士师记 19 – CCB & HCV

Chinese Contemporary Bible (Simplified)

士师记 19:1-30

利未人和他的妾

1那时候,以色列没有王。有一个利未人住在以法莲山区的偏远地带,他娶了犹大伯利恒的一个女子为妾。 2那女子不忠,离开丈夫回到犹大 伯利恒的父亲家,住了四个月。 3后来,她丈夫带着一个仆人和两头驴去见她,用好话劝她回去。那女子带他去见自己的父亲。她父亲看见女婿来了,便热情地接待他, 4留他在家里小住。他便在那里住了三天,一起吃住。 5第四天,他清早起来准备回家,岳父对他说:“吃点东西补充体力后再走吧。” 6于是,二人坐下来一起吃喝。岳父对他说:“再住一夜,高兴高兴吧。” 7他不肯答应,起来要走,但岳父一再挽留,他就又住了一夜。 8第五天清早起来,他准备回家,岳父对他说:“吃点东西,太阳偏西再走吧。”于是,二人一同吃饭。 9他带着妾和仆人起来要走的时候,岳父对他说:“看啊,太阳偏西了,天色已晚,再住一夜高兴高兴,明天一早再走吧。”

10可是,他不愿意再留一夜,就备好两头驴,带着他的妾走了,来到耶布斯附近。耶布斯就是耶路撒冷11他们临近耶布斯时,天快黑了,仆人对主人说:“我们不如就在耶布斯人的城里住宿吧。” 12主人说:“我们不可在没有以色列人住的外邦城邑住宿,不如赶到基比亚。” 13他又说:“我们前往基比亚拉玛住宿吧。” 14于是,他们继续前行,到便雅悯境内的基比亚时,天已经黑了。 15他们决定在那里过夜。因为没有人接待他们,他们只好在城中的广场露宿。

16那时,有一个老人从田间工作回来,经过那里。他本来是以法莲山区的人,现在住在便雅悯境内的基比亚17他看见有人在城中的广场露宿,就问:“你们从哪里来,要到哪里去?” 18利未人回答说:“我们从犹大伯利恒来,正要回家去。我住在以法莲山区的偏远地带。我现在要去耶和华的殿。这里没有人接待我。 19其实我有粮草喂驴,我和我的妾及仆人也有饼和酒,什么也不缺。” 20那老人说:“到我家来吧,我会供应你们的需要,千万不可在街头露宿。” 21于是,那老人带他们回家,喂他们的驴。他们洗完脚后,便一起吃喝。

22他们正欢快的时候,城里的一群无赖前来围住房子,连连叩门,对老人说:“把你家里的客人交出来,我们要跟他性交。” 23老人出去对他们说:“弟兄们啊,不要做这种恶事!这人是我的客人,不要干这种卑鄙的事! 24我有个女儿,仍是处女,还有这人的妾,我把她们交出来,任你们玩弄,只是不要对这人干这种卑鄙的事。” 25他们却不肯听。利未人就把自己的妾推出去交给他们。他们强暴她,终夜凌辱她,直到天快亮才放她走。 26她回到丈夫住宿的房子门前,就扑倒在地。

27早晨,她丈夫起来打开房门要上路,发现她倒卧在门前,双手搭在门槛上, 28就对她说:“起来,我们走吧!”她却没有反应。于是,他就把她的尸体放在驴背上启程回家。 29回到家里,他用刀把尸体切成十二块,派人送往以色列全境。 30看见的人都说:“自从以色列人离开埃及以来,这种事从未发生过,也从未见过。我们必须商量一下,看看该怎么办。”

Hindi Contemporary Version

प्रशासक 19:1-30

लेवी की उप-पत्नी

1उन दिनों में, जब इस्राएल का कोई राजा न था. एफ्राईम के दूर के पहाड़ी इलाके में एक लेवी निवास करता था. वह यहूदियों के बेथलेहेम नगर से एक स्त्री ले आया कि वह स्त्री उसकी उप-पत्नी हो जाए. 2किंतु उसकी उप-पत्नी ने इस संबंध का विश्वासघात किया. वह उसे छोड़ अपने पिता के यहां यहूदिया के बेथलेहेम में चली गई जहां वह चार महीने तक रहती रही. 3इस पर उसका पति अपने साथ एक सेवक और एक जोड़ा गधे लेकर उससे मिलने निकल पड़ा, कि उसे प्रेमपूर्वक समझा कर अपने साथ लौटा ले आए. उसने अपने पति को अपने पिता के घर में ठहरा लिया. जब उसके पिता ने उसके पति को देखा तो वह आनंदित हुआ. 4उस लेवी के ससुर ने उसे रोक लिया. लेवी वहां तीन दिन ठहरा रहा. वे वहां खाते-पीते ठहरे रहे.

5चौथे दिन वे बड़े तड़के उठ गए, और लेवी यात्रा के लिए तैयार हुआ. स्त्री के पिता ने अपने दामाद से विनती की, “थोड़ा भोजन करके शरीर में ताकत आने दो, फिर चले जाना.” 6तब वे दोनों बैठ गए. उन्होंने साथ साथ खाया पिया. स्त्री के पिता ने लेवी से कहा, “कृपया यहां और एक रात बिताने के लिए राज़ी हो जाओ, और अपने हृदय को आनंद करने दो.” 7एक बार फिर वह व्यक्ति यात्रा के लिए निकलने लगा, मगर उसके ससुर की विनती पर उसे दोबारा वहीं रात बितानी पड़ी. 8पांचवें दिन बड़े तड़के वह यात्रा के लिए निकलने लगा. स्त्री के पिता ने उससे विनती की, “कृपा कर अपना जी ठंडा करो और शाम तक और ठहर जाओ.” सो उन दोनों ने भोजन किया.

9जब वह व्यक्ति अपने सेवक और उप-पत्नी के साथ यात्रा के लिए निकलने लगा, स्त्री के पिता, उसके ससुर ने उससे कहा, “देखो, दिन ढल ही चुका है. अब रात यहीं बिता लो. देख, दिन खत्म ही हो चुका है. अपने जी को ठंडा कर लो. कल सुबह जल्दी उठकर यात्रा शुरू करना कि तुम अपने घर पहुंच सको.” 10मगर वह व्यक्ति अब वहां रात बिताने के लिए तैयार न था. सो वह अपनी यात्रा पर निकल पड़ा. चलते हुए वे येबूस अर्थात् येरूशलेम के पास एक जगह पर पहुंचे. उसके साथ एक जोड़ा लकड़ी कसे हुए गधे थे, तथा उसकी उप-पत्नी भी उसके साथ थी.

11येबूस पहुंचते हुए दिन लगभग ढल ही चुका था. सेवक ने अपने स्वामी से कहा: “कृपया हम यहीं रुक कर इस नगर में चले जाएं तथा यबूसियों के इस नगर में रात बिता लें.”

12मगर उसके स्वामी ने उससे कहा, “हम इन विदेशियों के नगर में आसरा नहीं लेंगे. ये इस्राएल वंशज नहीं हैं. हां, हम गिबियाह तक चले चलते हैं.” 13अपने सेवक से उसने कहा, “आओ, हम इनमें से किसी एक जगह को चलें. हम गिबियाह अथवा रामाह में रात बिताएंगे.” 14इस कारण वे वहां से आगे बढ़ गए, और गिबियाह पहुंचते हुए सूरज भी ढल गया; गिबियाह बिन्यामिन इलाके में था. 15वे नगर में प्रवेश के लिए मुड़े कि नगर में ठहर सकें. नगर में प्रवेश कर वे नगर चौक की खुली जगह में जाकर बैठ गए; क्योंकि किसी ने भी उन्हें रात बिताने के लिए अपने घर में न बुलाया.

16खेत में दिन का काम खत्म कर एक बूढ़ा व्यक्ति उसी ओर आ रहा था. यह व्यक्ति एफ्राईम के पहाड़ी इलाके से ही था और गिबियाह में रह रहा था, जबकि यह बिन्यामिन वंशजों का नगर था. 17जब उस बूढ़े व्यक्ति की नज़र नगर चौक में इन यात्रियों पर पड़ी, उसने पूछा, “आप कहां जा रहे हैं और आप कहां से आए हैं?”

18उसने उत्तर में कहा, “हम लोग यहूदिया के बेथलेहेम से एफ्राईम के पहाड़ी इलाके की एक दूर की जगह को19:18 कुछ हस्तलेखों में “याहवेह के भवन को जा रहा हूं” जा रहे हैं, क्योंकि मैं वहीं का रहनेवाला हूं. मैं यहूदिया के बेथलेहेम नगर को गया हुआ था. ठहरने की जगह देने के लिए किसी ने मुझे नहीं बुलाया. 19मेरे पास अपने गधों के लिए चारा और हमारे लिए भोजन तथा अंगूर का रस है. आपकी सेविका तथा आपके सेवक के साथ जो युवक है, हमें किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है.”

20बूढ़े व्यक्ति ने उनसे कहा, “शांति तुम पर बनी रहे. मैं तुम्हारी सभी ज़रूरतें पूरी करूंगा, मगर इस खुले चौक में रात न बिताना.” 21सो वह उन्हें अपने घर ले गया, गधों को चारा दिया, उन्होंने अपने पांव धोए और भोजन किया.

22जब वे आनंद कर ही रहे थे, नगर के कुछ लुच्चे लोगों ने आकर उस घर को घेर लिया. वे दरवाजे पर वार कर रहे थे. उन्होंने उस घर के स्वामी, उस बूढ़े व्यक्ति से कहा, “उस व्यक्ति को बाहर भेजो कि हम उसके साथ शारीरिक संबंध बना सकें.”

23इस पर घर के स्वामी ने बाहर आकर उनसे कहा, “नहीं, मेरे भाइयो, ऐसा कुकर्म न करो. यह व्यक्ति मेरा मेहमान है, ऐसा मूर्खता भरा कदम न उठाओ! 24यहां मेरी कुंवारी बेटी है और मेरे अतिथि की उप-पत्नी भी. तुम उन्हें भ्रष्‍ट कर सकते हो और जैसा तुम्हें सही लगे, कर सकते हो; किंतु इस व्यक्ति के साथ यह शर्मनाक काम मत करो!”

25किंतु वे तो उसकी सुनने के लिए तैयार ही न थे. इस कारण लेवी ने अपनी उप-पत्नी को पकड़कर उनके सामने खड़ा कर दिया. वे सुबह होने तक पूरी रात उसके साथ बलात्कार तथा दुर्व्यवहार करते रहे. सुबह होने पर उन्होंने उसे छोड़ दिया. 26जब सूरज उग ही रहा था, वह स्त्री उस बूढ़े व्यक्ति के दरवाजे पर जा गिरी, जहां पूरी तरह रोशनी होने तक उसका स्वामी ठहरा हुआ था.

27जब इस स्त्री का स्वामी सुबह उठा, उसने द्वार खोले और वह अपनी यात्रा के लिए निकला, उसने देखा कि उसकी उप-पत्नी सीढ़ियों पर पड़ी हुई थी; उसने अपने हाथों से डेवढ़ी थाम रखी थी. 28लेवी ने उसे पुकारा, “उठो, अब हमें चलना है.” किंतु उसे उससे कोई उत्तर न मिला; वह मर चुकी थी. लेवी ने उसे गधे पर लाद दिया और अपने घर लौट गया.

29घर पहुंचकर उसने चाकू लेकर अपनी उप-पत्नी के शरीर के बारह टुकड़े कर दिए और उन्हें इस्राएल के सभी प्रदेशों में भेज दिए. 30जिस किसी ने यह देखा, उसने यही कहा, “जब से इस्राएल मिस्र देश से निकलकर यहां पहुंचा है, उस दिन से न तो ऐसा कभी हुआ है, न ही ऐसा कभी देखा गया. इस पर विचार करो. हमें कुछ करना चाहिए! और उसके विरुद्ध आवाज उठाई जाए!”