約翰福音 1 – CCBT & HCV

Chinese Contemporary Bible (Traditional)

約翰福音 1:1-51

生命之道

1太初,道已經存在,道與上帝同在,道就是上帝。 2太初,道就與上帝同在。 3萬物都是藉著祂造的1·3 造的」或譯「存在」。,受造之物沒有一樣不是藉著祂造的。 4祂裡面有生命,這生命是人類的光。 5光照進黑暗裡,黑暗不能勝過1·5 勝過」或譯「接受」或「明白」。光。

6有一個人名叫約翰,是上帝差來的。 7他來是要為光做見證,叫世人可以藉著他而相信。 8約翰不是那光,他來是為那光做見證。 9那照亮世人的真光來到了世上。 10祂來到自己所創造的世界,世界卻不認識祂。 11祂來到自己的地方,自己的人卻不接納祂。 12但所有接納祂的,就是那些信祂的人,祂就賜給他們權利成為上帝的兒女。 13這些人既不是從人的血緣關係生的,也不是從人的情慾或意願生的,而是從上帝生的。

14道成為肉身,住在我們中間,充滿了恩典和真理。我們見過祂的榮耀,正是父獨一兒子的榮耀。

15約翰為祂做見證的時候,高聲喊道:「這就是我以前所說的那位,『祂在我以後來卻比我位分高,因為祂在我之前已經存在了。』」 16從祂的豐盛裡,我們一次又一次地領受了恩典。 17因為律法是藉著摩西頒佈的,恩典和真理是藉著耶穌基督賜下來的。 18從來沒有人見過上帝,只有父懷中的獨一上帝1·18 獨一上帝」有古卷作「獨一兒子」。把祂顯明出來。

施洗者約翰的見證

19以下是約翰的見證。猶太人從耶路撒冷派祭司和利未人來找約翰,查問他是誰。 20約翰毫不隱瞞地說:「我不是基督。」

21他們問:「那麼,你是誰?是以利亞嗎?」

他說:「不是。」

他們又問:「你是那位先知嗎?」

他說:「也不是。」

22他們又追問:「你到底是誰?我們好回覆差我們來的人。你自己說你是誰?」

23他說:「我就是在曠野大聲呼喊『修直主的路』的那個人,正如以賽亞先知所言。」

24派來的人當中有幾個法利賽人1·24 派來的人當中有幾個法利賽人」或譯「法利賽人派來的那幾個人」。,他們問他: 25「你既然不是基督,不是以利亞,也不是那位先知,那你為什麼給人施洗呢?」

26約翰答道:「我是用水施洗,但在你們中間有一位你們不認識的, 27祂雖然是在我以後來的,我就是給祂解鞋帶也不配。」 28這事發生在約旦河東岸的伯大尼,那裡是約翰給人施洗的地方。

上帝的羔羊

29次日,約翰看見耶穌走過來,就說:「看啊!上帝的羔羊,除去世人罪惡的! 30這就是我以前所說的那位,『有一個人在我以後來卻比我位分高,因為祂在我之前已經存在了。』 31我以前並不認識祂,現在我用水給人施洗,是要把祂顯明給以色列人。」

32約翰又做見證說:「我看見聖靈好像鴿子一樣從天降下,住在祂身上。 33我本來不認識祂,但那位差我來用水給人施洗的告訴我,『你看見聖靈降下,住在誰身上,誰就是用聖靈給人施洗的。』 34我看見了,便做見證,祂就是上帝的兒子。」

第一批門徒

35再次日,約翰和兩個門徒站在那裡, 36他看見耶穌經過,就說:「看啊!這是上帝的羔羊!」 37兩個門徒聽見他的話,便跟從了耶穌。 38耶穌轉過身來,看見他們跟著,便問:「你們想要什麼?」

他們說:「老師1·38 老師」希臘文是「拉比」,特指猶太教的老師,下同。,你住在哪裡?」

39耶穌說:「你們來看吧。」他們便跟著去看耶穌住的地方。到了那裡大約下午四點了,他們就住在耶穌那裡。 40聽見約翰的話後跟從耶穌的兩個人中,有一個是西門·彼得的弟弟安得烈41他首先去找他哥哥西門,說:「我們找到彌賽亞了!」彌賽亞的意思是基督1·41 希伯來文的「彌賽亞」和希臘文的「基督」都是「受膏者」的意思。42他帶著西門去見耶穌。

耶穌看著西門,對他說:「約翰的兒子西門,你要改名為磯法。」磯法的意思是彼得

43又過了一天,耶穌決定去加利利。祂遇見了腓力,就對他說:「跟從我!」 44腓力伯賽大人,與彼得安得烈是同鄉。 45腓力去找拿但業,對他說:「我們遇見了摩西律法書和先知書記載的那位!祂是約瑟的兒子耶穌,從拿撒勒來的。」

46拿但業說:「拿撒勒還會出什麼好東西?」

腓力說:「你來看看吧!」

47耶穌看見拿但業走過來,就指著他說:「看啊,這是個真正的以色列人!他心裡毫無詭詐。」

48拿但業問耶穌:「你怎麼會認識我?」

耶穌答道:「腓力還沒有去找你之前,我就看見你在無花果樹下了。」

49拿但業說:「老師,你是上帝的兒子!你是以色列的王!」

50耶穌說:「我說看見你在無花果樹下,你就信我嗎?將來你還要看見比這更大的事。 51我實實在在地告訴你們,你們會看見天門敞開,上帝的天使以人子1·51 人子」是耶穌的自稱,耶穌在這裡自比天梯,背景請參見創世記28·12為梯上上下下。」

Hindi Contemporary Version

योहन 1:1-51

शब्द का शरीर धारण करना

1आदि में वचन था, वचन परमेश्वर के साथ था और वचन परमेश्वर था. 2यही वचन आदि में परमेश्वर के साथ था. 3सारी सृष्टि उनके द्वारा उत्पन्‍न हुई. सारी सृष्टि में कुछ भी उनके बिना उत्पन्‍न नहीं हुआ. 4जीवन उन्हीं में था और वह जीवन मानव जाति की ज्योति था. 5वह ज्योति अंधकार में चमकती रही. अंधकार उस पर प्रबल न हो सका.

6परमेश्वर ने योहन नामक एक व्यक्ति को भेजा 7कि वह ज्योति को देखें और उसके गवाह बनें कि लोग उनके माध्यम से ज्योति में विश्वास करें. 8वह स्वयं ज्योति नहीं थे किंतु ज्योति की गवाही देने आए थे.

9वह सच्ची ज्योति, जो हर एक व्यक्ति को प्रकाशित करती है, संसार में आने पर थी. 10वह संसार में थे और संसार उन्हीं के द्वारा बनाया गया फिर भी संसार ने उन्हें न जाना. 11वह अपनी सृष्टि में आए किंतु उनके अपनों ने ही उन्हें ग्रहण नहीं किया. 12परंतु जितनों ने उन्हें ग्रहण किया अर्थात् उनके नाम में विश्वास किया, उन सबको उन्होंने परमेश्वर की संतान होने का अधिकार दिया; 13जो न तो लहू से, न शारीरिक इच्छा से और न मानवीय इच्छा से, परंतु परमेश्वर से पैदा हुए हैं.

14वचन ने शरीर धारण कर हमारे मध्य तंबू के समान वास किया और हमने उनकी महिमा को अपना लिया—ऐसी महिमा को, जो पिता के एकलौते पुत्र की होती है—अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण.

15उन्हें देखकर योहन ने घोषणा की, “यह वही हैं जिनके विषय में मैंने कहा था, ‘वह, जो मेरे बाद आ रहे हैं, वास्तव में मुझसे श्रेष्ठ हैं क्योंकि वह मुझसे पहले थे.’ ” 16उनकी परिपूर्णता के कारण हम सबने अनुग्रह पर अनुग्रह प्राप्‍त किया. 17व्यवस्था मोशेह के द्वारा दी गयी थी, किंतु अनुग्रह और सच्चाई मसीह येशु द्वारा आए. 18परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा, केवल परमेश्वर-पुत्र के अलावा; जो पिता से हैं; उन्हीं ने हमें परमेश्वर से अवगत कराया.

पहला फ़सह पर्व—बपतिस्मा देनेवाले योहन का जीवन-लक्ष्य

19जब यहूदी अगुओं ने येरूशलेम से पुरोहितों और लेवियों को योहन से यह पूछने भेजा, “तुम कौन हो?” 20तो योहन बिना झिझक स्वीकार किया. उसकी गवाही थी, “मैं मसीह नहीं हूं.”

21तब उन्होंने योहन से दोबारा पूछा, “तो क्या तुम एलियाह हो?”

योहन ने उत्तर दिया, “नहीं.”

तब उन्होंने पूछा, “क्या तुम वह भविष्यवक्ता हो?”

योहन ने उत्तर दिया, “नहीं.”

22इस पर उन्होंने पूछा, “तो हमें बताओ कि तुम कौन हो, तुम अपने विषय में क्या कहते हो कि हम अपने भेजने वालों को उत्तर दे सकें?”

23इस पर योहन ने भविष्यवक्ता यशायाह के लेख के अनुसार उत्तर दिया, “मैं उसकी आवाज हूं जो बंजर भूमि में पुकार-पुकारकर कह रही है, ‘प्रभु के लिए मार्ग सीधा करो.’ ”

24ये लोग फ़रीसियों1:24 फ़रीसियों यहूदियों के एक संप्रदाय था, जो कानून-व्यवस्था के सख्त पालन में विश्वास करता था की ओर से भेजे गए थे. 25इसके बाद उन्होंने योहन से प्रश्न किया, “जब तुम न तो मसीह हो, न भविष्यवक्ता एलियाह और न वह भविष्यद्वक्ता, तो तुम बपतिस्मा क्यों देते हो?”

26योहन ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं तो जल में बपतिस्मा देता हूं परंतु तुम्हारे मध्य एक ऐसे हैं, जिन्हें तुम नहीं जानते. 27यह वही हैं, जो मेरे बाद आ रहे हैं, मैं जिनकी जूती का बंध खोलने के योग्य भी नहीं हूं.”

28ये सब बैथनियाह गांव में हुआ, जो यरदन नदी के पार था जिसमें योहन बपतिस्मा दिया करते थे.

बपतिस्मा देनेवाले योहन द्वारा येशु के मसीह होने की पुष्टि

29अगले दिन योहन ने मसीह येशु को अपनी ओर आते हुए देखकर भीड़ से कहा, “वह देखो! परमेश्वर का मेमना, जो संसार के पाप का उठानेवाला है! 30यह वही हैं, जिनके विषय में मैंने कहा था, ‘मेरे बाद वह आ रहे हैं, जो मुझसे श्रेष्ठ हैं क्योंकि वह मुझसे पहले से मौजूद हैं.’ 31मैं भी उन्हें नहीं जानता था, मैं जल में बपतिस्मा देता हुआ इसलिये आया कि वह इस्राएल पर प्रकट हो जाएं.”

32इसके अतिरिक्त योहन ने यह गवाही भी दी, “मैंने स्वर्ग से आत्मा को कबूतर के समान उतरते और मसीह येशु पर ठहरते हुए देखा. 33मैं उन्हें नहीं जानता था किंतु परमेश्वर, जिन्होंने मुझे जल में बपतिस्मा देने के लिए भेजा, उन्हीं ने मुझे बताया, ‘जिस पर तुम आत्मा को उतरते और ठहरते हुए देखोगे, वही पवित्र आत्मा में बपतिस्मा देंगे.’ 34स्वयं मैंने यह देखा और मैं इसका गवाह हूं कि यही परमेश्वर का पुत्र हैं.”

पहले शिष्य

35अगले दिन जब योहन अपने दो शिष्यों के साथ खड़े हुए थे, 36उन्होंने मसीह येशु को जाते हुए देखकर कहा, “वह देखो! परमेश्वर का मेमना!”

37यह सुनकर दोनों शिष्य मसीह येशु की ओर बढ़ने लगे. 38मसीह येशु ने उन्हें अपने पीछे आते देख उनसे पूछा, “तुम क्या चाहते हो?” उन्होंने कहा, “गुरुवर, आप कहां रहते हैं?”

39मसीह येशु ने उनसे कहा, “आओ और देख लो.”

इसलिये उन्होंने जाकर मसीह येशु का घर देखा और उस दिन उन्हीं के साथ रहे. यह दिन का लगभग दसवां घंटा था.

40योहन की गवाही सुनकर मसीह येशु के पीछे आ रहे दो शिष्यों में एक शिमओन पेतरॉस के भाई आन्द्रेयास थे. 41उन्होंने सबसे पहले अपने भाई शिमओन को खोजा और उन्हें सूचित किया, “हमें मसीह—परमेश्वर के अभिषिक्त—मिल गए हैं.” 42तब आन्द्रेयास उन्हें मसीह येशु के पास लाए.

मसीह येशु ने शिमओन की ओर देखकर कहा, “तुम योहन के पुत्र शिमओन हो, तुम कैफ़स अर्थात् पेतरॉस कहलाओगे.”

फ़िलिप्पॉस और नाथानाएल का बुलाया जाना

43अगले दिन गलील जाते हुए मसीह येशु की भेंट फ़िलिप्पॉस से हुई. उन्होंने उनसे कहा, “मेरे पीछे हो ले.”

44आन्द्रेयास और शिमओन के समान फ़िलिप्पॉस भी बैथसैदा नगर के निवासी थे. 45फ़िलिप्पॉस ने नाथानाएल को खोज कर उनसे कहा, “जिनका वर्णन व्यवस्था में मोशेह और भविष्यद्वक्ताओं ने किया है, वह हमें मिल गए हैं—नाज़रेथ निवासी योसेफ़ के पुत्र येशु.”

46यह सुन नाथानाएल ने तुरंत उनसे पूछा, “क्या नाज़रेथ से कुछ भी उत्तम निकल सकता है?”

“आकर स्वयं देख लो,” फ़िलिप्पॉस ने उत्तर दिया.

47मसीह येशु ने नाथानाएल को अपनी ओर आते देख उनके विषय में कहा, “देखो! एक सच्चा इस्राएली है, जिसमें कोई कपट नहीं है.”

48नाथानाएल ने मसीह येशु से पूछा, “आप मुझे कैसे जानते हैं?”

मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “इससे पूर्व कि फ़िलिप्पॉस ने तुम्हें बुलाया, मैंने तुम्हें अंजीर के पेड़ के नीचे देखा था.”

49नाथानाएल कह उठे, “रब्बी, आप परमेश्वर का पुत्र हैं! आप इस्राएल के राजा हैं!”

50तब मसीह येशु ने उनसे कहा, “क्या तुम विश्वास इसलिये करते हो कि मैंने तुमसे यह कहा कि मैंने तुम्हें अंजीर के पेड़ के नीचे देखा? तुम इससे भी अधिक बड़े-बड़े काम देखोगे.” 51तब उन्होंने यह भी कहा, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूं: तुम स्वर्ग को खुला हुआ और परमेश्वर के स्वर्गदूतों को मनुष्य के पुत्र1:51 मनुष्य के पुत्र प्रभु येशु स्वयं के बारे में कहने का यह एक तरीका के लिए नीचे आते और ऊपर जाते हुए देखोगे.”