路加福音 12 – CCBT & NCA

Chinese Contemporary Bible (Traditional)

路加福音 12:1-59

警戒門徒

1這時,成千上萬的人聚集在一起,甚至互相踐踏。耶穌先對門徒說:「你們要提防法利賽人的酵,就是他們的偽善。 2掩蓋的事終會暴露出來,隱藏的秘密終會被人知道。 3你們在暗處說的,將在明處被人聽見;你們在密室裡的私語,將在屋頂上被人宣揚。

4「朋友們,我告訴你們,不要懼怕那些殺害人的身體後再也無計可施的人。 5我告訴你們應該懼怕誰,要懼怕上帝——祂有權終結人的生命,並把人丟在地獄裡。是的,我告訴你們,要懼怕祂!

6「五隻麻雀不是只賣兩個銅錢嗎?但上帝連一隻麻雀也不會遺忘。 7其實就連你們的頭髮都被數過了。不要害怕,你們比許多麻雀要貴重!

8「我告訴你們,凡在人面前承認我的,人子在上帝的天使面前也必承認他。 9凡在人面前否認我的,人子在上帝的天使面前也要否認他。 10說話得罪人子的,還可以得到赦免,但褻瀆聖靈的,必得不到赦免! 11當人押你們到會堂,或到官員和當權者面前時,不要顧慮如何辯解,或說什麼話, 12因為到時候聖靈必指示你們當說的話。」

無知富翁的比喻

13這時,人群中有人對耶穌說:「老師,請你勸勸我的兄長跟我分家產吧。」

14耶穌答道:「朋友,誰派我作你們的審判官或仲裁,為你們分家產呢?」 15接著,祂對眾人說:「你們要小心防範一切的貪心,因為人的生命並不在於家道富足。」

16耶穌又講了一個比喻,說:「有一個富翁,他的田裡大豐收, 17於是心裡盤算,『我儲藏農產的地方不夠了,怎麼辦呢?』 18於是他說,『不如把原有的倉庫拆掉,建幾座更大的,好儲藏我所有的糧食和財物! 19那時,我就可以對自己說,「你積存這麼多財產,一生享用不盡,現在大可高枕無憂、盡情地吃喝玩樂吧!」』 20但上帝對他說,『無知的人啊!今晚就要取走你的命!你所預備的一切留給誰享用呢?』」

21耶穌說:「這就是那些只顧為自己積財、在上帝面前卻不富足之人的寫照。」

不要為衣食憂慮

22耶穌繼續對門徒說:「所以,我告訴你們,不要為生活憂慮,如吃什麼,也不要為身體憂慮,如穿什麼。 23因為生命比飲食重要,身體比穿著重要。 24你們看,烏鴉不種也不收,沒倉也沒庫,上帝尚且養活牠們,你們比飛鳥不知要貴重多少!

25「你們誰能用憂慮使自己多活片刻呢? 26既然你們連這樣的小事都無能為力,又何必為其餘的事憂慮呢? 27看看百合花如何生長吧,它們既不勞苦,也不紡織,但我告訴你們,就連所羅門王最顯赫時的穿戴還不如一朵百合花!

28「野地的草今天還在,明天就要被丟在爐中,上帝還這樣裝扮它們,何況你們呢?你們的信心太小了! 29你們不要為吃什麼喝什麼憂慮, 30因為這些都是外族人的追求,你們的天父知道你們需要這些。 31你們要尋求祂的國,祂必供給你們的需要。

32「你們這一小群人啊,不要怕!因為你們的天父樂意把祂的國賜給你們。 33要變賣你們的家產去賙濟窮人,要為自己預備永不破損的錢袋,在天上積攢取之不盡的財寶,那裡沒有賊偷,也沒有蟲蛀。 34因為你們的財寶在哪裡,你們的心也在哪裡。

警醒預備

35「你們要束上腰帶,準備服侍,要點亮燈, 36像奴僕們等候主人從婚宴回來。主人回來一叩門,奴僕就可以立即給他開門。 37主人回來,看見奴僕警醒等候,奴僕就有福了!我實在告訴你們,主人必束上腰帶請他們坐席,並親自服侍他們。 38無論主人在深夜或黎明回家,若發現奴僕警醒等候,奴僕就有福了。

39「你們都知道,一家的主人若預先知道賊什麼時候來,一定不會讓賊入屋偷竊。 40同樣,你們也要做好準備,因為在你們意想不到的時候,人子就來了。」

忠僕和惡僕

41彼得問:「主啊!你這比喻是講給我們聽的,還是講給眾人聽的呢?」

42主說:「誰是那個受主人委託管理家中大小僕役、按時分糧食給他們、又忠心又精明的管家呢? 43主人回家時,看見他盡忠職守,他就有福了。 44我實在告訴你們,主人一定會把所有產業都交給他管理。 45但如果他以為主人不會那麼快回來,就毆打僕婢、吃喝醉酒, 46主人會在他想不到的日子、不知道的時辰回來,嚴厲地懲罰12·46 嚴厲地懲罰」或作「腰斬」。他,使他和不忠不信的人同受嚴刑。 47明知主人的意思卻不準備,也不遵行主人吩咐的僕人,必受更重的責打。 48但因不知道而做了該受懲罰之事的僕人,必少受責打。多給誰,就向誰多取;多託付誰,就向誰多要。

家庭分裂

49「我來是要把火丟在地上,我多麼希望這火已經燃燒起來。 50我有要受的『洗禮』,我何等迫切地想完成這『洗禮』啊! 51你們以為我來是要使天下太平嗎?不,我告訴你們,我來是要使地上起紛爭。 52從今以後,一家五口會彼此相爭,三個人反對兩個人,或是兩個人反對三個人, 53父子相爭,母女對立,婆媳反目。」

明辨是非

54然後,祂又對眾人說:「你們看見雲從西方升起,就說,『快下雨了!』果然如此。 55南風一起,你們就說,『天必燥熱』,你們也說對了。 56你們這些偽善的人!既然知道觀察天色、預測天氣,為什麼不知道觀察這個世代呢? 57你們為什麼不自己明辨是非呢? 58如果你和控告你的人要去對簿公堂,要盡量在路上跟對方和解,以免被拉到審判官面前,審判官派差役把你關進監牢。 59我告訴你,除非你付清所欠的每一分錢,否則休想出監牢。」

New Chhattisgarhi Translation (नवां नियम छत्तीसगढ़ी)

लूका 12:1-59

चेतउनी अऊ उत्साह

(मत्ती 10:26-27)

1इही दौरान हजारों मनखेमन के भीड़ लग गीस अऊ ओमन एक-दूसर ऊपर गिरे पड़त रिहिन, त यीसू ह पहिली अपन चेलामन ला कहे के सुरू करिस, “फरीसीमन के खमीर ले सचेत रहव, मतलब कि ओमन के ढोंगीपन ले सचेत रहव। 2कुछू घलो बात ढंके नइं ए, जऊन ला खोले नइं जाही या कुछू भी बात छिपे नइं ए, जऊन ला बताय नइं जाही। 3एकरसेति, जऊन बात तुमन अंधियार म कहे हवव, ओह दिन के अंजोर म सुने जाही, अऊ जऊन बात तुमन बंद कोठरी म मनखेमन के कान म चुपेचाप कहे हवय, ओला घर के छानी ऊपर ले खुले-आम बताय जाही।

4मोर संगवारीमन, मेंह तुमन ला कहत हंव कि ओमन ले झन डरव, जऊन मन देहें ला घात करथें अऊ ओकर बाद ओमन अऊ कुछू नइं कर सकंय। 5पर मेंह तुमन ला बतावत हंव कि तुमन ला काकर ले डरना चाही। ओकर ले डरव, जेकर करा तुमन ला मारे के बाद नरक म डारे के सामरथ हवय। हव, मेंह तुमन ला कहत हंव, ओकरेच ले डरव। 6पांच ठन गौरइया चिरई कतेक म बिकथे? दू पईसा ले जादा म नइं बिकय। तभो ले परमेसर ह ओम ले एको ठन ला नइं भूलय। 7अऊ त अऊ तुम्‍हर मुड़ के जम्मो चुंदीमन गने गे हवंय। झन डरव; तुमन गौरइया चिरईमन ले जादा कीमत के अव।

8मेंह तुमन ला कहत हंव कि जऊन ह मोला मनखेमन के आघू म मान लेथे, ओला मनखे के बेटा घलो परमेसर के स्वरगदूतमन के आघू म मान लिही। 9पर जऊन ह मोला मनखेमन के आघू म इनकार करथे, ओला मनखे के बेटा घलो परमेसर के स्वरगदूतमन के आघू म इनकार करही। 10अऊ जऊन ह मनखे के बेटा के बिरोध म कोनो बात कहिथे, त ओला माफ करे जाही, पर जऊन ह पबितर आतमा के बिरोध म निन्दा करथे, ओला माफ करे नइं जावय।

11जब मनखेमन तुमन ला सभा घर, सासन करइया अऊ अधिकारीमन के आघू म लानथें, त ए बात के चिंता झन करव कि तुमन अपन बचाव कइसने करहू या ओमन के आघू म का कहिहू, 12काबरकि पबितर आतमा ह ओहीच बेरा तुमन ला ए बात ला सीखा दिही कि तुमन ला का कहना चाही।”

एक मुरुख धनवान मनखे के पटं‍तर

13भीड़ म ले एक मनखे ह यीसू ला कहिस, “हे गुरू, मोर भाई ले कह कि ओह मोर संग ओ संपत्ति के बंटवारा करय, जऊन ला हमर ददा हमर बर छोंड़ गे हवय।”

14यीसू ह ओला कहिस, “हे मनखे, कोन ह मोला तुम्‍हर नियायधीस या तुम्‍हर बीच म संपत्ति के बंटवारा करइया ठहराईस?” 15तब ओह ओमन ला कहिस, “सचेत रहव! अपन-आप ला जम्मो किसम के लालच ले दूर रखव; काबरकि मनखे के जिनगी ह ए बात ले नइं बनय कि ओकर करा कतेक जादा संपत्ति हवय।”

16तब यीसू ह ओमन ला ए पटं‍तर कहिस, “एक धनवान मनखे के खेत म बहुंत फसल होईस। 17ओह अपन मन म सोचिस, ‘अब मेंह का करंव? मोर करा मोर फसल ला रखे के जगह नइं ए।’ 18ओह कहिस, ‘मेंह अइसने करहूं – मेंह अपन कोठीमन ला टोरके ओकर ले बड़े-बड़े कोठी बनाहूं, अऊ उहां मेंह अपन जम्मो अनाज अऊ दूसर माल-मत्ता ला रखहूं।’ 19तब में अपन-आप ले कहिहूं, ‘तोर करा बहुंत संपत्ति हवय, जऊन ह बहुंते साल तक चलही। अपन जिनगी के चिंता झन कर; खा, पी अऊ खुसी मना।’

20पर परमेसर ह ओला कहिस, ‘हे मुरुख मनखे! इहीच रतिहा तोर परान ला ले लिये जाही; तब ए जम्मो चीज काकर होही, जऊन ला तेंह अपन बर रखे हवस।’

21अइसनेच हर एक ओ मनखे के संग होही, जऊन ह अपन बर धन संकेलथे, पर परमेसर के नजर म धनवान नो हय।”

चिंता झन करव

(मत्ती 6:25-34)

22तब यीसू ह अपन चेलामन ला कहिस, “एकरसेति मेंह तुमन ला कहत हंव, अपन जिनगी के बारे म चिंता झन करव कि तुमन का खाहू, या अपन देहें के बारे म चिंता झन करव कि तुमन का पहिरहू। 23जिनगी ह खाना ले जादा महत्‍व के अय, अऊ देहें ह ओन्ढा ले जादा महत्‍व रखथे। 24कऊवां चिरईमन के बारे सोचव: ओमन न कुछू बोवंय अऊ न लुवंय; ओमन करा न भंडार-घर हवय न ही कोठार; तभो ले परमेसर ओमन ला खवाथे। तुमन तो चिरईमन ले बढ़ के अव। 25तुमन म अइसने कोनो हवय, जऊन ह चिंता करे के दुवारा अपन जिनगी के एक घरी घलो बढ़ा सकथे? 26जब तुमन ए बहुंत छोटे चीज ला नइं कर सकव, त तुमन आने बड़े चीजमन के बारे म चिंता काबर करथव?

27सोचव कि जंगली फूलमन कइसने बाढ़थें; ओमन न मिहनत करंय अऊ न ही अपन बर कपड़ा बनावंय। पर मेंह तुमन ला बतावत हंव, अऊ त अऊ सुलेमान सहीं धनी राजा घलो एमन ले काकरो सहीं सुघर कपड़ा नइं पहिरे रिहिस। 28जब परमेसर ह भुइयां के कांदी ला अइसने कपड़ा पहिराथे, जऊन ह आज इहां हवय अऊ कल आगी म झोंके जाही, त हे अल्‍प बिसवासीमन, का ओह तुमन ला अऊ जादा कपड़ा नइं पहिराही। 29अऊ एकर धियान म झन रहव कि तुमन का खाहू या का पीहू; एकर चिंता झन करव। 30काबरकि ए संसार म परमेसर ऊपर बिसवास नइं करइयामन ए जम्मो चीज के खोज म रहिथें, अऊ तुम्‍हर ददा परमेसर ह जानथे कि तुमन ला ए चीजमन के जरूरत हवय। 31परमेसर के राज के खोज म रहव, त संग म ए चीजमन घलो तुमन ला ओह दिही।

32हे छोटे झुंड! झन डर, काबरकि तोर ददा परमेसर ह तोला राज देके खुस हवय। 33अपन संपत्ति ला बेंच अऊ गरीबमन ला दे। अपन बर अइसने बटुवा बनावव, जऊन ह जुन्ना नइं होवय, याने स्‍वरग म अपन धन जमा करव, जऊन ह कभू नइं घटय; जेकर लकठा म चोर नइं आ सकय अऊ जऊन ला कीरा घलो नइं खा सकय। 34काबरकि जिहां तोर धन हवय, उहां तोर मन घलो लगे रहिही।”

सचेत सेवक

35“तुमन सेवा करे बर हमेसा तियार रहव अऊ अपन दीया ला बारे रखव; 36ओ सेवकमन सहीं, जऊन मन अपन मालिक के एक बिहाव भोज ले लहुंटे के बाट जोहत हवंय, ताकि जब ओह आवय अऊ कपाट ला खटखटावय, त ओमन तुरते ओकर बर कपाट ला खोल सकंय। 37ओ सेवकमन बर एह खुसी के बात होही, जब ओमन के मालिक लहुंटके आथे, त ओमन ला जागत पाथे। मेंह तुमन ला सच कहथंव – ओह खुदे सेवा करे बर सेवक के कपड़ा पहिरही; ओह ओमन ला खाना खवाय बर बईठाही अऊ आके ओमन के सेवा करही। 38ओ सेवकमन बर एह बने बात होही, यदि ओमन के मालिक रतिहा के दूसर या तीसरा पहर म आवय अऊ ओमन ला सचेत पावय। 39पर तुमन ए बात ला जान लेवव: यदि घर के मालिक ए जानतिस कि चोर ह कतेक बेरा आही, त ओह अपन घर ला चोरी होय बर नइं छोंड़ देतिस। 40तुमन घलो हमेसा तियार रहव, काबरकि मनखे के बेटा ह अइसने बेरा म आ जाही, जब तुमन ओकर आय के आसा नइं करत होहू।”

41पतरस ह पुछिस, “हे परभू, ए पटं‍तर ला का तेंह हमर बर कहत हवस या फेर जम्मो झन बर?”

42परभू ह जबाब देके कहिस, “ओ बिसवासी अऊ बुद्धिमान सेवक कोन ए, जऊन ला ओकर मालिक ए जिम्मेदारी देथे कि ओह घर ला चलावय अऊ आने सेवकमन ला सही समय म ओमन के भाग के खाना देवय। 43एह ओ सेवक बर खुसी के बात होही कि जब ओकर मालिक ह आथे, त ओला अइसने करत पाथे। 44मेंह तुमन ला सच कहत हंव कि मालिक ह ओ सेवक ला अपन जम्मो संपत्ति के जिम्मेदारी दे दिही। 45पर यदि ओ सेवक ह अपन मन म ए कहय, ‘मोर मालिक ह आय म अब्‍बड़ देरी करत हवय।’ अऊ अइसने सोचके ओह आने सेवक अऊ सेविका मन ला मारन-पीटन लगय, अऊ खाय अऊ पीये लगे अऊ मतवाल हो जावय, 46तब ओ सेवक के मालिक ह एक अइसने दिन म आ जाही, जब ओह ओकर आय के आसा नइं करत होही अऊ ओकर आय के बेरा ला घलो नइं जानत होही। तब मालिक ह ओला कठोर सजा दिही अऊ ओला अबिसवासीमन के संग म रखही।

47ओ सेवक जऊन ह अपन मालिक के ईछा ला जानथे, पर तियार नइं रहय या जऊन बात ला ओकर मालिक चाहथे ओला नइं करय, त ओ सेवक ह बहुंत मार खाही। 48पर जऊन सेवक ह अपन मालिक के ईछा ला नइं जानत हवय, अऊ बिगर जाने ओह गलत काम करथे, त ओह कम मार खाही। जऊन ला बहुंत दिये गे हवय, ओकर ले बहुंत मांगे जाही, अऊ जऊन ला बहुंत सऊंपे गे हवय, ओकर ले बहुंत लिये जाही।”

फूट के कारन

(मत्ती 10:34-36)

49“मेंह धरती म आगी लगाय बर आय हवंव, अऊ मेंह ए चाहत हंव कि बने होतिस कि एम पहिली ले आगी लगे होतिस। 50मोला एक बतिसमा म ले होके जाना हवय, अऊ जब तक ओह पूरा नइं हो जावय, मेंह बहुंत बियाकुल हवंव। 51का तुमन ए सोचत हव कि मेंह धरती म सांति लाने बर आय हवंव। नइं, मेंह तुमन ला कहत हंव कि मेंह फूट डारे बर आय हवंव। 52अब ले जब एक परिवार म पांच झन होहीं, त ओमन म फूट पड़ही; तीन झन ह दू झन के बिरोध म अऊ दू झन ह तीन झन के बिरोध म रहिहीं। 53ददा ह अपन बेटा के बिरोध म होही, त बेटा ह अपन ददा के बिरोध म। दाई ह अपन बेटी के बिरोध म होही, त बेटी ह अपन दाई के बिरोध म; अऊ सास ह अपन बहू के बिरोध म होही, त बहू ह अपन सास के बिरोध म।”

समय के पहिचान करई

(मत्ती 16:2-3)

54यीसू ह मनखेमन के भीड़ ला घलो कहिस, “जब तुमन पछिम दिग म एक बादर उठत देखथव, त तुरते तुमन कहिथव कि बारिस होवइया हवय; अऊ अइसनेच होथे। 55अऊ जब दक्खिन दिग के हवा चलथे, त तुमन कहिथव कि गरमी बढ़इया हवय, अऊ अइसनेच होथे। 56हे ढोंगी मनखेमन! धरती अऊ अकास ला तुमन देखके जान लेथव कि एकर का मतलब होथे; तब तुमन ए समय के मतलब ला काबर नइं जानव?

57तुमन खुदे काबर फैसला नइं कर लेवव कि का सही ए? 58यदि कोनो मनखे तुम्‍हर बिरोध म नालिस करय अऊ तुमन ला कचहरी म ले जावय, त तुमन भरसक कोसिस करव कि ओकर संग डहार म ही मामला के निपटारा हो जावय; नइं तो ओह तुमन ला नियायधीस करा खींचके ले जाही, अऊ नियायधीस ह तुमन ला पुलिस ला सऊंप दिही, अऊ पुलिस ह तुमन ला जेल म डार दिही। 59मेंह तुमन ला कहत हंव कि जब तक तुमन एक-एक पईसा नइं भर दूहू, तब तक उहां ले नइं छूट सकव।”