撒母耳记下 19 – CCB & HCV

Chinese Contemporary Bible (Simplified)

撒母耳记下 19:1-43

约押劝告大卫

1有人告诉约押,说:“王在为押沙龙哀伤痛哭。” 2士兵们听说王为押沙龙哀痛,胜利的欢腾顿时变为一片哀愁。 3那一天,众人都静悄悄地回城去,好像败兵一样羞愧万分。 4王仍掩面痛哭:“我儿押沙龙啊!押沙龙!我儿!我儿啊!” 5约押就进到屋里,对王说:“你的仆人们救了你和你妻妾儿女的性命,你今天却使他们感到羞愧。 6仇视你的人,你倒去爱他;那些爱你的人,你反憎恶他们。这表明我王的心中根本没有我们这些将领和部下。我想,要是死去的不是押沙龙而是我们,你就高兴了。 7你现在应该出去安抚士兵们。我凭耶和华起誓,如果你不这样做,今天晚上必无一人再追随你。那将是你一生所遭遇的最大灾难!” 8于是王出去坐在城门口,众人听说后,都来到他面前。这时,跟随押沙龙以色列人都各自逃回家去了。

大卫返回耶路撒冷

9以色列各支派的人都在纷纷议论:“王曾把我们从众仇敌和非利士人手中救出来。如今他为了躲避押沙龙而逃离本国。 10我们膏立为王的押沙龙已经死了,为什么无人说请王回来呢?”

11大卫王派人去对祭司撒督亚比亚他说:“你们去问犹大的长老,‘全以色列已经准备迎接王回宫,你们为什么迟迟没有反应? 12你们是王的弟兄,是王的骨肉,为什么迟迟没有迎接王回宫?’ 13你们也要对亚玛撒说,‘你是我的骨肉,要是我不立你为元帅取代约押,愿上帝重重地处罚我。’” 14王的这番话打动了所有犹大人的心,他们派人去请王和王的臣仆回来。

15王便启程回宫。他来到约旦河时,犹大人都到吉甲来迎接他,要护送他过河。 16来自巴户琳便雅悯基拉的儿子示每也急忙跟着犹大人赶来迎接大卫王, 17有一千便雅悯人跟示每一起去迎接大卫王。扫罗的仆人洗巴带着十五个儿子和二十个仆人也赶到约旦河。 18他们渡到河对面帮助王的家眷过河,为王效劳。王正要过河的时候,基拉的儿子示每就俯伏在他面前, 19说:“求我主饶恕仆人的罪过!仆人在我主我王离开耶路撒冷时所犯的罪,求我王不要记在心上。 20仆人自知有罪,所以今天我是整个约瑟家族中第一个迎接我主我王的人。” 21洗鲁雅的儿子亚比筛说:“示每曾经咒骂耶和华所膏立的君王,难道不应该处死他吗?” 22大卫说:“洗鲁雅的儿子,你为何这样说话?你今天是在跟我作对。今天在以色列怎么可以处死人呢?难道我不知道今天我是以色列的王吗?” 23于是大卫起誓不杀示每

24扫罗的孙子米非波设也来迎接王。从王离开那天,直到大卫平安回来之日,他没有修过脚,没有剃过胡子,也没有洗过衣服。 25他到耶路撒冷来迎接王,王问他:“米非波设,当时你为什么不跟我一起走呢?” 26米非波设答道:“我主我王,我是瘸腿的,我本想预备一头驴骑着与我王同去,是我的仆人洗巴欺骗了我。 27他在我主我王面前毁谤我。我主我王就像上帝的天使,请王定夺。 28我父全家在我主我王面前都是该死的,但王却让我与王同席吃饭,我还能向王要求什么呢?” 29王对他说:“不要再提这事了,我决定让你和洗巴平分土地。” 30米非波设说:“把土地都给他吧,我主我王平安地回来就好了。”

31基列巴西莱也从罗基琳下来护送王过约旦河,然后送王上路。 32那时,巴西莱已经是八十高龄了。王留在玛哈念的时候,他曾供应王食物,因为他非常富有。 33王对巴西莱说:“你跟我一同回耶路撒冷,我会照顾你。” 34巴西莱说:“我何必跟王一同去耶路撒冷呢?我还能活多久呢? 35我已经八十岁了,美丑难分,食不知味,乐不辨音,何必为我主我王添麻烦呢? 36仆人只不过是陪王过约旦河,王何必给我这么大的赏赐呢? 37请准我回去,我好死在故乡,葬在父母的墓旁。这里有王的仆人金罕,让他跟我主我王一起去。你看怎么好,就怎么对待他吧。” 38王说:“金罕可以跟我去,我会照你的心愿待他。无论你有什么要求,我都会答应你。” 39王和众人过了约旦河以后,就亲吻巴西莱,为他祝福。巴西莱返回了家乡。

40王过河后,来到吉甲金罕跟随着他。护送王的有犹大的士兵和半数的以色列士兵。 41后来,所有的以色列人来见大卫,说:“为什么我们的弟兄犹大人偷偷地送王、王的家眷和王的部下渡河?” 42犹大人答道:“我们这样做是因为王是我们的亲族。你们为什么生气呢?难道我们吃了王的供应,得了什么礼物吗?” 43以色列人说:“但我们以色列人十个支派和王有十份的情分,你们为什么轻视我们?难道不是我们首先提出要请王回来的吗?”

犹大人的态度比以色列人还要强硬。

Hindi Contemporary Version

2 शमुएल 19:1-43

1योआब को इसकी सूचना इस प्रकार दी गई, “अपने राजा रो-रोकर अबशालोम के लिए विलाप कर रहे हैं.” 2तब उस दिन विजय का हर्ष सारी सेना के लिए विलाप में बदल गया; क्योंकि सेना को यह बताया गया था, “महाराज अपने पुत्र के लिए रो रहे है.” उस दिन की जीत की खुशी गहरी उदासी में बदल गई थी. 3फलस्वरूप, सैनिक नगर में चुपके-चुपके ऐसे प्रवेश कर रहे थे, मानो वे लज्जित होकर युद्ध में शत्रु को पीठ दिखाकर भाग आए हों. 4राजा अपना मुखमंडल ढांप कर ऊंची आवाज में रो रहे थे, “मेरे पुत्र अबशालोम, मेरे पुत्र, मेरे पुत्र!”

5तब योआब ने उस कमरे में जाकर राजा से कहा, “आज आपने अपने उन सभी अधिकारियों का मुख लज्जा से झुका दिया है, जिन्होंने आपकी और आपके पुत्र-पुत्रियों, पत्नियों और उपपत्नियों के जीवन की रक्षा की है. 6आप उनसे तो प्रेम करते हैं, जिन्हें आपसे प्रेम नहीं, और उनसे घृणा करते हैं, जो आपसे प्रेम करते हैं. आज आपने यह साफ़ कर दिया है कि आपकी दृष्टि में न तो अधिकारियों का कोई महत्व है, न सैनिकों का. आज मुझे यह मालूम हो गया है कि आज यदि अबशालोम जीवित होता और हम सभी मृत, तो आपको अत्यंत हर्ष होता. 7अब ऐसा कीजिए: उठिए, बाहर आइए और अपने सैनिकों से सांत्वनापूर्ण शब्दों में बातें कीजिए, नहीं तो जीवित याहवेह की शपथ, यदि आप यह न करेंगे, एक भी सैनिक आज रात आपके साथ देखा न जाएगा. यह आपके लिए ऐसी किसी भी विपदा से कहीं अधिक सोचने लायक होगा, जो आपके बाल्यकाल से आज तक आप पर न आन पड़ी है.”

8तब राजा उठे और नगर द्वार पर जाकर बैठ गए, जब लोगों ने यह सुना, “सुनो, सुनो, राजा द्वार पर बैठे हुए है,” तो लोग राजा के निकट आने लगे.

इस्राएली अपने-अपने घर भाग जा चुके थे.

दावीद का येरूशलेम लौटना

9इस्राएल के सारे गोत्रों में इस समय इस विषय पर उग्र विवाद छिड़ा हुआ था, “राजा ही हमें हमारे शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करते आए हैं, वही हमें फिलिस्तीनियों से मुक्त करते आए हैं, अब वह अबशालोम के कारण देश छोड़कर भाग गए हैं. 10यहां हमने अबशालोम का राजाभिषेक किया और वह युद्ध में मारा गया. तब अब राजा को वापस लाने के बारे में कुछ क्यों नहीं किया जा रहा?”

11राजा दावीद ने पुरोहित सादोक और अबीयाथर के लिए यह संदेश भेजा: “आप यहूदिया के पुरनियों से इस विषय में विचार-विमर्श करें: ‘राजा को उसके आवास में लौटा लाने के विषय में आप सबसे पीछे क्यों हैं, जबकि सारे इस्राएल इस विषय में राजा तक अपने विचार भेज चुका है? 12आप मेरे रिश्तेदार हैं, आप में और मुझे में लहू-मांस का संबंध है. तब आप ही राजा की पुनःस्थापना में पीछे क्यों हैं?’ 13अमासा से कहिये, ‘क्या तुम मेरा लहू-मांस नहीं हो? यदि योआब के स्थान पर तुम आज से ही स्थायी रूप से मेरी सेना के सेनापति का पद ग्रहण न करो, तो मैं परमेश्वर के सामने दंड के योग्य रहूंगा.’ ”

14इस बात ने यहूदिया की जनता का हृदय एक सूत्र में बांध दिया; तब उन्होंने राजा के लिए यह संदेश भेजा, “आप और आपके सारे सेवक यहां लौट आएं.” 15तब राजा लौटकर यरदन नदी तक पहुंचे.

तब यहूदियावासी गिलगाल नामक स्थान पर उनका स्वागत करते हुए प्रतीक्षा कर रहे थे, कि उन्हें यरदन नदी के पार ले आएं. 16बहुरीम नामक स्थान से बिन्यामिन के एक वंशज, गेरा के पुत्र शिमेई यहूदिया के व्यक्तियों को लेकर शीघ्रतापूर्वक राजा दावीद से भेंटकरने आ गए. 17उनके साथ बिन्यामिन वंश के हज़ार व्यक्ति भी थे. उसी समय शाऊल का गृह प्रबंधक ज़ीबा भी अपने पन्द्रह पुत्रों और बीस सेवकों के साथ, ढलान पर यरदन नदी की ओर दौड़ता हुआ राजा से भेंटकरने आया. 18उन्होंने राजा के परिवार को नदी पार करने में सहायता दी, और उनकी सुविधाओं के लिए प्रयास करते रहे.

राजा नदी पार करने पर ही थे, कि गेरा का पुत्र शिमेई आकर राजा के चरणों में गिर पड़ा. 19उसने राजा से तेज आवाज में विनती की, “मेरे स्वामी, न तो मुझे दोषी ठहराएं और न ही मेरे उस गलत व्यवहार को याद रखें, जो मैंने मेरे स्वामी महाराज के येरूशलेम से जाने के अवसर में किया था. महाराज इसे अपने हृदय में न रखें. 20आपके सेवक को यह पता है, कि मैंने यह पाप किया है. इसलिये यह देखिए, आज मैं ही सारे योसेफ़ वंश में से पहला हूं, जो महाराज, मेरे स्वामी से भेंटकरने आया हूं.”

21ज़ेरुइयाह के पुत्र अबीशाई ने इसके लिए सुझाव दिया, “क्या सही नहीं कि जो कुछ शिमेई ने किया है, उसके लिए उसे मृत्यु दंड दिया जाए? उसने याहवेह के अभिषिक्त को शाप दिया था.”

22“तुम ज़ेरुइयाह के पुत्रो,” दावीद ने कहा, “क्या लेना देना है मेरा तुम्हारा? क्या कारण है तुम आज मेरे विपरीत ही जा रहे हो? क्या आज वह दिन है, जिसमें इस्राएल के किसी भी व्यक्ति को प्राण-दंड दिया जाना सही होगा? क्या मुझे यह मालूम नहीं कि मैं इस समय इस्राएल का राजा हूं?” 23तब शिमेई से उन्मुख हो राजा ने कहा, “तुम्हें मृत्यु दंड नहीं दिया जाएगा.” इसके लिए राजा ने उससे शपथ खाई.

24शाऊल का पुत्र मेफ़िबोशेथ भी राजा से भेंटकरने आया. जिस दिन से राजा ने पलायन किया था, उस दिन से राजा के सुरक्षित लौटने तक उसने पैरों का ध्यान न रखा था, न अपनी दाढ़ी का प्रसाधन किया था, और न ही उसने धुले हुए कपड़े पहने थे. 25जब वह राजा से भेंटकरने येरूशलेम में आया, राजा ने उससे कहा, “मेफ़िबोशेथ, पलायन करते समय तुम मेरे साथ क्यों नहीं थे?”

26उसने उत्तर में कहा, “महाराज, मेरे स्वामी, मेरे सेवक ने मेरे साथ छल किया. आपके सेवक ने उससे कह रखा था, ‘मैं अपने लिए गधे की काठी कसूंगा कि मैं उस पर चढ़कर राजा के निकट जा सकूं,’ क्योंकि मैं ठहरा अपंग. 27इसके अलावा उसने महाराज, मेरे स्वामी से आपके सेवक के विरुद्ध झूठा आरोप भी प्रसारित कर दी; मगर महाराज, मेरे स्वामी, आप परमेश्वर के स्वर्गदूत तुल्य हैं; आपको जो कुछ सही लगे, आप वही करें. 28महाराज मेरे स्वामी के सामने, मेरे पिता का वंश मृतकों के समान छोटा था, फिर भी आपने अपने सेवक को उनमें स्थान दिया, जो आपके साथ भोजन करने के लिए चुने गए थे. महाराज से इससे अधिक अपेक्षा करने का मेरा अधिकार ही नहीं रह जाता.”

29राजा ने उससे कहा, “अब ज्यादा बोलने से क्या लाभ? मैंने यह निश्चय किया है कि तुम्हारे और ज़ीबा के बीच संपत्ति को बांट दिया जाएगा.”

30मेफ़िबोशेथ ने राजा से कहा, “आप उसे संपूर्ण संपत्ति ही ले लेने दें. मेरे लिए यही काफ़ी है कि महाराज, मेरे स्वामी सुरक्षित लौट आए हैं.”

31रोगेलिम नामक स्थान से गिलआदवासी बारज़िल्लई भी आए हुए थे. वह राजा के साथ साथ यरदन नदी तक गए थे, कि उन्हें यरदन नदी पार उतार दें. 32बारज़िल्लई बहुत वृद्ध व्यक्ति थे, वह अस्सी वर्षीय थे. राजा के माहानाईम पड़ाव के अवसर पर उन्हीं ने राजा की सुरक्षा का प्रबंध किया था, क्योंकि वहां वह अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. 33राजा ने बारज़िल्लई से कहा, “आप मेरे साथ नदी पार कर चलिए. येरूशलेम में आप मेरे साथ रहेंगे, मैं आपको आश्रय दूंगा.”

34मगर बारज़िल्लई ने राजा को उत्तर दिया, “और कितने दिन बाकी हैं मेरे जीवन के, कि मैं महाराज के साथ येरूशलेम चलूं? 35इस समय मेरी आयु अस्सी वर्ष की है. क्या मुझमें अब यह बोध रह गया है कि सुखद क्या है, और क्या नहीं? क्या आपके सेवक में अब भोजन और पेय से संबंधित स्वाद बोध शेष रह गया है? अथवा क्या में अब भी स्त्री-पुरुष गायक-वृन्द की प्रस्तुति सुनने में समर्थ रह गया हूं? तब क्या लाभ है कि आपका सेवक महाराज मेरे स्वामी पर अतिरिक्त बोझ बनकर रहे? 36आपका सेवक महाराज के साथ मात्र यरदन नदी पार ही करेगा, पर क्या आवश्यकता है कि महाराज प्रतिफल में यह पुरस्कार दें. 37कृपा कर अपने सेवक को लौटने की अनुमति प्रदान करें, कि मेरा देहांत मेरे ही गृहनगर में, मेरी माता-पिता की कब्र के निकट ही हो. हां, यह किमहाम है, मेरा पुत्र, आपका सेवक. उसे ही आज्ञा दें कि वह महाराज मेरे स्वामी के साथ जाए, और आपकी उपयुक्त इच्छा पूर्ण करता रहे.”

38राजा ने सहमति प्रदान की: “किमहाम मेरे साथ अवश्य जाएगा, और मैं उसके लिए वही करूंगा, जो आपकी अभिलाषा है, साथ ही मैं आपके लिए भी वहीं करूंगा, जो मुझसे आपकी इच्छा है.”

39इसके बाद सभी यरदन नदी के पार चले गए, राजा ने भी नदी पार की. तब राजा ने बारज़िल्लई का चुंबन लेते हुए उन्हें आशीर्वाद दिया. इसके बाद बारज़िल्लई अपने घर लौट गए.

40राजा गिलगाल की ओर बढ़ते गए. किमहाम राजा के साथ था. राजा के साथ यहूदिया की सभी सेना और इस्राएल की आधी सेना थी.

41तब इस्राएल के सभी व्यक्ति आकर राजा से कहने लगे, “ऐसा क्यों हुआ है कि हमारे भाई-बंधुओं, यहूदियावासियों ने चुपके-चुपके यरदन के उस पार जाकर, राजा और उनके परिवार को और उनके सारे साथियों को यहां ले आए है?”

42यहूदिया के सभी निवासियों ने इस्राएल के निवासियों को उत्तर दिया, “इसलिये, कि राजा हमारे निकट संबंधी हैं. इस पर क्रुद्ध होने का क्या कारण है? क्या हमने अपने भोजन के लिए राजा की धनराशि में से खर्च किया है? अथवा क्या उन्होंने हमें उपहार में कुछ दिया है?”

43यह सुन इस्राएलियों ने यहूदियावासियों को उत्तर दिया, “राजा में हमारे दस अंश निहित है. तब दावीद पर हमारा अधिकार तुमसे अधिक होता ही है. तब तुमने हमें तुच्छ क्यों समझा? क्या राजा को दोबारा प्रतिष्ठित करने का प्रस्ताव सबसे पहले हमारी ओर से ही नहीं आया था?”

इसमें यहूदियावासियों के वचन इस्राएलियों के उद्गारों से अधिक प्रभावी रहे.