詩篇 105 – CCBT & HCV

Chinese Contemporary Bible (Traditional)

詩篇 105:1-45

第 105 篇

上帝和祂的子民

(平行經文:歷代志上16·8-22

1你們要稱謝耶和華,呼求祂的名,

在列邦傳揚祂的作為。

2要歌頌、讚美祂,

述說祂一切奇妙的作為。

3要以祂的聖名為榮,

願尋求耶和華的人都歡欣。

4要尋求耶和華和祂的能力,

時常來到祂面前。

5-6祂僕人亞伯拉罕的後裔,

祂所揀選的雅各的子孫啊,

要記住祂所行的神蹟奇事和祂口中的判詞。

7祂是我們的上帝耶和華,

祂在普天下施行審判。

8祂永遠記得祂的約,

歷經千代也不忘祂的應許,

9就是祂與亞伯拉罕所立的約,

以撒所起的誓。

10祂把這約定為律例賜給雅各

定為永遠的約賜給以色列

11祂說:「我必把迦南賜給你,

作為你的產業。」

12那時他們人丁稀少,

在當地寄居。

13他們在異國他鄉流離飄零。

14耶和華不容人壓迫他們,

還為他們的緣故責備君王,

15說:「不可難為我膏立的人,

也不可傷害我的先知。」

16祂在那裡降下饑荒,

斷絕一切食物的供應。

17祂派一個人率先前往,

這人就是被賣為奴隸的約瑟

18他被戴上腳鐐,套上枷鎖,

19直到後來他的預言應驗,

耶和華的話試煉了他。

20埃及王下令釋放他,

百姓的首領給他自由,

21派他執掌朝政,

管理國中的一切,

22有權柄管束王的大臣,

將智慧傳授王的長老。

23以色列來到埃及

寄居在地。

24耶和華使祂的子民生養眾多,

比他們的仇敵還要強盛。

25祂使仇敵憎恨他們,

用詭計虐待他們。

26祂派遣祂的僕人摩西和祂揀選的亞倫

27埃及行神蹟,

地行奇事。

28祂降下黑暗,使黑暗籠罩那裡;

他們沒有違背祂的話。

29祂使埃及的水變成血,

魚都死去;

30又使國中到處是青蛙,

王宮禁院也不能倖免。

31祂一發命令,

蒼蠅蜂擁而至,蝨子遍滿全境。

32祂使雨變成冰雹,

遍地電光閃閃。

33祂擊倒他們的葡萄樹和無花果樹,

摧毀他們境內的樹木。

34祂一發聲,

就飛來無數蝗蟲和螞蚱,

35吃盡他們土地上的植物,

吃盡他們田間的出產。

36祂又擊殺他們境內所有的長子,

就是他們年輕力壯時生的長子。

37祂帶領以色列人攜金帶銀地離開埃及

各支派中無人畏縮。

38埃及人懼怕他們,

樂見他們離去。

39祂鋪展雲彩為他們遮蔭,

晚上用火給他們照明。

40他們祈求,

祂就賜下鵪鶉,降下天糧,

叫他們飽足。

41祂使磐石裂開、湧出水來,

在乾旱之地奔流成河。

42因為祂沒有忘記祂賜給僕人亞伯拉罕的神聖應許。

43祂帶領自己的子民歡然離去,

祂所揀選的百姓歡唱著前行。

44祂把列國的土地賜給他們,

使他們獲得別人的勞動成果。

45祂這樣做是要使他們持守祂的命令,

遵行祂的律法。

你們要讚美耶和華!

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 105:1-45

स्तोत्र 105

1याहवेह के प्रति आभार व्यक्त करो, उनको पुकारो;

सभी जनताओं के सामने उनके द्वारा किए कार्यों की घोषणा करो.

2उनकी प्रशंसा में गाओ, उनका गुणगान करो;

उनके सभी अद्भुत कार्यों का वर्णन करो.

3उनके पवित्र नाम पर गर्व करो;

उनके हृदय, जो याहवेह के खोजी हैं, उल्‍लसित हों.

4याहवेह और उनकी सामर्थ्य की खोज करो;

उनकी उपस्थिति के सतत खोजी बने रहो.

5उनके द्वारा किए अद्भुत कार्य स्मरण रखो

तथा उनके द्वारा हुईं अद्भुत बातें एवं निर्णय भी,

6उनके सेवक अब्राहाम के वंश,

उनके द्वारा चुने हुए याकोब की संतान.

7वह याहवेह हैं, हमारे परमेश्वर;

समस्त पृथ्वी पर उनके द्वारा किया गया न्याय स्पष्ट है.

8उन्हें अपनी वाचा सदैव स्मरण रहती है,

वह आदेश जो उन्होंने हजार पीढ़ियों को दिया,

9वह वाचा, जो उन्होंने अब्राहाम के साथ स्थापित की,

प्रतिज्ञा की वह शपथ, जो उन्होंने यित्सहाक से खाई थी,

10जिसकी पुष्टि उन्होंने याकोब से अधिनियम स्वरूप की,

अर्थात् इस्राएल से स्थापित अमर यह वाचा:

11“कनान देश तुम्हें मैं प्रदान करूंगा.

यह वह भूखण्ड है, जो तुम निज भाग में प्राप्‍त करोगे.”

12जब परमेश्वर की प्रजा की संख्या अल्प ही थी, जब उनकी संख्या बहुत ही कम थी,

और वे उस देश में परदेशी थे,

13जब वे एक देश से दूसरे देश में भटकते फिर रहे थे,

वे एक राज्य में से होकर दूसरे में यात्रा कर रहे थे,

14परमेश्वर ने किसी भी राष्ट्र को उन्हें दुःखित न करने दिया;

उनकी ओर से स्वयं परमेश्वर उन राजाओं को डांटते रहे:

15“मेरे अभिषिक्तों का स्पर्श तक न करना;

मेरे भविष्यवक्ताओं को कोई हानि न पहुंचे!”

16तब परमेश्वर ने उस देश में अकाल की स्थिति उत्पन्‍न कर दी.

उन्होंने ही समस्त आहार तृप्‍ति नष्ट कर दी;

17तब परमेश्वर ने एक पुरुष, योसेफ़ को,

जिनको दास बनाकर उस देश में पहले भेज दिया.

18उन्होंने योसेफ़ के पैरों में बेड़ियां डालकर उन पैरों को ज़ख्मी किया था,

उनकी गर्दन में भी बेड़ियां डाल दी गई थीं.

19तब योसेफ़ की पूर्वोक्ति सत्य प्रमाणित हुई, उनके विषय में,

याहवेह के वक्तव्य ने उन्हें सत्य प्रमाणित कर दिया.

20राजा ने उन्हें मुक्त करने के आदेश दिए,

प्रजा के शासक ने उन्हें मुक्त कर दिया.

21उसने उन्हें अपने भवन का प्रधान

तथा संपूर्ण संपत्ति का प्रशासक बना दिया,

22कि वह उनके प्रधानों को अपनी इच्छापूर्ति के निमित्त आदेश दे सकें

और उनके मंत्रियों को सुबुद्धि सिखा सकें.

23तब इस्राएल ने मिस्र में पदार्पण किया;

तब हाम की धरती पर याकोब एक प्रवासी होकर रहने लगे.

24याहवेह ने अपने चुने हुओं को अत्यंत समृद्ध कर दिया;

यहां तक कि उन्हें उनके शत्रुओं से अधिक प्रबल बना दिया,

25जिनके हृदय में स्वयं परमेश्वर ने अपनी प्रजा के प्रति घृणा उत्पन्‍न कर दी,

वे परमेश्वर के सेवकों के विरुद्ध बुरी युक्ति रचने लगे.

26तब परमेश्वर ने अपने चुने हुए सेवक मोशेह को उनके पास भेजा,

और अहरोन को भी.

27उन्होंने परमेश्वर की ओर से उनके सामने आश्चर्य कार्य प्रदर्शित किए,

हाम की धरती पर उन्होंने अद्भुत कार्य प्रदर्शित किए.

28उनके आदेश ने सारे देश को अंधकारमय कर दिया;

क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के आदेशों की अवहेलना की.

29परमेश्वर ही के आदेश से देश का समस्त जल रक्त में बदल गया,

परिणामस्वरूप समस्त मछलियां मर गईं.

30उनके समस्त देश में असंख्य मेंढक उत्पन्‍न हो गए,

यहां तक कि उनके न्यायियों के शयनकक्ष में भी पहुंच गए.

31परमेश्वर ने आदेश दिया और मक्खियों के समूह देश पर छा गए,

इसके साथ ही समस्त देश में मच्छर भी समा गए.

32उनके आदेश से वर्षा ने ओलों का रूप ले लिया,

समस्त देश में आग्नेय विद्युज्ज्वाला बरसने लगी.

33तब परमेश्वर ने उनकी द्राक्षालताओं तथा अंजीर के वृक्षों पर भी आक्रमण किया,

और तब उन्होंने उनके देश के वृक्षों का अंत कर दिया.

34उनके आदेश से अरबेह टिड्डियों ने आक्रमण कर दिया,

ये यालेक टिड्डियां असंख्य थीं;

35उन्होंने देश की समस्त वनस्पति को निगल लिया,

भूमि की समस्त उपज समाप्‍त हो गई.

36तब परमेश्वर ने उनके देश के हर एक पहलौठे की हत्या की,

उन समस्त पहिलौठों का, जो उनके पौरुष का प्रमाण थे.

37परमेश्वर ने स्वर्ण और चांदी के बड़े धन के साथ इस्राएल को मिस्र देश से बचाया,

उसके समस्त गोत्रों में से कोई भी कुल नहीं लड़खड़ाया.

38मिस्र निवासी प्रसन्‍न ही थे, जब इस्राएली देश छोड़कर जा रहे थे,

क्योंकि उन पर इस्राएल का आतंक छा गया था.

39उन पर आच्छादन के निमित्त परमेश्वर ने एक मेघ निर्धारित कर दिया था,

और रात्रि में प्रकाश के लिए अग्नि भी.

40उन्होंने प्रार्थना की और परमेश्वर ने उनके निमित्त आहार के लिए बटेरें भेज दीं;

और उन्हें स्वर्गिक आहार से भी तृप्‍त किया.

41उन्होंने चट्टान को ऐसे खोल दिया, कि उसमें से उनके निमित्त जल बहने लगा;

यह जल वन में नदी जैसे बहने लगा.

42क्योंकि उन्हें अपने सेवक अब्राहाम से

की गई अपनी पवित्र प्रतिज्ञा स्मरण की.

43आनंद के साथ उनकी प्रजा वहां से बाहर लाई गई,

उनके चुने हर्षनाद कर रहे थे;

44परमेश्वर ने उनके लिए अनेक राष्ट्रों की भूमि दे दी,

वे उस संपत्ति के अधिकारी हो गए जिसके लिए किसी अन्य ने परिश्रम किया था.

45कि वे परमेश्वर के अधिनियमों का पालन कर सकें

और उनके नियमों को पूरा कर सकें.

याहवेह का स्तवन हो.