिला.” 10वे, जो सेनापति द्वारा प्रभु येशु के पास भेजे गए थे, जब घर लौटे तो यह पाया कि वह सेवक स्वस्थ हो चुका था.

विधवा के पुत्र का जी उठना

11इसके कुछ ही समय बाद प्रभु येशु नाइन नामक एक नगर को गए. एक बड़ी भीड़ और उनके शिष्य उनके साथ थे. 12जब वह नगर द्वार पर पहुंचे, एक मृत व्यक्ति अंतिम संस्कार के लिए बाहर लाया जा रहा था—अपनी माता का एकलौता पुत्र और वह स्वयं विधवा थी; और उसके साथ नगर की एक बड़ी भीड़ थी. 13उसे देख प्रभु येशु करुणा से भर उठे. उन्होंने उससे कहा, “रोओ मत!”

14तब उन्होंने जाकर उस अर्थी को स्पर्श किया. यह देख वे, जिन्होंने उसे उठाया हुआ था, रुक गए. तब प्रभु येशु ने कहा, “युवक! मैं तुमसे कहता हूं, उठ जाओ!” 15मृतक उठ बैठा और वार्तालाप करने लगा. प्रभु येशु ने माता को उसका जीवित पुत्र सौंप दिया.

16वे सभी श्रद्धा में परमेश्वर का धन्यवाद करने लगे. वे कह रहे थे, “हमारे मध्य एक तेजस्वी भविष्यवक्ता का आगमन हुआ है. परमेश्वर ने अपनी प्रजा की सुधि ली है.” 17प्रभु येशु के विषय में यह समाचार यहूदिया प्रदेश तथा पास के क्षेत्रों में फैल गया.

बपतिस्मा देनेवाले योहन की शंका का समाधान

18योहन के शिष्यों ने उन्हें इस विषय में सूचना दी. 19योहन ने अपने दो शिष्यों को प्रभु के पास इस प्रश्न के साथ भेजा, “क्या आप वही हैं जिनके आगमन की प्रतीक्षा की जा रही है7:19 अर्थात् मसीह, या हम किसी अन्य की प्रतीक्षा करें?”

20जब वे दोनों प्रभु येशु के पास पहुंचे उन्होंने कहा, “बपतिस्मा देनेवाले योहन ने हमें आपके पास यह पूछने भेजा है, ‘क्या आप वही हैं, जिनके आगमन की प्रतीक्षा की जा रही है, या हम किसी अन्य की प्रतीक्षा करें?’ ”

21ठीक उसी समय प्रभु येशु अनेकों को स्वस्थ कर रहे थे, जो रोगी, पीड़ित और दुष्टात्मा के सताए हुए थे. वह अनेक अंधों को भी दृष्टि प्रदान कर रहे थे. 22इसलिये प्रभु येशु ने उन दूतों उत्तर दिया, “तुमने जो कुछ सुना और देखा है उसकी सूचना योहन को दे दो: अंधे दृष्टि पा रहे हैं, अपंग चल रहे हैं, कोढ़ी शुद्ध होते जा रहे हैं, बहरे सुनने लगे हैं, मृतक जीवित किए जा रहे हैं तथा कंगालों में सुसमाचार का प्रचार किया जा रहा है7:22 यशा 35:5-6; 61:1. 23धन्य है वह, जिसका विश्वास मुझ पर से नहीं उठता.”

24योहन का संदेश लानेवालों के विदा होने के बाद प्रभु येशु ने भीड़ से योहन के विषय में कहना प्रारंभ किया, “तुम्हारी आशा बंजर भूमि में क्या देखने की थी? हवा में हिलते हुए सरकंडे को? 25यदि यह नहीं तो फिर क्या देखने गए थे? कीमती वस्त्र धारण किए हुए किसी व्यक्ति को? जो ऐसे वस्त्र धारण करते हैं उनका निवास तो राजमहलों में होता है. 26तुम क्यों गए थे? किसी भविष्यवक्ता से भेंट करने? हां! मैं तुम्हें बता रहा हूं कि यह वह हैं, जो भविष्यवक्ता से भी बढ़कर हैं 27यह वही हैं, जिनके विषय में लिखा गया है:

“ ‘मैं अपना दूत तुम्हारे आगे भेज रहा हूं,

जो तुम्हारे आगे-आगे चलकर तुम्हारे लिए मार्ग तैयार करेगा.’7:27 मला 3:1

28सच तो यह है कि आज तक जितने भी मनुष्य हुए हैं उनमें से एक भी (बपतिस्मा देनेवाले) योहन से बढ़कर नहीं. फिर भी, परमेश्वर के राज्य में छोटे से छोटा भी योहन से बढ़कर है.”

29जब सभी लोगों ने, यहां तक कि चुंगी लेनेवालों ने, प्रभु येशु के वचन, सुने तो उन्होंने योहन का बपतिस्मा लेने के द्वारा यह स्वीकार किया कि परमेश्वर की योजना सही है. 30किंतु फ़रीसियों और शास्त्रियों ने बपतिस्मा न लेकर उनके लिए तय परमेश्वर के उद्देश्य को अस्वीकार कर दिया.

31प्रभु येशु ने आगे कहा, “इस पीढ़ी के लोगों की तुलना मैं किससे करूं? किसके समान हैं ये? 32ये बाजार में बैठे हुए उन बालकों के समान हैं, जो एक दूसरे से पुकार-पुकारकर कह रहे हैं:

“ ‘हमने तुम्हारे लिए बांसुरी बजाई,

किंतु तुम नहीं नाचे,

हमने तुम्हारे लिए शोक गीत भी गाया,

फिर भी तुम न रोए.’

33बपतिस्मा देनेवाले योहन रोटी नहीं खाते थे और दाखरस का सेवन भी नहीं करते थे इसलिये तुमने घोषित कर दिया, ‘उसमें दुष्टात्मा का वास है.’ 34मनुष्य के पुत्र का खान-पान सामान्य है और तुम घोषणा करते हैं, ‘अरे, वह तो पेटू और पियक्कड़ है; वह तो चुंगी लेनेवालों और अपराधी व्यक्तियों का मित्र है!’ बुद्धि अपनी संतान द्वारा साबित हुई है 35फिर भी ज्ञान की सच्चाई उसकी सभी संतानों द्वारा प्रकट की गई है.”

पापी स्त्री द्वारा प्रभु येशु के चरणों का अभ्यंजन

36एक फ़रीसी ने प्रभु येशु को भोज पर आमंत्रित किया. प्रभु येशु आमंत्रण स्वीकार कर वहां गए और भोजन के लिए बैठ गए. 37नगर की एक पापिन स्त्री, यह मालूम होने पर कि प्रभु येशु वहां आमंत्रित हैं, संगमरमर के बर्तन में इत्र लेकर आई 38और उनके चरणों के पास रोती हुई खड़ी हो गई. उसके आंसुओं से उनके पांव भीगने लगे. तब उसने प्रभु के पावों को अपने बालों से पोंछा, उनके पावों को चूमा तथा उस इत्र को उनके पावों पर उंडेल दिया.

39जब उस फ़रीसी ने, जिसने प्रभु येशु को आमंत्रित किया था, यह देखा तो मन में विचार करने लगा, “यदि यह व्यक्ति वास्तव में भविष्यवक्ता होता तो अवश्य जान जाता कि जो स्त्री उसे छू रही है, वह कौन है—एक पापी स्त्री!”

40प्रभु येशु ने उस फ़रीसी को कहा, “शिमओन, मुझे तुमसे कुछ कहना है.”

“कहिए, गुरुवर,” उसने कहा.

41प्रभु येशु ने कहा, “एक साहूकार के दो कर्ज़दार थे—एक पांच सौ दीनार7:41 मत्ति 20:2 देखिये का तथा दूसरा पचास का. 42दोनों ही कर्ज़ चुकाने में असमर्थ थे इसलिये उस साहूकार ने दोनों ही के कर्ज़ क्षमा कर दिए. यह बताओ, दोनों में से कौन उस साहूकार से अधिक प्रेम करेगा?”

43शिमओन ने उत्तर दिया, “मेरे विचार से वह, जिसकी बड़ी राशि क्षमा की गई.”

“तुमने सही उत्तर दिया,” प्रभु येशु ने कहा.

44तब उस स्त्री से उन्मुख होकर प्रभु येशु ने शिमओन से कहा, “इस स्त्री की ओर देखो. मैं तुम्हारे घर आया, तुमने तो मुझे पांव धोने के लिए भी जल न दिया किंतु इसने अपने आंसुओं से मेरे पांव भिगो दिए और अपने केशों से उन्हें पोंछ दिया. 45तुमने चुंबन से मेरा स्वागत नहीं किया किंतु यह स्त्री मेरे पांवों को चूमती रही. 46तुमने मेरे सिर पर तेल नहीं मला किंतु इसने मेरे पांवों पर इत्र उंडेल दिया है. 47मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि यह मुझसे इतना अधिक प्रेम इसलिये करती है कि इसके बहुत पाप क्षमा कर दिए गए हैं; किंतु वह, जिसके थोड़े ही पाप क्षमा किए गए हैं, प्रेम भी थोड़ा ही करता है.”

48तब प्रभु येशु ने उस स्त्री से कहा, “तुम्हारे पाप क्षमा कर दिए गए हैं.”

49आमंत्रित अतिथि आपस में विचार-विमर्श करने लगे, “कौन है यह, जो पाप भी क्षमा करता है?”

50प्रभु येशु ने उस स्त्री से कहा, “तुम्हारा विश्वास ही तुम्हारे उद्धार का कारण है. शांति में विदा हो जाओ.”