撒母耳記上 25 – CCBT & HCV

Chinese Contemporary Bible (Traditional)

撒母耳記上 25:1-44

大衛與亞比該

1撒母耳死了,以色列人都聚在一起哀悼他,把他安葬在拉瑪他自己的墳地裡。之後,大衛到了巴蘭的曠野。 2瑪雲有個富翁擁有三千隻綿羊和一千隻山羊,他的產業在迦密。當時他正在迦密剪羊毛。 3他名叫拿八,是迦勒族人,妻子名叫亞比該,既聰慧又漂亮。拿八粗暴兇惡。 4大衛在曠野得知拿八正在剪羊毛, 5就派十個部下到迦密去見拿八,吩咐他們以他的名義向拿八問安, 6拿八說:「願你和你全家平安,願你一切順利! 7我聽說你正在剪羊毛。你的牧人與我們在迦密的時候,我們沒有欺負過他們,他們沒有丟過任何東西。 8你問問你的僕人就知道了。請你恩待我的部下,因為今天是好日子,求你隨手賞一點東西給晚輩我和我的部下。」

9大衛的部下就去把大衛的話告訴拿八,等候他的答覆。 10拿八說:「大衛是誰?耶西的兒子是誰?這些日子有很多僕人逃離主人, 11我怎能把餅、水和為剪羊毛者預備的肉分給一群來歷不明的人呢?」 12大衛的部下回去把拿八的話稟告大衛13大衛聽了,就吩咐眾人備刀,他自己也帶了刀去拿八那裡。大衛帶了四百人去,留下二百人看守營地。

14拿八的一個僕人告訴拿八的妻子亞比該說:「大衛從曠野派人來向我們主人問安,主人卻辱罵他們。 15大衛的僕人對我們很好,從來不欺負我們。我們跟他們一起在田野的時候,從來沒有丟過任何東西。 16我們在他們附近牧羊的時候,他們晝夜不斷地保護我們。 17所以,請你趕快想個法子,不然主人和他全家恐怕都會大難臨頭。主人是個兇暴的人,沒有人敢跟他說話。」

18亞比該連忙用驢馱上二百塊餅、兩皮袋酒、五隻宰好了的羊、三十七升烤麥、一百塊葡萄餅和二百塊無花果餅, 19又吩咐僕人說:「你們先去吧!我隨後就來。」她沒有把這事告訴丈夫拿八20她騎著驢下山的時候,就看見大衛和他的部下迎面而來。 21大衛曾說:「我在曠野保護這人的羊群,使牠們不致丟失,真是枉費功夫。他竟以怨報德。 22如果我讓他家裡一個男子活到明早,願上帝重重地懲罰我!」

23亞比該看見大衛,連忙下驢俯伏下拜。 24她俯伏在大衛腳前說:「我主啊,我願意承擔一切的罪過,請聽婢女說。 25請不要理會拿八那個惡徒,他人如其名25·25 拿八」意思是「愚蠢」。,是個名符其實的蠢人。當時婢女沒有見到你派來的使者。 26我主啊,既然耶和華阻止你親手殺人報仇,我就憑永活的耶和華和你的性命起誓,願你的仇敵和傷害你的人都像拿八一樣沒有好下場。 27現在,請把婢女帶來的禮物分給你的部下吧。 28請饒恕婢女的罪過,耶和華必使你的子孫世代做王,因為你是在為耶和華而戰,願你一生沒有過錯。 29你就是被人追殺,也會在你的上帝耶和華的保護下安然無恙。你敵人的性命卻要像石頭一樣被耶和華用投石器拋出去。 30-31如果你現在沒有殺人報仇,傷害無辜,到了耶和華照應許賜福給你、立你做以色列王的時候,你就不會心裡不安了。我主啊,耶和華賜福給你的時候,求你不要忘了婢女。」

32大衛亞比該說:「以色列的上帝耶和華當受稱頌!祂今天派你來見我。 33你很有見識,你今天攔阻我親手殺人復仇,值得稱讚。 34我憑阻止我殺你的以色列的上帝——永活的耶和華起誓,若不是你趕來迎接我,拿八家中不會有一個男子活到明天早上。」 35大衛接受了亞比該的禮物,對她說:「安心回家吧,我答應你的請求。」

36她回到家時,拿八正在大擺宴席,排場如御宴。她見拿八心情愉快,喝得酩酊大醉,就什麼也沒告訴他,等第二天早上再說。 37次日清晨,拿八酒醒以後,他妻子把發生的一切告訴他,他嚇得昏死過去,身體僵硬如石。 38過了十天,耶和華擊打拿八,他就死了。

39大衛聽見拿八的死訊,就說:「讚美耶和華!拿八羞辱我,祂為我申了冤,又阻止僕人行惡。祂使拿八得到了報應。」後來,大衛差遣使者去向亞比該求婚。 40他的使者就啟程到迦密去向亞比該傳達大衛的心意。 41亞比該聽了,立刻俯伏在地上說:「婢女願意效勞,為我主的僕人洗腳。」 42她連忙騎上驢,帶了五個侍女,跟隨大衛的使者前去,做了大衛的妻子。 43大衛已經娶了耶斯列亞希暖,她們二人就同做大衛的妻子。 44掃羅已經把自己的女兒——大衛的妻子米甲嫁給了迦琳拉億的兒子帕提

Hindi Contemporary Version

1 शमुएल 25:1-44

शमुएल का देहांत

1शमुएल की मृत्यु हो गई. सारा इस्राएलियों ने एकत्र होकर उनके लिए विलाप किया; उन्हें उनके गृहनगर रामाह में गाड़ दिया. इसके बाद दावीद पारान25:1 पारान कुछ पाण्डुलिपियों में माओन के निर्जन प्रदेश में जाकर रहने लगे.

2कालेब के कुल का एक व्यक्ति था, वह माओन नगर का निवासी था. कर्मेल नगर के निकट वह एक भूखण्ड का स्वामी था. वह बहुत ही धनी व्यक्ति था. उसके तीन हज़ार भेड़ें, तथा एक हज़ार बकरियां थी. 3उसका नाम नाबाल था और उसकी अबीगइल नामक पत्नी थी, जो बहुत ही रूपवती एवं विदुषी थी. मगर वह स्वयं बहुत ही नीच, क्रूर तथा क्रुद्ध प्रकृति का था.

4इस समय दावीद निर्जन प्रदेश में थे, और उन्हें मालूम हुआ कि नाबाल भेड़ों का ऊन क़तर रहा है. 5तब दावीद ने वहां दस नवयुवक भेज दिए और उन्हें यह आदेश दिया, “नाबाल से भेंटकरने कर्मेल नगर चले जाओ और उसे मेरी ओर से शुभकामनाएं तथा अभिवंदन प्रस्तुत करना. 6तब तुम उससे कहना: ‘आप पर तथा आपके परिवार पर शांति स्थिर रहें! आप चिरायु हों! आपकी सारी संपत्ति पर समृद्धि बनी रहे!

7“ ‘मुझे यह समाचार प्राप्‍त हुआ है कि आपकी भेड़ों का ऊन क़तरा जा रहा है. जब आपके चरवाहे हमारे साथ थे, सारे समय जब वे कर्मेल में थे, हमने न तो उन्हें अपमानित किया, न उन्हें कोई हानि पहुंचाई है. 8आप स्वयं अपने सेवकों से इस विषय में पूछ सकते हैं. आपकी कृपा हम पर बनी रहे. हम आपकी सेवा में उत्सव के मौके पर आए हैं. कृपया अपने सेवकों को, तथा अपने पुत्र समान सेवक दावीद को, जो कुछ आपको सही लगे, दे दीजिए.’ ”

9दावीद के नवयुवक साथी वहां गए, और दावीद की ओर से नाबाल को यह संदेश दे दिया, और वे नाबाल के प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा करने लगे.

10“कौन है यह दावीद?” नाबाल ने दावीद के साथियों को उत्तर दिया, “और कौन है यह यिशै का पुत्र? कैसा समय आ गया है, जो सारे दास अपने स्वामियों को छोड़-छोड़कर भाग रहे हैं. 11अब क्या मेरे लिए यही शेष रह गया है कि मैं अपने सेवकों के हिस्से का भोजन लेकर इन लोगों को दे दूं? मुझे तो यही समझ नहीं आ रहा कि ये लोग कौन हैं, और कहां से आए हैं?”

12तब दावीद के साथी लौट गए. लौटकर उन्होंने दावीद को यह सब सुना दिया. 13दावीद ने अपने साथियों को आदेश दिया, “हर एक व्यक्ति अपनी तलवार उठा ले!” तब सबने अपनी तलवार धारण कर ली. दावीद ने भी अपनी तलवार धारण कर ली. ये सब लगभग चार सौ व्यक्ति थे, जो इस अभियान में दावीद के साथ थे, शेष लगभग दो सौ उनके विभिन्‍न उपकरणों तथा आवश्यक सामग्री की रक्षा के लिए ठहर गए.

14इसी बीच नाबाल के एक सेवक ने नाबाल की पत्नी अबीगइल को संपूर्ण घटना का वृत्तांत सुना दिया, “दावीद ने हमारे स्वामी के पास मरुभूमि से अपने प्रतिनिधि भेजे थे, कि वे उन्हें अपनी शुभकामनाएं प्रस्तुत करें, मगर स्वामी ने उन्हें घोर अपमान करके लौटा दिया है. 15ये सभी व्यक्ति हमारे साथ बहुत ही सौहार्दपूर्ण रीति से व्यवहार करते रहे थे. उन्होंने न कभी हमारा अपमान किया, न कभी हमारी कोई हानि ही की. जब हम मैदानों में भेड़ें चराया करते थे हमारी कोई भी भेड़ नहीं खोई. हम सदैव साथ साथ रहे. 16दिन और रात संपूर्ण समय वे मानो हमारे लिए सुरक्षा की दीवार बने रहते थे, जब हम उनके साथ मिलकर भेड़ें चराया करते थे. 17अब आप स्थिति की गंभीरता को पहचान लीजिए और विचार कीजिए, कि अब आपका क्या करना सही होगा, क्योंकि अब हमारे स्वामी और उनके संपूर्ण परिवार के लिए बुरा योजित हो चुका है. वह ऐसा दुष्ट व्यक्ति हैं, कि कोई उन्हें सुझाव भी नहीं दे सकता.”

18यह सुनते ही अबीगइल ने तत्काल दो सौ रोटियां, दो छागलें द्राक्षारस, पांच भेड़ें, जो पकाई जा चुकी थी, पांच माप भुना हुआ अन्‍न, किशमिश के सौ पिंड तथा दो सौ पिंड अंजीरों को लेकर गधों पर लाद दिया. 19“उसने अपने सेवकों को आदेश दिया, मेरे आगे-आगे चलो, मैं तुम्हारे पीछे आऊंगी.” मगर स्वयं उसने इसकी सूचना अपने पति नाबाल को नहीं दी.

20जब वह अपने गधे पर बैठी हुई पर्वत के उस गुप्‍त मार्ग पर थी, उसने देखा कि दावीद तथा उनके साथी उसी की ओर बढ़े चले आ रहे थे, और वे आमने-सामने आ गए. 21इस समय दावीद विचार कर ही रहे थे, “निर्जन प्रदेश में हमने व्यर्थ ही इस व्यक्ति की संपत्ति की ऐसी रक्षा की, कि उसकी कुछ भी हानि नहीं हुई, मगर उसने इस उपकार का प्रतिफल हमें इस बुराई से दिया है. 22यदि प्रातःकाल तक उसके संबंधियों में से एक भी नर जीवित छोड़ दूं, तो परमेश्वर दावीद के शत्रुओं से ऐसा ही, एवं इससे भी बढ़कर करें!”

23दावीद को पहचानते ही अबीगइल तत्काल अपने गधे से उतर पड़ीं, उनके सामने मुख के बल गिर दंडवत हुई. 24तब उन्होंने दावीद के चरणों पर गिरकर उनसे कहा, “दोष सिर्फ मेरा ही है, मेरे स्वामी, अपनी सेविका को बोलने की अनुमति दें, तथा आप मेरा पक्ष सुन लें. 25मेरे स्वामी, कृपया आप इस निकम्मे व्यक्ति नाबाल के कड़वे वचनों पर ध्यान न दें. उसकी प्रकृति ठीक उसके नाम के ही अनुरूप है. उसका नाम है नाबाल और मूर्खता उसमें सचमुच व्याप्‍त है. खेद है कि उस समय मैं वहां न थी, जब आपके साथी वहां आए हुए थे. 26और अब मेरे स्वामी, याहवेह की शपथ, आप चिरायु हों, क्योंकि याहवेह ने ही आपको रक्तपात के दोष से बचा लिया है, और आपको यह काम अपने हाथों से करने से रोक दिया है. अब मेरी कामना है कि आपके शत्रुओं की, जो आपकी हानि करने पर उतारू हैं, उनकी स्थिति वैसी ही हो, जैसी नाबाल की. 27अब आपकी सेविका द्वारा लाई गई इस भेंट को हे स्वामी, आप स्वीकार करें कि इन्हें अपने साथियों में बाट दें.

28“कृपया अपनी सेविका की इस भूल को क्षमा कर दें. याहवेह आपके परिवार को प्रतिष्ठित करेंगे, क्योंकि मेरे स्वामी याहवेह के प्रतिनिधि होकर युद्ध कर रहे हैं. अपने संपूर्ण जीवन में अपने किसी का बुरा नहीं चाहा है. 29यदि कोई आपके प्राण लेने के उद्देश्य से आपका पीछा करना शुरू कर दे, तब मेरे स्वामी का जीवन याहवेह, आपके परमेश्वर की सुरक्षा में जीवितों की झोली में संचित कर लिया जाएगा, मगर आपके शत्रुओं के जीवन को इस प्रकार दूर प्रक्षेपित कर देंगे, जैसे गोफन के द्वारा पत्थर फेंक दिया जाता है. 30याहवेह मेरे स्वामी के लिए वह सब करेंगे, जिसकी उन्होंने आपसे प्रतिज्ञा की है. वह आपको इस्राएल के शासक बनाएंगे, 31अब आपकी अंतरात्मा निर्दोष के लहू बहाने के दोष से न भरेगी, और न आपको इस विषय में कोई खेद होगा कि आपने स्वयं बदला ले लिया. मेरे स्वामी, जब याहवेह आपको उन्‍नत करें, कृपया अपनी सेविका को अवश्य याद रखियेगा.”

32अबीगइल से ये उद्गार सुनकर दावीद ने उन्हें संबोधित कर कहा, “याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर की स्तुति हो, जिन्होंने आपको मुझसे भेंटकरने भेज दिया है. 33सराहनीय है आपका उत्तम अनुमान! आज मुझे रक्तपात से रोक देने के कारण आप स्वयं सराहना की पात्र हैं. आपने मुझे आज स्वयं बदला लेने की भूल से भी बचा लिया है. 34याहवेह, इस्राएल के जीवन्त परमेश्वर की शपथ, जिन्होंने मुझे आपका बुरा करने से रोक दिया है, यदि आप आज इतने शीघ्र मुझसे भेंटकरने न आयी होती, सबेरे, दिन का प्रकाश होते-होते, नाबाल परिवार का एक भी नर जीवित न रहता.”

35तब दावीद ने उसके हाथ से उसके द्वारा लाई गई भेंटें स्वीकार की और उसे इस आश्वासन के साथ विदा किया, “शांति से अपने घर लौट जाओ, मैंने तुम्हारी बात मान ली और तुम्हारी विनती स्वीकार कर लिया.”

36जब अबीगइल घर पहुंची, नाबाल ने अपने आवास पर एक भव्य भोज आयोजित किया हुआ था. ऐसा भोज, मानो वह राजा हो. उस समय वह बहुत ही उत्तेजित था तथा बहुत ही नशे में था. तब अबीगइल ने सुबह तक कोई बात न की. 37सुबह, जब नाबाल से शराब का नशा उतर चुका था, उसकी पत्नी ने उसे इस विषय से संबंधित सारा विवरण सुना दिया. यह सुनते ही नाबाल को पक्षाघात हो गया, और वह सुन्‍न रह गया. 38लगभग दस दिन बाद याहवेह ने नाबाल पर ऐसा प्रहार किया कि उसकी मृत्यु हो गई.

39जब दावीद ने नाबाल की मृत्यु का समाचार सुना, वह कह उठे, “धन्य हैं याहवेह, जिन्होंने नाबाल द्वारा किए गए मेरे अपमान का बदला ले लिया है. याहवेह अपने सेवक को बुरा करने से रोके रहे तथा नाबाल को उसके दुराचार का प्रतिफल दे दिया.”

दावीद ने संदेशवाहकों द्वारा अबीगइल के पास विवाह का प्रस्ताव भेजा. 40दावीद के संदेशवाहकों ने कर्मेल नगर जाकर अबीगइल को कहा: “हमें दावीद ने आपके पास भेजा है कि हम आपको अपने साथ उनके पास ले जाएं, कि वे आपसे विवाह कर सकें.”

41वह तत्काल उठी, भूमि पर दंडवत होकर उनसे कहा, “आपकी सेविका मेरे स्वामी के सेवकों के चरण धोने के लिए तत्पर दासी हूं.” 42अबीगइल विलंब न करते उठकर तैयार हो गई. वह अपने गधे पर बैठी और दावीद के संदेशवाहकों के साथ चली गई. उसके साथ उसकी पांच सेविकाएं थी. वहां वह दावीद की पत्नी हो गई. 43दावीद ने येज़्रील नगरवासी अहीनोअम से भी विवाह किया. ये दोनों ही उनकी पत्नी बन गईं. 44इस समय तक शाऊल ने अपनी बेटी मीखल, जो वस्तुतः दावीद की पत्नी थी, लायीश के पुत्र पालतिएल को, जो गल्लीम नगर का वासी था, सौंप दी थी.