耶利米書 10 – CCBT & HCV

Chinese Contemporary Bible (Traditional)

耶利米書 10:1-25

上帝與偶像

1以色列人啊,聽聽耶和華對你們說的話吧! 2耶和華說:

「不要效法列國的行為。

他們被天象嚇倒,

你們卻不要因天象而害怕。

3他們信奉的毫無價值,

他們從林中砍一棵樹,

工匠用木頭雕刻偶像,

4以金銀作裝飾,

用釘子和錘子釘牢,

以免晃動。

5它們像瓜園中的稻草人,

不能說話,不能行走,

需要人搬運。

你們不要怕它們,

它們既不能害人,

也不能助人。」

6耶和華啊,你偉大無比,

你的名充滿力量!

7萬國的王啊,誰不敬畏你?

敬畏你是理所當然的。

因為萬國的智者和君王中無人能與你相比。

8他們都愚昧無知,

毫無用處的木製偶像能教導他們什麼呢?

9偶像上的銀片來自他施

金片來自烏法

都是匠人的製品,

這些偶像穿的藍色和紫色衣服是巧匠製作的。

10唯有耶和華是真神,

是永活的上帝,

是永恆的君王。

祂一發怒,大地便震動,

萬國都無法承受。

11你們要這樣對他們說:「那些神明沒有創造天地,它們將從天下消亡。」

12耶和華施展大能,

用智慧創造大地和世界,

巧妙地鋪展穹蒼。

13祂一聲令下,天上大水湧動;

祂使雲從地極升起,

使閃電在雨中發出,

祂從自己的倉庫吹出風來。

14人人愚昧無知,

工匠都因自己鑄造的偶像而慚愧,

因為這些神像全是假的,

沒有氣息。

15它們毫無價值,

荒謬可笑,

在報應的時候必被毀滅。

16雅各的上帝截然不同,

祂是萬物的創造者,

被稱為「萬軍之耶和華」,

以色列是祂的子民。

17被圍困的猶大人啊,

收拾行裝吧!

18因為耶和華說:

「看啊,這次我要把這地方的居民拋出去,

使他們苦不堪言。」

19我有禍了!因我的創傷難癒。

但我說:「這是疾病,我必須忍受。」

20我的帳篷已毀,

繩索已斷;

我的兒女都離我而去,

再沒有人為我支搭帳篷,

掛上幔子。

21首領愚昧,

沒有求問耶和華,

因此一敗塗地,

百姓如羊群四散。

22聽啊,有消息傳來,

喧囂的敵軍從北方衝來,

要使猶大的城邑荒涼,

淪為豺狼的巢穴。

23耶和華啊,人不能駕馭自己的命運,

不能左右自己的將來。

24耶和華啊,求你公正地懲罰我,

不要帶著怒氣懲罰我,

否則我將不復存在。

25求你向不認識你的列國和不求告你名的民族發烈怒,

因為他們吞噬、毀滅雅各

使他的家園一片荒涼。

Hindi Contemporary Version

येरेमियाह 10:1-25

मूर्ति पूजा एवं सच्चा स्तवन

1इस्राएल वंशजों, तुम्हें संबोधित बात सुनो. 2याहवेह कह रहे हैं:

“अन्य जनताओं के आचार-व्यवहार परिपाटी एवं प्रथाओं को सीखने का प्रयास न करो

और न ही आकाश में घटित हो रहे असाधारण लक्षणों से विचलित हो जाओ,

यद्यपि अन्य राष्ट्र, निःसंदेह, इनसे विचलित हो जाते हैं.

3क्योंकि लोगों की प्रथाएं मात्र भ्रम हैं,

कारण यह वन से काटकर लाया गया काठ ही तो है,

काष्ठ शिल्पी द्वारा उसके छेनी से बनाया गया है.

4वे ही इन्हें स्वर्ण और चांदी से सजाते है;

इन्हें कीलों द्वारा हथौड़ों के प्रहार से जोड़ा जाता है

कि ये अपने स्थान पर स्थिर रहें.

5उनकी प्रतिमाएं ककड़ी के खेत में खड़े किए गए बिजूखा10:5 बिजूखा पक्षियों को डराने का पुतला सदृश हैं,

जो बात नहीं कर सकतीं;

उन्हें तो उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है

क्योंकि वे तो चल ही नहीं सकतीं.

मत डरो उनसे;

वे कोई हानि नहीं कर सकतीं

वस्तुतः वे तो कोई कल्याण भी नहीं कर सकतीं.”

6याहवेह, कोई भी नहीं है आपके सदृश;

आप महान हैं,

और सामर्थ्य में असाधारण हैं आपकी प्रतिष्ठा.

7राष्ट्रों का राजा,

कौन हो सकता है वह

जिसमें आपके प्रति श्रद्धा न होगी?

वस्तुतः आप ही हैं इसके योग्य

क्योंकि राष्ट्रों के सारे बुद्धिमानों के मध्य,

तथा राष्ट्रों के सारे राज्यों में कोई भी नहीं है आपके तुल्य.

8किंतु वे पूर्णतः निर्बुद्धि एवं मूर्ख हैं;

उनकी शिक्षाएं धोखे के सिवा और कुछ नहीं.

9तरशीश से पीटी हुई चांदी

तथा उपहाज़ से स्वर्ण लाया जाता है.

शिल्पी एवं स्वर्णकार की हस्तकला हैं

वे नीले और बैंगनी वस्त्र उन्हें पहनाए जाते हैं—

ये सभी दक्ष शिल्पियों की कलाकृति-मात्र हैं.

10किंतु याहवेह सत्य परमेश्वर हैं;

वे अनंत काल के राजा हैं.

उनके कोप के समक्ष पृथ्वी कांप उठती है;

तथा राष्ट्रों के लिए उनका आक्रोश असह्य हो जाता है.

11“उनसे तुम्हें यह कहना होगा: ‘वे देवता, जिन्होंने न तो आकाश की और न पृथ्वी की सृष्टि की है, वे पृथ्वी पर से तथा आकाश के नीचे से नष्ट कर दिए जाएंगे.’ ”

12याहवेह ही हैं जिन्होंने अपने सामर्थ्य से पृथ्वी की सृष्टि की;

जिन्होंने विश्व को अपनी बुद्धि द्वारा प्रतिष्ठित किया है,

अपनी सूझ-बूझ से उन्होंने आकाश को विस्तीर्ण कर दिया.

13उनके स्वर उच्चारण से आकाश के जल में हलचल मच जाती है;

वही हैं जो चारों ओर से मेघों का आरोहण बनाया करते हैं.

वह वृष्टि के लिए बिजली को अधीन करते हैं

तथा अपने भण्डारगृह से पवन को चलाते हैं.

14हर एक मनुष्य मूर्ख है—ज्ञानहीन;

हर एक स्वर्णशिल्पी अपनी ही कृति प्रतिमा द्वारा लज्जित किया जाता है.

क्योंकि उसके द्वारा ढाली गई प्रतिमाएं धोखा हैं;

उनमें जीवन-श्वास तो है ही नहीं.

15ये प्रतिमाएं सर्वथा व्यर्थ हैं, ये हास्यपद कृति हैं;

जब उन पर दंड का अवसर आएगा, वे नष्ट हो जाएंगी.

16याहवेह जो याकोब की निधि हैं इनके सदृश नहीं हैं,

क्योंकि वे सभी के सृष्टिकर्ता हैं,

इस्राएल उन्हीं के इस निज भाग का कुल है—

उनका नाम है सेनाओं का याहवेह.

आनेवाला विनाश

17तुम, जो शत्रु द्वारा घिरे हुए जिए जा रहे हो,

भूमि पर से अपनी गठरी उठा लो.

18क्योंकि याहवेह का संदेश यह है:

“यह देख लेना कि मैं इस देश के निवासियों को

इस समय प्रक्षेपित करने पर हूं;

मैं उन पर विपत्तियां ले आऊंगा

कि उन्हें वस्तुस्थिति का बोध हो जाए.”

19धिक्कार है मुझ पर! मैं निराश हो चुका हूं!

असाध्य है मेरा घाव!

किंतु मैंने विचार किया,

“निश्चयतः यह एक रोग है, यह तो मुझे सहना ही होगा.”

20मेरा तंबू नष्ट हो चुका है;

रस्सियां टूट चुकी हैं.

मेरे पुत्र मुझे छोड़ चुके हैं, कोई भी न रहा;

जो पुनः मेरे तंबू को खड़ा करे ऐसा कोई भी नहीं,

जो इसमें पर्दे लटकाए.

21कारण यह है कि चरवाहे मूर्ख हैं

और उन्होंने याहवेह की बातें ज्ञात करना आवश्यक न समझा;

इसलिये वे समृद्ध न हो सके

और उनके सभी पशु इधर-उधर बिखर गए हैं.

22समाचार यह आ रहा है, कि वे आ रहे हैं—

उत्तर दिशा के देश से घोर अशांति की आवाज!

कि यहूदिया के नगरों को निर्जन

तथा सियारों का बसेरा बना दिया जाए.

येरेमियाह की प्रार्थना

23याहवेह, मैं उत्तम रीति से इस बात से अवगत हूं कि मनुष्य अपनी गतिविधियों को स्वयं नियंत्रित नहीं करता;

न ही मनुष्य अपने कदम स्वयं संचालित कर सकता है.

24याहवेह मुझे अनुशासित करिये किंतु सही तरीके से—

यह अपने क्रोध में न कीजिए,

अन्यथा मैं तो मिट ही जाऊंगा.

25अपना कोप उन जनताओं पर उंडेल दीजिए

जो आपको नहीं जानते तथा उन परिवारों पर भी,

जो आपसे गिड़गिड़ाने नहीं देते.

क्योंकि इन राष्ट्रों ने याकोब को समाप्‍त कर दिया है;

उन्होंने याकोब को निगल कर उसे पूर्णतः

नष्ट कर दिया है तथा उसके आवास को उजाड़ बना दिया है.