मत्तियाह 14:22-36, मत्तियाह 15:1-9 HCV

मत्तियाह 14:22-36

येशु का जल सतह पर चलना

इसके बाद येशु ने शिष्यों को तुरंत ही नाव में सवार होने के लिए इस उद्देश्य से विवश किया कि शिष्य उनके पूर्व ही दूसरी ओर पहुंच जाएं, जबकि वह स्वयं भीड़ को विदा करने लगे. भीड़ को विदा करने के बाद वह अकेले पर्वत पर चले गए कि वहां जाकर वह एकांत में प्रार्थना करें. यह रात का समय था और वह वहां अकेले थे. विपरीत दिशा में हवा तथा लहरों के थपेड़े खाकर नाव तट से बहुत दूर निकल चुकी थी.

रात के अंतिम प्रहर14:25 अंतिम प्रहर रात के करीब 3 बजे में येशु जल सतह पर चलते हुए उनकी ओर आए. उन्हें जल सतह पर चलते देख शिष्य घबराकर कहने लगे, “दुष्टात्मा है यह!” और वे भयभीत हो चिल्लाने लगे.

इस पर येशु ने उनसे कहा, “डरो मत. साहस रखो! मैं हूं!”

पेतरॉस ने उनसे कहा, “प्रभु! यदि आप ही हैं तो मुझे आज्ञा दीजिए कि मैं जल पर चलते हुए आपके पास आ जाऊं.”

“आओ!” येशु ने आज्ञा दी.

पेतरॉस नाव से उतरकर जल पर चलते हुए येशु की ओर बढ़ने लगे किंतु जब उनका ध्यान हवा की गति की ओर गया तो वह भयभीत हो गए और जल में डूबने लगे. वह चिल्लाए, “प्रभु! मुझे बचाइए!”

येशु ने तुरंत हाथ बढ़ाकर उन्हें थाम लिया और कहा, “अरे, अल्प विश्वासी! तुमने संदेह क्यों किया?”

तब वे दोनों नाव में चढ़ गए और वायु थम गई. नाव में सवार शिष्यों ने यह कहते हुए येशु की वंदना की, “सचमुच आप ही परमेश्वर-पुत्र हैं.”

झील पार कर वे गन्‍नेसरत प्रदेश में आ गए. वहां के निवासियों ने उन्हें पहचान लिया और आस-पास के स्थानों में संदेश भेज दिया. लोग बीमार व्यक्तियों को उनके पास लाने लगे. वे येशु से विनती करने लगे, कि वह उन्हें मात्र अपने वस्त्र का छोर ही छू लेने दें. अनेकों ने उनका वस्त्र छुआ और स्वस्थ हो गए.

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मत्तियाह 15:1-9

अंदरूनी शुद्धता की शिक्षा

तब येरूशलेम से कुछ फ़रीसी और शास्त्री येशु के पास आकर कहने लगे, “आपके शिष्य पूर्वजों की परंपराओं का उल्लंघन क्यों करते हैं? वे भोजन के पहले हाथ नहीं धोया करते.”

येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “अपनी परंपराओं की पूर्ति में आप स्वयं परमेश्वर के आदेशों को क्यों तोड़ते हैं? परमेश्वर की आज्ञा है, ‘अपने माता-पिता का सम्मान करो’15:4 निर्ग 20:12; व्यव 5:16 और वह, जो माता या पिता के प्रति बुरे शब्द बोले, उसे मृत्यु दंड दिया जाए.15:4 निर्ग 21:17; लेवी 20:9 किंतु तुम कहते हो, ‘जो कोई अपने माता-पिता से कहता है, “आपको मुझसे जो कुछ प्राप्‍त होना था, वह सब अब परमेश्वर को भेंट किया जा चुका है,” उसे माता-पिता का सम्मान करना आवश्यक नहीं.’ ऐसा करने के द्वारा अपनी ही परंपराओं को पूरा करने की फिराक में तुम परमेश्वर की आज्ञा को तोड़ते हो. अरे पाखंडियों! भविष्यवक्ता यशायाह की यह भविष्यवाणी तुम्हारे विषय में ठीक ही है:

“ये लोग मात्र अपने होंठों से मेरा सम्मान करते हैं,

किंतु उनके हृदय मुझसे बहुत दूर हैं.

व्यर्थ में वे मेरी वंदना करते हैं.

उनकी शिक्षा सिर्फ मनुष्यों द्वारा बनाए हुए नियम हैं.”15:9 यशा 29:13

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