撒母耳記下 15 – CCBT & HCV

Chinese Contemporary Bible (Traditional)

撒母耳記下 15:1-37

押沙龍謀反

1後來,押沙龍為自己備了車馬,又派五十個人在他前面開道。 2他常常清早起來,站在城門的通道旁邊。每當有人來找王審理爭訟時,押沙龍便問他是從哪一座城來的,那人就會報上自己所屬的支派。 3押沙龍會對他說:「你的申訴合情合理,可惜王沒有派人來聽你申訴。」 4他接著會說:「要是我被立為國中的審判官就好了!那樣,任何人有申訴都可以來找我,我一定會為他主持公道。」 5每當有人要向他叩拜,他都伸手扶他,親吻他。 6押沙龍這樣對待每一個來向王申訴的以色列人,贏得了民心。

7過了四年,押沙龍對王說:「請讓我到希伯崙去還我向耶和華許下的願吧。 8僕人住在亞蘭基述時曾許願,如果耶和華帶領我回到耶路撒冷,我必在希伯崙敬拜祂。」 9王說:「你平安地去吧!」押沙龍就去了希伯崙10他派密使通知以色列各支派一聽見號角的響聲,便喊:「押沙龍希伯崙做王了!」 11有二百人應邀隨同押沙龍一起從耶路撒冷希伯崙,他們對內情一無所知。 12押沙龍獻祭的時候,還派人去把大衛的謀士亞希多弗從他的故鄉基羅請來。反叛的勢力大增,擁護押沙龍的民眾越來越多。

大衛逃離耶路撒冷

13有人來稟告大衛:「以色列的民心都歸向押沙龍了。」 14大衛便對在耶路撒冷跟隨他的臣僕說:「我們趕快逃命吧!否則,我們都難逃押沙龍的追捕。我們要馬上離開!免得他趕到殘害我們,屠殺全城。」 15臣僕對王說:「臣等謹遵我主我王的決定。」 16於是王就帶著全家逃命,只留下十個妃嬪看守宮殿。

17大衛王帶著眾民離開耶路撒冷,走到最後的那座房子時,停了下來。 18跟隨他的人都走到前面去了,包括基利提人、比利提人以及從迦特來跟隨他的六百人。 19王問迦特以太說:「你為什麼要跟我們一起逃難呢?回去留在新王那裡吧!你是流亡到這裡的外族人。 20你剛來不久,我怎麼可以叫你跟我們一同四處飄流呢?我甚至不知道往何處去。你還是和你的弟兄回去吧,願耶和華以慈愛和信實待你!」 21以太卻答道:「我憑永活的耶和華和我主我王的性命起誓,不管我王去哪裡,僕人都要誓死追隨到底!」 22大衛便對以太說:「那就繼續前行吧!」於是,迦特以太帶著他的人及所有的家眷繼續前行。 23眾人離開時,百姓都放聲大哭。王帶著所有的人過了汲淪溪,向曠野走去。

24祭司撒督亞比亞他和抬上帝約櫃的利未人都來了,他們把約櫃放下,讓城裡出來的人先走過去。 25王對撒督說:「你把上帝的約櫃運回城去吧。倘若耶和華恩待我,祂必使我重返家園,重見約櫃和會幕; 26但如果我使祂不悅,我也甘願聽憑祂的處置。 27你是個有先見之明的人,安心帶著你的兒子亞希瑪斯亞比亞他的兒子約拿單回城吧。 28我會在曠野渡口那裡等你們的消息。」 29於是,撒督亞比亞他便把上帝的約櫃抬回耶路撒冷,留了下來。

30大衛蒙著頭,赤著腳登上橄欖山,邊走邊哭,他的隨從也蒙著頭,哭著走上山。 31有人告訴大衛亞希多弗也叛變,投奔了押沙龍大衛就禱告說:「耶和華啊,求你使亞希多弗的謀算都變得愚不可及。」 32大衛來到山頂敬拜上帝的地方,看見亞基戶篩撕破了衣服,頭蒙灰塵前來迎接他。 33大衛對他說:「你跟我一同逃命,只會給我帶來不便。 34你還是回到城中,告訴押沙龍你願意做他的臣僕,就像以前做我的臣僕一樣,這樣你就可以幫我破壞亞希多弗的計謀。 35祭司撒督亞比亞他都在那裡,你在宮內聽到什麼消息就告訴他們。 36撒督的兒子亞希瑪斯亞比亞他的兒子約拿單也在那裡,你聽到什麼消息,可以派他們傳信給我。」 37於是,大衛的朋友戶篩便回到城裡。那時,押沙龍也進了耶路撒冷

Hindi Contemporary Version

2 शमुएल 15:1-37

अबशालोम का विद्रोह

1कुछ समय बाद अबशालोम ने अपने लिए एक रथ, कुछ घोड़े और इनके आगे-आगे दौड़ने के लिए पचास दौड़ने वाले जुटा लिए. 2अबशालोम सुबह जल्दी उठकर नगर फाटक के मार्ग पर खड़ा हो जाता था. जब कभी कोई व्यक्ति अपना विवाद लेकर राजा के सामने न्याय के उद्देश्य से आता था, अबशालोम उसे बुलाकर उससे पूछता था, “कहां से आ रहे हो?” उसे उत्तर प्राप्‍त होता था, “इस्राएल के एक वंश से.” 3तब अबशालोम उसे सलाह देता था, “देखो, तुम्हारी विनती पूरी तरह सटीक और सही है, मगर राजा द्वारा ऐसा कोई अधिकारी नियुक्त नहीं किया है, कि तुम्हारी विनती पर विचार किया जा सके.” 4अबशालोम आगे कहता था, “कितना अच्छा होता यदि मैं उस देश के लिए न्यायाध्यक्ष बना दिया जाता! तब हर एक व्यक्ति आकर मुझसे उचित न्याय प्राप्‍त कर सकता.”

5यदि कोई व्यक्ति आकर उसे नमस्कार करने आता था, वह हाथ बढ़ाकर उसे पकड़कर उसका चुंबन ले लिया करता था. 6अबशालोम की अब यही रीति हो गई थी, कि जो कोई न्याय के उद्देश्य से राजा के सामने जाने के लिए आता था, अबशालोम उसके साथ यही व्यवहार करता था. यह करके अबशालोम ने इस्राएल की जनता के हृदय जीत लिया.

7चार वर्ष पूरे होते-होते अबशालोम ने राजा से कहा, “कृपया मुझे हेब्रोन जाने की अनुमति दीजिए. मुझे वहां याहवेह से किए गए अपने संकल्प को पूरा करना है. 8अराम राष्ट्र के गेशूर में रहते हुए आपके सेवक ने यह संकल्प लिया था, ‘यदि याहवेह मुझे वास्तव में येरूशलेम लौटा ले आएंगे, मैं हेब्रोन में आकर याहवेह की वंदना करूंगा.’ ”

9राजा ने उसे उत्तर दिया, “शांतिपूर्वक जाओ.” तब अबशालोम तैयार होकर हेब्रोन के लिए चला गया.

10अबशालोम सारे इस्राएल में गुप्‍त रूप से इस संदेश के साथ दूत भेज चुका था, “जैसे ही तुम नरसिंगे की आवाज सुनो, यह घोषणा करना, ‘हेब्रोन में अबशालोम राजा है.’ ” 11येरूशलेम से अबशालोम के साथ दो सौ व्यक्ति भी हेब्रोन गए ये; आमंत्रित अतिथि थे. वे काफ़ी मासूमियत से गए थे; उन्हें कुछ भी मालूम न था कि क्या-क्या हो रहा था. 12अबशालोम ने बलि चढ़ाने के अवसर पर गिलोहवासी अहीतोफ़ेल को गिलोह नगर, जो उनके अपना नगर था, आने का न्योता दिया. अहीतोफ़ेल दावीद का मंत्री था. यहां अबशालोम के समर्थक की संख्या बढ़ती जा रही थी, जिससे राजा के विरुद्ध षड़्‍यंत्र मजबूत होता चला गया.

येरूशलेम से दावीद का पलायन

13एक दूत ने आकर दावीद को यह सूचना दी, “इस्राएल के लोगों के दिल अबशालोम के साथ हो गया है.”

14यह मालूम होते ही दावीद ने येरूशलेम में अपने साथ के सभी सेवकों को आदेश दिया, “उठो! हमें यहां से भागना होगा, नहीं तो हम अबशालोम से बच न सकेंगे. हमें इसी क्षण निकलना होगा, कि हम घिर न जाएं और हम पर विनाश न आ पड़े और सारा नगर तलवार का आहार न हो जाए.”

15राजा के सेवकों ने उन्हें उत्तर दिया, “सच मानिए महाराज, हमारे स्वामी जो कुछ कहें वह करने के लिए आपके सेवक तैयार हैं.”

16तब राजा निकल पड़े और उनके साथ उनका सारा घर-परिवार भी; मगर दावीद ने अपनी दस उपपत्नियों को घर की देखभाल के उद्देश्य से वहीं छोड़ दीं. 17राजा अपने घर से निकल पड़े और उनके पीछे-पीछे सारे लोग भी. चलते हुए वे आखिरी घर तक पहुंचकर ठहर गए. 18उनके सारे अधिकारी उनके पास से निकलकर आगे बढ़ गए. ये सभी थे केरेथि, पेलेथी और छः सौ गाथवासी, जो उनके साथ गाथ नगर से आए हुए थे. ये सभी उनके सामने से होकर निकले.

19राजा ने गाथ नगरवासी इत्तई से कहा, “आप क्यों हमारे साथ हो लिए हैं? आप लौट जाइए, और अपने राजा का साथ दीजिए. वैसे भी आप विदेशी हैं, अपने स्वदेश से निकाले हुए. 20आप कल ही तो हमारे पास आए हैं. क्या मैं आपको अपने साथ भटकाने के लिए विवश करूं? मुझे तो यही मालूम नहीं मैं किधर जा रहा हूं? आप लौट जाइए, ले जाइए अपने भाइयों को अपने साथ. याहवेह तुम पर अपना अपार प्रेम और विश्वासयोग्यता बनाए रखें.”

21मगर इत्तई ने राजा को उत्तर दिया, “जीवित याहवेह की शपथ, जहां कहीं महाराज मेरे स्वामी होंगे, चाहे जीवन में अथवा मृत्यु में, आपका सेवक भी वहीं होगा.”

22तब दावीद ने इत्तई से कहा, “जैसी तुम्हारी इच्छा.” तब गाथवासी इत्तई इन सभी व्यक्तियों के साथ शामिल हो गए, इनमें बालक भी शामिल थे.

23जब यह समूह आगे बढ़ रहा था सारा देश ऊंची आवाज में रो रहा था. राजा ने किद्रोन नदी पार की, और वे सब बंजर भूमि की ओर बढ़ गए.

24अबीयाथर भी वहां आए और सादोक के साथ सारे लेवी लोग भी. ये अपने साथ परमेश्वर की वाचा का संदूक भी ले आए थे. उन्होंने वाचा के संदूक को उस समय तक भूमि पर रखे रहने दिया जब तक सभी लोग नगर से बाहर न निकल गए.

25इसके बाद राजा ने सादोक को आदेश दिया, “परमेश्वर की वाचा के संदूक को अब नगर लौटा ले जाओ. यदि याहवेह की कृपादृष्टि मुझ पर बनी रही, तो वह मुझे लौटा लाएंगे तब मैं इस संदूक और उनके निवास का दर्शन कर सकूंगा. 26मगर यदि याहवेह यह कहें, ‘तुममें मेरी कोई भी खुशी नहीं,’ तो मैं यही हूं कि वह मेरे साथ वहीं करे, जो उन्हें उचित जान पड़े.”

27तब राजा ने पुरोहित सादोक से कहा, “सुनिए, आप शांतिपूर्वक नगर लौट जाइए, अपने साथ अपने पुत्र अहीमाज़ को और अबीयाथर के पुत्र योनातन को ले जाइए. 28यह ध्यान में रहे: तुमसे सूचना प्राप्‍त होने तक मैं वन में ठहरूंगा.” 29अबीयाथर परमेश्वर का संदूक लेकर येरूशलेम लौट गए, और वे वहीं ठहरे रहे.

30दावीद ज़ैतून पर्वत की चढ़ाई चढ़ते चले गए वह चलते हुए रोते जा रहे थे. उनका सिर तो ढका हुआ था मगर पांव नंगे. उनके साथ चल रहे हर एक व्यक्ति ने भी अपना अपना सिर ढांक लिया था और वे भी रोते हुए चल रहे थे. 31इस अवसर पर किसी ने दावीद को यह सूचना दी. “अहीतोफ़ेल भी अबशालोम के षड़्यंत्रकारियों में शामिल है.” यह सुन दावीद ने प्रार्थना की, “याहवेह, आपसे मेरी प्रार्थना है, अहीतोफ़ेल की सलाह को मूर्खता में बदल दीजिए.”

32जब दावीद पर्वत की चोटी पर पहुंच रहे थे, जिस स्थान पर परमेश्वर की आराधना की जाती है, अर्की हुशाई उनसे भेंटकरने आ गया. उसका बाहरी वस्त्र फटे हुए थे और सिर पर धूल पड़ी हुई थी. 33दावीद ने उससे कहा, “सुनो, यदि तुम मेरे साथ चलोगे तो मेरे लिए बोझ बन जाओगे. 34मगर यदि तुम लौटकर नगर चले जाओ और अबशालोम से कहो, ‘महाराज, मैं अब आपका सेवक हूं; ठीक जिस प्रकार पहले आपके पिता का सेवक था; अब आपका सेवक रहूं,’ तब तुम वहां मेरे पक्ष में अहीतोफ़ेल की युक्ति को विफल कर सकोगे. 35तुम्हारे साथ के पुरोहित सादोक और अबीयाथर भी तो वहीं हैं. राजमहल से तुम्हें जो कुछ मालूम होता है, तुम वह पुरोहित सादोक और अबीयाथर को सूचित कर सकते हो. 36याद है न, उनके दो पुत्र वहां उनके साथ हैं—अहीमाज़, सादोक का पुत्र और योनातन, अबीयाथर का पुत्र. तुम्हें वहां जो कुछ मालूम होता है, तुम इनके द्वारा भेज सकते हो.”

37तब दावीद के मित्र हुशाई नगर में आ गए. अबशालोम भी इस समय येरूशलेम आ चुका था.